फ्रोस्टिंग और प्रोटेक्टिव कोटिंग क्या है

 

दोस्तों इस पोस्ट में हम जानेंगे फ्रोस्टिंग और प्रोटेक्टिव कोटिंग क्या है| फ्रोस्टिंग संक्रिया, प्रोटेक्टिव कोटिंग के प्रकार, अस्थाई कोटिंग, अर्ध स्थाई कोटिंग, और स्थाई कोटिंग के बारे में विस्तारपूर्वक जानेंगे |

फ्रोस्टिंग(frosting)

फ्रोस्टिंग एक ऐसी संक्रिया(operation) है जिसके द्वारा जॉब की बाहरी सपाट सतह को चमकदार बनाया जाता है|
और नरम पदार्थ की बनी पिन तथा एमरी का प्रयोग करके गोलाकार के स्पोर्ट बनाए जाते हैं|

फ्रोस्टिंग संक्रिया (frosting operation)

फ्रोस्टिंग करने के लिए एक नरम पदार्थ की पिन को ड्रिलिंग मशीन के ड्रिल चक में बांध लिया जाता है |
जिस जॉब या कार्य खंड पर फ्रोस्टिंग करनी होती है उसे मशीन की मेज(table) के साथ बांध दिया जाता है और उस पर एमरी पेस्ट का लेप कर दिया जाता है|
इसके बाद मशीन को चालू करके पिन का हल्का सा दबाव कार्य खंड या जॉब पर दिया जाता है| जिससे जॉब या कार्यखंड पर गोल आकार के सपोर्ट बन जाते हैं |
इस प्रकार जॉब की पोजीशन बदलकर पूरे जॉब पर गोल आकार के स्पोर्ट बना लिए जाते हैं|
इस क्रिया को करने से सतह पर चमक बढ़ती है और देखने में यह अच्छी भी लगती है|

प्रोटेक्टिव कोटिंग (protective coating)

इसी जॉब या कार्य खंड को हवा और पानी के प्रभाव से बचाने के लिए कुछ उपचार किए जाते हैं, जिन्हें प्रोटेक्टिव कोटिंग कहा जाता है|
प्रोटेक्टिव कोटिंग करने के पश्चात जॉब या कार्यखंड पर जंग नहीं लगता है और जॉब की सतह देखने में सुंदर और आकर्षक लगती है|

प्रोटेक्टिव कोटिंग के प्रकार (types of protective coatings)

प्रोटेक्टिव कोटिंग मुख्यतः तीन प्रकार की होती है|
1. अस्थाई कोटिंग (temporary coating)
2. अर्ध स्थाई कोटिंग (semi permanent coating)
3. स्थाई कोटिंग (permanent coating)

1. अस्थाई कोटिंग (temporary coating)

इस प्रकार की कोटिंग जॉब पर अस्थाई रूप से की जाती है|
स्थाई कोटिंग के लिए जॉब को बनाने के पश्चात उसकी सतह पर तेल, ग्रीस, वार्निश, आदि लगा देते हैं| जिससे जॉब की सतह पर जंग नहीं लगती है और आवश्यकता पड़ने पर जॉब की सतह को साफ करके प्रयोग में लाया जा सकता है|

2. अर्ध स्थाई कोटिंग (semi permanent coating)

इस प्रकार की कोटिंग कार्य खंड या जॉब पर अर्ध स्थाई रूप से की जाती है|
अर्ध स्थाई कोटिंग ने निम्नलिखित विधियां आती हैं|
1. पेंटिंग(painting)
2. पीतल की कलरिंग(colouring off brush)
3. इस्पात की ब्लूइंग करना(bluing off steel)
4. इस्पात की ब्लैक फिनिश करना(black finishing of Steel)
5. टिनिंग(tinning)
6. गैल्वेनाइजिंग(galvanizing)

पेंटिंग(painting)

बाजारों में अनेक प्रकार के पेंट उपलब्ध होते हैं| पेंट के प्रयोग से जॉब की सतह की कोटिंग की जा सकती है |
जिससे कि जॉब की सतह पर पानी और हवा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है|

पीतल की कलरिंग(colouring off brush)

इस विधि में पीतल को एक सुनहरे रंग में बदला जाता है |
इसमें पीतल के जॉब को 5 भाग कास्टिक सोडा, 10 भाग कॉपर कार्बोनेट और 50 भाग पानी के घोल में निश्चित समय के लिए डुबोकर रखा जाता है |
जब कार्य खंड पर इच्छा अनुसार परत आ जाती है, तब उसे घोल से बाहर निकाल कर अच्छी तरह साफ कर लिया जाता है|

इस्पात की ब्लूइंग करना(bluing off steel)

इस विधि में पोलिस कीये गये इस्पात के कार्य खंड को लकड़ी की राख, रेति या लकड़ी के कोयले के चुरे के साथ गर्म किया जाता है|
और जब जॉब पर नीला रंग आ जाता है, तब उसे ठंडा कर दिया जाता है |

इस्पात की ब्लैक फिनिश करना(black finishing of Steel)

इस विधि में कठोर किए गए इस्पात के जॉब को सिलेंडर ऑयल में डालकर टैम्पर किया जाता है और इसके तुरंत बाद तेल के साथ मिट्टी में लगभग 150 डिग्री सेंटीग्रेड से 175 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान पर लगभग 5 से 8 मिनट तक गर्म किया जाता है|
इसके बाद जो को निकाल कर ठंडा कर दिया जाता है, जिससे जॉब की सतह पर ब्लैक फिनिश आ जाती है |

टिनिंग(tinning)

इस विधि के द्वारा किसी जॉब या कार्य खंड पर टिन की कोटिंग की जाती है|
यह विधि ज्यादातर धातु चद्दर के ऊपर की जाती है|
इस पर टिनिंग करने के पश्चात अच्छी चमक लाने के लिए लकड़ी के बुरादे के साथ चद्दरओं को कई प्लेन रोलरओं में से निकाला जाता है|

गैल्वेनाइजिंग(galvanizing)

इस विधि से काली लोहे की चददरों पर जस्ते(zinc) की कोटिंग की जाती है|
इस विधि में जस्ते की कोटिंग करने के पश्चात जॉब पर अच्छी फिनिश लाने के लिए उन्हें वायर ब्रश वाले रोलरो के बीच से निकाला जाता है |

3. स्थाई कोटिंग (permanent coating)

इस प्रकार की कोटिंग किसी जॉब या कार्यखंड पर स्थाई रूप से की जाती है|
स्थाई कोटिंग करने के लिए इलेक्ट्रोप्लाटिंग विधि अपनाई जाती है|
इलेक्ट्रोप्लेटिंग में विद्युत के द्वारा एक धातु की परत दूसरी धातु पर चढ़ाई जाती है|
इस विधि में जिससे धातु हटाई जाती है, उसे एनोड कहते हैं तथा जिस पर धातु चढ़ाई जाती है, उसे कैथोड कहते हैं|

इलेक्ट्रोप्लाटिंग की विधियां (method of electroplating)

इलेक्ट्रोप्लाटिंग में मुख्यतः तीन विधियों द्वारा की जाती है|
1. क्रोमियम प्लेटिंग (chromium plating)
2. निकिल प्लेटिंग (nickel plating)
3. सिल्वर प्लेटिंग (silver plating)

क्रोमियम प्लेटिंग (chromium plating)

इस विधि के द्वारा किसी जॉब या कार्य खंड पर क्रोमियम की पतली परत चढ़ाई जाती है|
इस विधि में जॉब को सल्फ्यूरिक अमल से साफ करने के पश्चात क्रोमियम के घोल में लगभग 1 घंटे तक डुबोकर रखा जाता है|
इस विधि में जॉब को कैथोड और घोल को एनोड से जोड़कर प्लेटिंग की जाती है|

निकिल प्लेटिंग (nickel plating)

इस विधि से जॉब पर निकिल   की प्लेटिंग की जाती है
प्लेटिंग करने के लिए जॉब पर लगे तेल गिरीश और जंग आदि को साफ करके प्राइमस पाउडर से चमका दिया जाता है|
इसके बाद जॉब को निकिल के घोल में लगभग 1 घंटे तक डुबोकर  रखा जाता है, यह क्रिया करने के लिए जॉब को कैथोड और कॉल को एनोड रखा जाता है |

सिल्वर प्लेटिंग (silver plating)

इस विधि से किसी जॉब पर सिल्वर की पतली परत चढ़ाई जाती है|
इस विधि में जॉब की सतह पर लगे तेल जंग, ग्रीश, आदि को साफ करने के पश्चात कॉपर प्लैटिग घोल में लगभग 1 घंटे तक रखकर अंडर कोटिंग की जाती है|
इसके बाद सिल्वर नाइट्रेट के गोल में अधिक विद्युत धारा पर जॉब को लगभग 1 मिनट तक डुबोकर रखा जाता है|
इसके बाद जॉब को साफ करके सिल्वर प्लेटिंग घोल डाल कर सिल्वर की पतली परत चढ़ा ली जाती है|

होनिंग प्रक्रिया क्या है और इसके क्या लाभ है

 

दोस्तों इस पोस्ट में हम जानेंगे कि होनिंग प्रक्रिया क्या है और इसके क्या लाभ है | होनस क्या होते हैं होनिंग मशीनों का वर्गीकरण तथा होनिंग औजार के बारे में विस्तार पूर्वक जानेंगे|

होनिंग(honing)

यह एक घिसाई करने वाला प्रक्रम(process) होता है|
इस प्रोसेस के द्वारा पहले से मशीनिंग किए गए उत्पादों को फिनिश करने और उनका साइज़ ठीक करने के लिए प्रयोग किया जाता है|
होनिंग के द्वारा सभी फर्निशिंग सक्रियाओं में सबसे अधिक पदार्थ हटाया जा सकता है|
होनिंग विधि के द्वारा अलग की जाने वाली धातु की मात्रा 0.1 मिली मीटर से 0.25 मिली मीटर तक होती है|
लेकिन अगर पूछा जाए कि होनिंग विधि के द्वारा अधिकतम कितनी धातु को हटाया जा सकता है या अलग किया जा सकता है | तो सही उत्तर होगा 0.75 मिलीमीटर तक|

होनिंग का प्रयोग(use of honing)

इसको अधिकतर प्रयोग आंतरिक बेलनाकार सतहों जैसै ड्रिलिंग अथवा बोरिंग के द्वारा बनाए गए छेदों को फिनिश करने के लिए किया जाता है |

होनिंग औजार(honing tools)

यह तीन 4 या 6 भुजाओं वाला औजार(tool) होता है|
इसकी प्रत्येक भुजा पर होनिंग स्टिक लगी होती है| इस पर लगे समायोजन पेच(adjustable screw) की सहायता से ही होनस के साइज को घटाया या बढ़ाया जा सकता है|
यह लगभग समायोज्य रीमर की तरह कार्य करता है|

honing-tools
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होनस(hones)

होनिंग के लिए प्रयोग किए जाने वाले औजार को होन(hone) कहते हैं|
यह एक प्रकार की धातु को पॉलिश करने वाली छड़ होती है, जोकि अल्युमिनियम ऑक्साइड, सिलीकान कार्बाईड, या डायमंड डस्ट के सूक्ष्म कणों को बोण्ड द्वारा जोड़कर बनाई जाती है|
इसे होनिंग स्टिक या होनिंग स्टोन भी कहां जाता है |
इसके द्वारा ढलवा लोहे, इस्पात, पीतल, कांसा, एलुमिनियम, चांदी, तथा कांच या प्लास्टिक आदि पर पॉलिश की जाती है|
होनस का वर्गीकरण (classification of hones)
होनस को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है|

1. कोरस या रफ होनस

इस प्रकार के होनस का प्रयोग जॉब पर बोरीग के बाद रफ होनिंग के लिए किया जाता है|

2. मीडियम या फिनिश होनस

इस प्रकार के होनस का प्रयोग होनिंग या semi-finished सतहों को फिनिश करने के लिए किया जाता है|

3. फाइन या पाॅलिश होनस

इस प्रकार की होनस का प्रयोग फिनिश होने के बाद जॉब की आंतरिक सतहों को फिनिशिंग पाॅलिश अर्थात जॉब को शीशे की तरह चमकाने के लिए किया जाता है|

होनिंग मशीन(honing machine)

होनिंग प्रकरण को सामान्य कार्य करने वाली मशीनों जैसें लेथ मशीन और ड्रिलिंग मशीन पर भी किया जा सकता है
कार्य के अनुसार स्थिर प्रकार की मशीनें उपयुक्त सिद्ध नहीं होती हैं, ऐसी स्थिति में उस कार्य को करने के लिए सुगराही ड्रिलिंग मशीन(portable drilling machine) एड्रिल के स्थान पर होन को लगाकर प्रयोग किया जा सकता है|
बहु उत्पादन के लिए नियमित होने की मशीनों का प्रयोग किया जा सकता है इन मशीनों से इस संतोषजनक और सस्ते परिणाम प्राप्त होते हैं|

होनिंग प्रक्रम (honing process)

होनिंग क्रिया एक आंर्द(wet) प्रक्रम(process) होता है|
इस प्रकरण में यह अनिवार्य है कि संक्रिया के समय पर्याप्त मात्रा में उपयुक्त शीतलक का प्रयोग किया जाना चाहिए|
छोटे उत्पादों में यह क्रिया हाथ से की जा सकती है इसके लिए एक होन लगातार घुमाया जाता है और कार्य खंड या जॉब को घूमते हुए औजार पर हाथ के द्वारा आगे पीछे चलाया जाता है|
honing-process
honing-process


होनिंग प्रक्रम मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं
1. ड्राई होनिंग(dry honing)
2. वैट होनिंग(wet honing)

ड्राई होनिंग(dry honing)

इस प्रकार की हानिंग क्रिया अधिक धातु और रफ कर्तन करने के लिए की जाती है|
इस क्रिया में किसी भी प्रकार का शीतलक(coolant) प्रयोग नहीं किया जाता है|
इसमें 80 से 120 अपघर्षक ग्रीट वाले होनस का प्रयोग किया जाता है|

वैट होनिंग(wet honing)

इस प्रकार की होनिंग अच्छी फिनिश और चमक के लिए की जाती है|
इस प्रक्रिया में धातु कम कटती है|
इस प्रकार की होनिंग में शीतलक का प्रयोग किया जाता है|
इस क्रिया में 120 से 300 अपघर्षक ग्रीट वाले होनस का प्रयोग किया जाता है|

होनिंग के लाभ (advantage of honing)

1. इससे शतहो में घर्षण लगभग सुनने के बराबर रह जाती है|
2. इससे घूमने वाले पुर्जे बड़ी सरलता से घूमते हैं|
3. होनिंग के माध्यम से पूर्जों को टॉलरेंस की अंतिम सीमा तक परिशुद्ध बना सकते हैं|
4. होनिंग के माध्यम से सतहो में अच्छी फिर्निशिंग पोलिश और स्मूदनेस लाकर उसकी विशेषता बढ़ा सकते हैं|
5. इससे भारी तथा टेढ़े मेढ़े जॉब या सिलेंडर आदि जिनको मशीन पर बांधकर आंतरिक ग्राइंडिंग नहीं की जा सकती उनकी आसानी से होर्निंग क्रिया की जा सकती है|

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आईटीआई पास स्टूडेंट को रेलवे दे रहा है नौकरी करने का मौका ऑनलाइन आवेदन करने की 24 जून है अन्तिम दिनांक

 रेलवे भर्ती सेल (आरआरसी), 


पश्चिम रेलवे, मुंबई ने पश्चिम रेलवे के अधिकार क्षेत्र के भीतर विभिन्न डिवीजनों की कार्यशालाओं में अलग-अलग ट्रेनों के लिए कुल 3591 रिक्तियों की भर्ती के लिए एक अधिसूचना की घोषणा की है। जिसके तहत रेलवे अपनी अलग-अलग डिवीजनो में सभी आईटीआई ट्रेड्स पास विद्यार्थियों को अलग-अलग पदों पर(कुल 17 पदों पर) नौकरी देने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया है|

जिसमें निम्न में ट्रेनों के अभ्यर्थी आवेदन कर सकते हैं|
Fitter / Turner / Machinist / Carpenter
/ Painter (General) / Mechanic
(Diesel) / Programming & Systems
Administration Assistant / Electrician /
Wireman / Refrigerator AC Mechanic
/ Plumber/Draftsman (Civil)/Electrician/Electronics Mechanic/Stenographer
(English)/Pipe Fitter

ऑनलाइन फॉर्म भरने की अंतिम तिथि 24 जून2021 निर्धारित की गई है|

आवश्यक योग्यताएं

आयु

ऑनलाइन आवेदन करने के लिए अभ्यार्थी की आयु 15 वर्ष से कम तथा अंतिम तिथि तक 24 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए|
अन्य भर्तियों की तरह ही आयु में पिछड़े वर्गों और एक्स सर्विसमैन को छूट दी गई है|

शैक्षणिक योग्यता

ऑनलाइन आवेदन करने के लिए अभ्यर्थी को 10th क्लास में 50% अंकों के साथ पास होना आवश्यक है|
साथ ही संबंधित ट्रेड में आईटीआई का सर्टिफिकेट होना आवश्यक है|

आवेदन शुल्क

अभ्यार्थियों के लिए ₹100 आवेदन शुल्क रखा गया है|
पिछड़े वर्ग और महिलाओं (SC/ST/PWD/Women) के लिए आवेदन शुल्क फ्री रखा गया है|

चयन प्रक्रिया

अपरेंटिस अधिनियम, 1961 के तहत प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए योग्य आवेदकों का चयन अभ्यार्थी  द्वारा प्राप्त अंकों के प्रतिशत का औसत लेकर तैयार की जाने वाली मेरिट सूची पर आधारित होगा|
मैट्रिक दोनों में आवेदक [न्यूनतम 50 % (कुल) अंकों के साथ] और आईटीआई परीक्षा के कुल अंकों के प्राप्तांक के आधार पर दोनों को बराबर वेटेज दिया जाएगा।
दो आवेदकों के मामले में · समान अंक होने पर अधिक आयु वाले आवेदकों को प्राथमिकता दी जाएगी।
यदि जन्म तिथि भी समान है, तो · पहले मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले आवेदकों को पहले स्थान दिया जाएगा।
किसी भी प्रकार की कोई लिखित परीक्षा या वाइवा नहीं होगा।
अधिक जानकारी के लिए आरआरबी की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाएं। Click here

ऑनलाइन आवेदन करने के लिए क्लिक करें click here

लैपिंग क्या होती है | लैपिंग औजार एवं लैपिंग विधि और लैपिंग के क्या लाभ है

 इस पोस्ट में हम जानेंगे लैपिंग क्या होती है लैपिंग औजार एवं लैपिंग विधि और लैपिंग के क्या लाभ हैं|

लैपिंग(lapping)

यह एक सरफेस फिनिशिंग क्रिया का भाग है जब हम किसी धातु पर मशीनींग और ग्राइंडिंग करते हैं तो उसके पश्चात भी अधिक फिनिशिंग की आवश्यकता होती है | इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए जो संक्रिया की जाती है उसे लैपिंग कहते हैं|
लैपिंग विधि के द्वारा जॉब या कार्य खंड की घिसाई करके जॉब की सतह से अशुद्धता(roughness) और तरंगता(waviness) एवं अन्य अनियमितताओं को समाप्त किया जाता है तथापि फिनिशिंग में सुधार किया जाता है|
इस विधि का उपयोग अच्छी फिनिश वाले कार्य खंड पर किया जाता है, जैसे:- पिस्टन पिन, पिस्टन रिंग, गेज ब्लॉक, वाल्व सीट, मशीन औजारों की गाइड तथा स्लाइड मार्गों आदि पर |
यह क्रिया हाथ अथवा मशीन के द्वारा बाहरी एवं आंतरिक दोनों प्रकार की सतहों पर की जा सकती है |

लैपिंग औजार(lapping tool)

लैपिंग के लिए प्रयोग किए जाने वाले पदार्थ काम मुलायम होना जरूरी है, जिससे घिसने वाले कण आसानी से बैठाये जा सके|
यह एक काटने वाला औजार है, जो विभिन्न आकार में बनाया जा सकता है और यह घर्षण विधि के द्वारा काटता है|
लैप बनाने के लिए मृदु ढलवा लोहा(mild cast iron) तांबा, पीतल, सीसा और कभी-कभी कठोर लकड़ी का भी प्रयोग किया जाता है|

लैपिंग माध्यम(lapping media)

लैप को बनाने के लिए अलग-अलग प्रकार के अपघर्षक कणों को पेस्ट के रूप में प्रयोग किया जाता है| इन्हें चार्जिंग पदार्थ भी कहते हैं, जैसे:- हीरा, एमरी, कोंरडम, क्रोमियम ऑक्साइड, अल्युमिनियम ऑक्साइड तथा सिलिकॉन आदि|
अधिकतर लैपिंग के लिए डायमंड पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है|
एलुमिनियम ऑक्साइड के अपघर्षक को उच्च फिनिश प्राप्ति हेतु प्रयोग में लाया जाता है|
तथा सिलीकान कार्बाईड वाले लेप अधिक धातु काटते हैं तथा इनके द्वारा सतह रफ बनती है |

लैपिंग पाउडर के ग्रेड(grades of lapping powder)

लैपिंग पाउडर कई फ्लोर साइजों में मिलते हैं शुक्षम कार्यों के लिए इनको तेल के साथ मिलाकर कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता है जो कम अधिक समय तक तेल में तैरते हैं, वे सबसे सूक्ष्म अपघर्षक होतै है|
लैपिंग करते समय इन अपघर्षको के साथ मोबिल आयल, लॉर्ड आयल, मिट्टी का तेल अथवा तारपीन का तेल उपयोग में लाया जाता है|

लैपिंग विधि(method of lapping)

लैपिंग में दो प्रकार की लैपिंग विधि प्रयोग की जाती है|
1. हस्त लैपिंग(hand lapping)
2. मशीन लैपिंग(machine lapping)

हस्त लैपिंग(hand lapping)

इस विधि के अनुसार लैप जॉब या कार्य खंड में से किसी एक को हाथ से पकड़ कर दूसरे को गति प्रदान की जाती है|
जिससे इन दोनों की सतह एक दूसरे के संपर्क में रहकर रगड़ खाती रहे|
Hand-lapping


लेकिन कुछ परिस्थितियों में लैपिंग कंपाउंड को दोनों संपर्क  सतहों के बीच में रखकर एक सतह को स्थिर तथा दूसरी सतह को उसके ऊपर रगड़ा जाता है|
इसका उपयोग इंजन के वाल्व और वाल्व सीट आदि की लैपिंग के लिए किया जाता है|

मशीन लैपिंग(machine lapping)

इस विधि का प्रयोग बेयरिंग के बाॅल, रोलर, रेस, गियरों, क्रैंक शाफ़्ट, पिस्टन पिनों, गेज ब्लॉक, एवं अन्य ऑटोमोबाइल पार्ट्स और माइक्रोमीटर के स्पिंडल आदि पर उच्च परिष्कृत सतह प्राप्त करने के लिए किया जाता है|
इस विधि में अनेक प्रकार की मशीनों का प्रयोग किया जाता है|
Machine-lapping


एक ऊर्ध्वाधर अक्ष लैपिंग मशीन के ऊर्ध्वाधर स्पिंण्डल पर दो पहिए एक ऊपर और दूसरा उसके नीचे होता है | जॉब या कार्य खंड इन दोनों के बीच में रहकर वाहक सहित ढीले कटाई वाले कणों को फिड किया जाता है|
इस मशीन का एक और उन्नत रुप वह है जिसमें घूमने वाले पहियों के स्थान पर दो बाॅण्डेड अपघर्षक पहिए लगे होते हैं|
इनके साथ ढीले काटने वाले कणों की आवश्यकता नहीं होती है|
इन दोनों प्रकार की मशीनों में नीचे वाला पहिया घूमता है और ऊपरवाला पहिया नहीं घूमता है परंतु जॉब या कार्य खंडों के ऊपर फ्लोट करता है|
इन दोनों मशीनों को केवल वृत्ताकार और चपटे कार्यों के लिए ही प्रयोग किया जाता है|
अपघर्षक बेल्ट लैपिंग मशीन का उपयोग क्रैंक शाफ़्ट पर बेयरिंग, केम शाफ़्ट कि सतह लैपिंग करने के लिए किया जाता है|
इसमें अपघर्षक काणो से लेपित कपड़े या कागज की बेल्ट का प्रयोग किया जाता है|
सेंटर लैस लैपिंग मशीन पर लगातार रूप से लैपिंग क्रिया गोल सातहो वाले पार्ट्स जैसे:- पिस्टन पिन, बियरिंग रेस, और कप, आदि पर की जाती है|

लैपिंग के लाभ(advantage of lapping)

1. लैपिंग से छोटे-छोटे पॉइंट तथा डॉट दूर हो जाते हैं|
2. जॉब पर उच्च कोटि की पॉलिश तथा फर्निशिंग आ जाती है|
3. जॉब पर जंग लगने का खतरा नहीं रहता है|
4. सत्य इतनी समतल एवं सूक्ष्म बन जाती है कि दोनों सतहों के मिलने पर वेक्यूम जाता है|
5. उच्च गति पर जॉब को चला सकते हैं|
6. लैपिंग के प्रयोग से इच्छित फिट प्राप्त की जा सकती है|

सरफेस फिनिश का परिचय, इसके मापने की इकाई, ग्रेड, मापन की विधियां, और सरफेस फिनिश के लाभ

 इस पोस्ट में हम जानेंगे सरफेस फिनिश का परिचय, इसके मापने की इकाई, ग्रेड, मापन की विधियां, और सर्फेस फिनिश के लाभ |

सरफेस फिनिश का परिचय(introduction of surface finish)

किसी भी पुर्जे (parts) की सतह(surface) पर स्मूथनेस(smoothness) और रफनैस(roughness) के संबंध को सरफेस फिनिश कहते हैं|
जैसा कि हम सब जानते हैं वर्तमान औद्योगिक युग में हर दिन नई नई मशीनों का आविष्कार हो रहा है | इन मशीनों में कुछ पुर्जे ऐसे होते हैं जिन्हें अधिक फिनिश की आवश्यकता नहीं होती है और कुछ ऐसे पुर्जे होते हैं, जिनको बहुत अधिक परिशुद्धता में फिनिश करने की आवश्यकता होती है इस प्रकार फनिशिंग किसी भी कार्य की प्रकृति पर निर्भर करता है|

सरफेस फिनिश से संबंधित पद(relative steps of surface finish)

1. सरफेस(surface)
2. प्रोफाइल(profile)
3. रफनैस(roughness)
4. वेवीनैस(weariness)
5. फ्लाॅज(flaws)
6.ले(lay)

Relative-steps-of-surface-finish


1. सरफेस(surface)

यह किसी जॉब या पदार्थ की वह सीमा होती है, जो किसी एक जॉब या पदार्थ को दूसरे से अलग करती है|

2. प्रोफाइल(profile)

किसी भी सरफेस की रूपरेखा या आकृति को प्रोफाइल कहते हैं|

3. रफनैस(roughness)

जब किसी जॉब के सतह  पर किसी औजार की कर्तन धार से जो बारीक तथा सूक्ष्म विषमताएं बनती है, उन्हें  रफनैस(roughness) कहते हैं |

4. वेवीनैस(weariness)

जब किसी जॉब की सतह पर रफनैस की अपेक्षा अधिक चोड़ी विषमताएं बनती है तो उन विषमताओं को वेवीनैस कहते हैं |

5. फ्लाॅज(flaws)

यह किसी जॉब की सतह पर वह विषमता होती है, जो किसी एक स्थान पर या कहीं-कहीं अनेक स्थान पर पड़ती हैं | जैसे:- स्क्रेच, लिए आदि |

6.ले(lay)

किसी जॉब की सतह पर जिस दिशा में फिनिशिंग की जाती है, उसे ले(lay) कहते हैं |

सरफेस फिनिश के माप की इकाई(unit measurement of surface finish)

सरफेस फिनिश की इकाई मीट्रिक प्रणाली में माइक्रोन होती है|
तथा ब्रिटिश प्रणाली में इसे माइक्रो इंच मे मापते हैं|
भारतीय मानक (I.S.I.) मैं RZ और ra सूत्रों के मान की इकाई को माइक्रोन से संबोधित करते हैं |
एक माइक्रोन = 0.001 मिली मीटर
एक माइक्रोन इंच = 0.0001 इंच

सरफेस फिनिश की ग्रेड(grade of surface finish)

भारतीय मानक (I.S.I.) में ra सूत्र की माप के अनुसार सर्फेस फिनिश के स्टैंडर्ड ग्रेड होते हैं, जिनको निम्न तालिका द्वारा प्रदर्शित किया जाता है|

Surface-finish-ki-grade


सरफेस फिनिश को मापने की विधियां(method of measuring surface finish)

सरफेस फिनिश को दो विधियों द्वारा मापा जा सकता है|
1. तुलना द्वारा( by comparison)
2. प्रत्यक्षमापी उपकरणों द्वारा(by direct measuring instruments)

1. तुलना द्वारा( by comparison)

जब किसी सरफेस फिनिश का निरीक्षण(inspection) तुलना द्वारा किया जाता है|
तो यह सात विधियां अपनाई जाती हैं|
1. स्पर्श निरीक्षण द्वारा
2. दृष्टिगत निरीक्षण द्वारा
3. माइक्रोस्कोपिक निरीक्षण द्वारा
4. सतह फोटोग्राफ द्वारा
5. रिफ्रैक्टिव लाइट इंटेसिटी द्वारा
6. माइक्रो इंटर फेयरोमीटर द्वारा
7. वाॅलाक सतह डायनमो मीटर द्वारा

2. प्रत्यक्षमापी उपकरणों द्वारा(by direct measuring instruments)

किसी भी सतह फिनिश का निरीक्षण प्रत्यक्ष माफी उपकरणों द्वारा भी किया जा सकता है |
इसके लिए यह 3 उपकरण प्रयोग में लाए  जाते है|
1. प्रोफाइलोमीटर(profilometer)
2. स्टाइल्स प्रोब उपकरण
3. टामलिम्सन सरफेस मीटर
4. टेलर हाॅबसन टेलीसर्फ

प्रोफाइलोमीटर(profilometer)

इस उपकरण के द्वारा किसी सतह की हिल्स और वैलीज को सूक्ष्म से सूक्ष्म 0.0025 मिलीमीटर तक माप सकते हैं|
प्रोफाइलोमीटर डायल टेस्ट इंडिकेटर की तरह ही कार्य करता है|
यह दो प्रकार के होते हैं
1. यांत्रिक(mechanical)
2. इलेक्ट्रॉनिक(electronic)

1. यांत्रिक(mechanical)

यांत्रिक(mechanical) उपकरण को स्टाइलस कहते है|
यह उपकरण की चाल को यांत्रिक विधि द्वारा पढ़कर इंडिकेटर की सहायता से हिल्स और वैलीज को मापा जा सकता है|
इसका स्टाइलस डायमंड धातु का बना होता है|

2. इलेक्ट्रॉनिक(electronic)

इस उपकरण को टेलीसर्फ के नाम से भी जाना जाता है|
यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होता है, जिसका उपयोग प्रयोगशाला में किया जाता है|
यह एक मोटर की सहायता से चलता है यह चलती हुई सतह से प्राप्त विद्युत तरंगों को बढ़ाकर सतह एंपलीफायर एनालाइजर को भेजता है|
यह एनालाइजर सतह के पैरामीटर की गणना करके अक्षरों के रूप में दर्शाता है|

सरफेस फिनिश के लाभ (advantage of surface finish)

1. अच्छी सर्फेस फिनिश मशीन की गति बढ़ती है|
2. मशीन का जीवनकाल बढ़ता है|
3. मशीन के पुर्जे कम घिसते हैं|
4. घर्षण कम पैदा होता है|
5. लुब्रिकेंट का बहाव स्वतंत्र रूप से रहता है|


इस पोस्ट में हमने जाना सरफेस फिनिश का परिचय, इसके मापने की इकाई, ग्रेड, मापन की विधियां, और सर्फेस फिनिश के लाभ | अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया था क्या इसलिए और कमेंट करना ना भूले

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लिमिट्स और फिट्स की विभिन्न प्रणालियां और मौलिक विचलन क्या है |

 इस पोस्ट में हम लिमिट्स और फिट्स की विभिन्न प्रणालियां, जैसे- ब्रिटिश प्रणाली, भारतीय प्रणाली, और मौलिक विचलन के बारे में विस्तार पूर्वक जानेंगे |

लिमिट्स और फिट्स की विभिन्न प्रणालियां (different systems of limits and fits)

लिमिट्स और फिट की मुख्यत: तीन प्रणालियां प्रचलित हैं|
1. न्यूअल प्रणाली(newell system)
2. ब्रिटिश मानक प्रणाली(British standard system)
3. भारतीय मानक प्रणाली(Indian standard system)

न्यूअल प्रणाली(newell system)

यह प्रणाली होल बेसिस सिस्टम पर आधारित है, जिसमें किसी भी प्रकार की फिटिंग प्राप्त करने के लिए छेद(hole) के व्यास को स्थिर रखा जाता है|
न्यूअल प्रणाली की खोज
इस प्रणाली की खोज न्यूअल इंजीनियरिंग कंपनी ने की, जिससे संसार की बहुत बड़े-बड़े कारखानों में विभिन्न प्रकार की फिटस दिए जाने वाले 1/2 इंच से 6 इंच व्यास तक के छेदों के लिए टोलरेंस निश्चित की |
न्यूअल प्रणाली की श्रेणियां
न्यूअल प्रणाली परीशुद्धता के आधार पर छेदों को A तथा B श्रेणियों में बांटा गया है|
A श्रेणी का प्रयोग अत्यधिक परिशुद्ध कार्यों के लिए किया जाता है|
एवं B श्रेणी का प्रयोग साधारण कार्यों के लिए किया जाता है|
इस प्रणाली में फोर्स फिट, ड्राइविंग फिट, पुश फिट तथा रनिंग फिट आती हैं|
इन फिटों को ड्राइंग पर दिखाने के लिए अक्षरों का प्रयोग किया जाता है, जैसे:- फोर्स फिट के लिए F और पूश फिट के लिए P अक्षर का प्रयोग किया जाता है|
परंतु फिट को दर्शाने के लिए अक्षर x, y, और z, का भी प्रयोग किया जाता है|

2. ब्रिटिश मानक प्रणाली(British standard system)

इस प्रणाली में 21 प्रकार की अलग-अलग फिट प्राप्त करने हेतु छेद (hole) के साइज पर एक तरफा(unilateral) या दो तरफा (bilateral) कुल 16 ग्रेड में टोलरेंस(tolerance) दी जाती है |
ब्रिटिश मानक प्रणाली में छेद(hole) को अंग्रेजी के बड़े अक्षरों में A,B,C, से Z तक दर्शाया जाता है |
तथा शाफ़्ट को अंग्रेजी की इन्हीं छोटे अक्षरों a,b,c,d, से z तक दर्शाया जाता है|
ब्रिटिश मानक प्रणाली की खोज
यह प्रणाली इंग्लैंड में सन 1953 में अपनाई गई थी|
जिसमें 16 ग्रेड की टोलरेंस 1 से 16 नवंबर तक दी जाती है|
यदि किसी छेद या शाफ़्ट पर टोलरेंस दी जाती है तो छेद या शाफ़्ट के निशान के साथ टोलरेंस की ग्रेड का नंबर भी लिया जाता है जैसे - H7, g6 आदि |

3. भारतीय मानक प्रणाली(Indian standard system)

इस प्रणाली में विभिन्न प्रकार की फिट प्राप्त करने के लिए 25 मौलिक विचलनों में बांटा गया है|
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जिन्हें अंग्रेजी के बड़े अक्षरों द्वारा दर्शाया जाता है, जैसे:- छेद के लिए A,B,C,D,E,F,G,H,I,J,K,L,M,N,O,P,Q,R,S,T,U,V,W,X,Y,Z, तथा ZB, और ZC
एवं सॉफ्ट के लिए अंग्रेजी के यही अक्षर छोटे अक्षरों मैं प्रयोग किए जाते हैं|
za,zb, और, zc अधिकतम इंटरफियरेन्स प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं|

भारतीय मानक प्रणाली की खोज

भारत में ब्रिटिश प्रणाली के आधार पर I.S.919 - 1959 के अनुसार पहले यह प्रणाली इंचों मे थी, जिसमें 16 लिमिट्स और फिट्स की प्रणालियां थी, जिन्हें IT 1 से IT 16 तक व्यक्त किया जाता था|
इसके बाद अब भारतीय मानक संस्थान ने I.S.I. प्रणाली के आधार पर I.S.919 - 1959 मे संशोधन करके एक नई प्रणाली 10 दिसंबर 1963 के नाम से प्रकाशित की,
जिसमें लिमिट् और फिट का विस्तार पूर्वक विवेचन किया|
इसके अंतर्गत 500 मिलीमीटर व्यास की शाफ़्ट तथा छेद़ में विभिन्न फिट प्राप्त करने के लिए 18 बेसिक टॉलरेंस की श्रेणियां हैं|
इन श्रेणियों को ITO 1, ITO और IT 1 से IT 16 द्वारा व्यक्त किया जाता है | इन्हें परिशुद्धता ग्रेड भी कहते हैं |

मौलिक विचलन (fundamental division)

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दो विचलनों (divisions) मे से किसी एक को शुन्य रेखा (zero line) के साथ संबंधित टोलरेंस जोन(tolerance zone) दिखाने में सुविधा हो, उसी मौलिक विचलन कहते हैं|

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फिट, और फिट के प्रकार

 इस पोस्ट में हम जानेंगे फिट और फिट के प्रकार, जैसे क्लीयरेंस फिट, इन्टरफीयरेंस फिट, ट्रांजिशन फिट और इनके सभी प्रकार के बारे में |

फिट(fit)

किसी भी मशीन या उपकरण को अलग-अलग अनेक पार्ट्स से असेंबल करके बनाया जाता है|
इनमें से कुछ विशेष पार्ट्स होते हैं जिनकी साइजों को सूक्ष्मता से बनाया जाता है और वे आपस में स्लाइडिंग करते हैं या घूमते है|
इस प्रकार से असेंबल किए जाने वाले पार्ट्स के बीच में क्लीयरेंस (अवकाश) या इन्टरफीयरेंस (व्यतिकरण) की मात्रा से बनने वाले संबंध को फिट कहते हैं |
अन्यथा संक्षेप में हम कह सकते हैं कि असेंबल की हुई 2 पार्ट्स के बीच के संबंध को फिट कहते हैं|

फिट के प्रकार(types of fit)

फिट मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है |
1. क्लीयरेंस फिट या अवकाश फिट (clearance fit)
2. व्यतिकरण फिट या इन्टरफीयरेंस फिट(interference fit)
3. ट्रांजिशन फिट(transition fit)

1. क्लीयरेंस फिट या अवकाश फिट (clearance fit)

जब शाफ्ट किसी होल के अंदर स्वतंत्र घूमे और उसमें किसी भी प्रकार की कोई रुकावट नहीं हो तो उसे क्लीयरेंस फिट कहते हैं |
क्लीयरेंस फिट में शाफ्ट का व्यास छेद के व्यास की अपेक्षा कम रखा जाता है| जिससे कि फिट होने के बाद भी कुछ क्लीयरेंस बनी रहे |

क्लीयरेंस फिट के प्रकार(types of clearance fit)

यह फिट दो प्रकार की होती है|
1. रनिंग फिट(running fit)
2. स्लाइडिंग फिट(sliding fit)

रनिंग फिट(running fit)

रनिंग फिट में धनात्मक अलाउंस रखा जाता है, ताकि दोनों पार्ट्स जब असेंबल किए जाते हैं तो क्लेयरेंस अधिक होने के कारण शाफ्ट छेद में आसानी से और स्वतंत्र रूप से घूम सकती है |
रनिंग फिट के उदाहरण:- बुश बियरिंग और शाफ्ट

स्लाइडिंग फिट(sliding fit)

इस फिट में रनिंग फिट की अपेक्षा थोड़ा कम धनात्मक अलाउंस रखा जाता है
जैसे:- ब्लैंकिंग पंच और शाफ्ट

2. व्यतिकरण फिट या इन्टरफीयरेंस फिट(interference fit)

इन्टरफीयरेंस फिट में 2 पार्ट्स को फिट करते समय थोड़ा सा बल लगाने की आवश्यकता होती है|
इस फिट में होल के साइज की माप को शाफ़्ट कि माप से थोड़ा कम या छोटा रखा जाता है|
इन्टरफीयरेंस फिट का उपयोग वहां किया जाता है जहां किसी पार्ट को स्थाई रूप से फिट करना हो |
इन्टरफीयरेंस फिट मैं ऋणात्मक अलाउंस रखा जाता है |

अधिकतम इन्टरफीयरेंस क्या होता है(maximum interference)

यह इन्टरफीयरेंस फिट में छेद की न्यूनतम माप एवं शाफ़्ट की अधिकतम माप का बीजगणितीय अंतर होता है

न्यूनतम इन्टरफीयरेंस (minimum interference)

यह इन्टरफीयरेंस होल के अधिकतम माप(साइज) तथा शाफ्ट के न्यूनतम माप का बीजगणितीय अंतर होता है|

इन्टरफीयरेंस फिट के प्रकार (types of interference fit)

1. फोर्स फिट(force fit)
2. ड्राइविंग फिट(driving fit)
3. श्रिंकेज फिट(shrinkage fit)

फोर्स फिट(force fit)

इस तरह की फिट में छेद(hole) के साइज को शाफ्ट के साइज की अपेक्षा छोटा रखा जाता है|
फोर्स फिट मैं दोनों पार्टस को किसी यांत्रिक प्रेशर के दबाव से फिट किया जाता है |
इस प्रकार की फिट में हाइड्रोलिक प्रेशर के द्वारा की पार्ट्स को अधिकतर फिट किया जाता है, जैसे- किसी बॉडी के हब मैं स्लीव को फिट करना |

श्रिंकेज फिट(shrinkage fit)

श्रिंकेज फिट में छेद वाले भाग को गर्म किया जाता है जिससे कि छेद का व्यास बढ़ जाता है, और शाफ्ट पर फिट हो जाता है |
इसके पश्चात इसे ठंडा कर लिया जाता है| ठंडा होने पर छेद वाला भाग सिकुड़ता है और मजबूती से शाफ्ट को पकड़ लेता है |
श्रिंकेज फिट का उदाहरण:- बैलगाड़ी के लकड़ी के पहिए पर लोहे की रिम चढ़ाना श्रिंकेज फिट का उदाहरण है |

3.ट्रांजिशन फिट(transition fit)

यह फिट क्लीयरेंस फिट तथा इन्टरफीयरेंस फिट के बीच की फिट होती है |
Transition-fit


ट्रांजिशन फिट छेद तथा शाफ्ट के बीच में इतना अलाउंस रखा जाता है कि मैं तो इससे अधिक क्लीयरेंस और ना ही अधिक इन्टरफीयरेंस रह सके |

पुश फिट(push fit)

इस प्रकार की फिट क्लीयरेंस फिट तथा इन्टरफीयरेंस फिट के बीच की फिट होती है |
इसमें ना तो अधिक क्लीयरेंस होता है और ना अधिक इंटरफीयरेन्स होता है |
पुश फिट में पार्ट को हाथ के दबाव से अथवा मेलेट की सहायता से फिट करते हैं|
पुश फिट का उदाहरण:- डॉवल पेन, लोकेटिंग प्लग आदि |


इस पोस्ट में हमने जाना फिट और फिट के प्रकार, जैसे क्लीयरेंस फिट, इन्टरफीयरेंस फिट, ट्रांजिशन फिट और इनके सभी प्रकार के बारे में |अगर आपको यह है पोस्ट अच्छा लगा तो कृपया शेयर करें|

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एलाउन्स क्या है और यह कितने प्रकार का होता है

 इस पोस्ट में हम जानेंगे एलाउन्स क्या है और यह कितने प्रकार का होता है तथा अधिकतम एलाउन्स और न्यूनतम एलाउन्स क्या होते हैं एवं टोलरेंस और एलाउन्स में क्या अंतर है|

एलाउन्स(allowance)

जब किसी निर्धारित फिट के अनुसार 2 पार्ट्स को बनाकर मिलाया जाता है तो इन दोनों पार्ट्स की माप मैं जानबूझकर जो अंतर रखा जाता है उसे एलाउन्स कहते हैं |
किसी भी प्रकार की फिट के अनुसार एलाउन्स धनात्मक(+) या ऋणात्मक(-) हो सकते हैं |
एलाउन्स का संबंध किसी भी फिट होने वाले 2 पार्ट्स से होता है ना की किसी एक पार्ट(पुर्जे) से होता है |

एलाउन्स के प्रकार(types of allowance)

एलाउन्स दो प्रकार के होते हैं|
1. अधिकतम एलाउन्स(maximum allowance)
2. न्यूनतम एलाउन्स(minimum allowance)

अधिकतम एलाउन्स(maximum allowance)

किसी भी छेद (hole)के साइज के हाई लिमिट और सॉफ्ट के साइज की लो लिमिट के अंतर को अधिकतम एलाउन्स कहते हैं |
अर्थात अधिकतम एलाउन्स प्राप्त करने के लिए छेद के हाई लिमिट साइज में से सॉफ्ट के लो लिमिट साइज को घटाया जाता है |
अधिकतम एलाउन्स में हमेशा छेद (hole)के साइज को सॉफ्ट के साइज से बड़ा रखा जाता है| अर्थात अधिकतम एलाउन्स
हमेशा धनात्मक(+) होता है|
अधिकतम एलाउन्स को रनिंग फिट मैं रखा जाता है|

न्यूनतम एलाउन्स(minimum allowance)

किसी भी छेद (hole)के साइज की लो लिमिट साइज और सॉफ्ट की हाई लिमिट साइज के अंतर को न्यूनतम एलाउन्स कहते हैं|
न्यूनतम एलाउन्स में छेद(hole) साइज को हमेशा सॉफ्ट के साइज से कम रखा जाता है |
न्यूनतम एलाउन्स प्राप्त करने के लिए छेद के लो लिमिट साइज में से सॉफ्ट के हाई लिमिट साइज को घटाया जाता है|

टोलरेंस फॉर एलाउन्स मे अंतर(difference between tolerance and allowance)

टोलरेंस(tolerance)
1. टोलरेंस एक ही जॉब के भिन्न-भिन्न साइजों पर अलग-अलग हो सकती है|
2. टॉलरेंस बेसिक साइज पर आधारित होती है|
3. टॉलरेंस ब्लूप्रिंट या ड्राइंग के अनुसार रखी जाती है|
एलाउन्स(allowance)
1.एलाउन्स दो मिलने या फिट होने वाले पार्ट्स पर दिया जाता है
2. एलाउन्स फिट के प्रकार पर आधारित होता है
3. यह इच्छित फिट प्राप्त करने के लिए जानबूझकर रखा जाता है|



टौलरेन्स क्या है और इसके क्या लाभ है

 

इस पोस्ट में हम जानेगे टौलरेन्स क्या है और इसके क्या लाभ है, तथा टौलरेन्स की पद्धतियां, यूनिलैटरल टौलरेन्स, बाइलेटरल टौलरेन्स, मौलिक टौलरेन्स, और टौलरेन्स जोन को विस्तार से जानेंगे |

टौलरेन्स(tolerance)

किसी पार्ट्स (पुर्जे) के बेसिक साइज पर दी गई हाई लिमिट और लो लिमिट के अंतर को टौलरेन्स कहते हैं |

टौलरेन्स के लाभ(advantage of tolerance)

1. इससे समय की बचत होती है और उत्पादन बढ़ता है|
2. कम कुशल कारीगर से काम लिया जा सकता है|
3. पार्ट्स (पुर्जे) कम रिजेक्ट होते हैं |
4. उत्पादन की लागत कम आती है|
नोट:- टौलरेन्स प्रत्येक पार्ट्स पर अलग-अलग हो सकती है|

टौलरेन्स की पद्धतियां (systems of tolerance)

टौलरेन्स दो प्रणालियों के अनुसार दी जाती है |
1. यूनिलैटरल टौलरेन्स(unilateral tolerance)
2. बाइलेटरल टौलरेन्स(bilateral tolerance)

यूनिलैटरल टौलरेन्स(unilateral tolerance)

इस प्रणाली के अनुसार टौलरेन्स बेसिक साइज पर केवल एक ही तरफ दी जाती है|
अर्थात यह टौलरेन्स केवल एक ही तरफ धनात्मक (+) या ऋणात्मक (-) मैं होती है|

बाइलेटरल टौलरेन्स(bilateral tolerance)

इस प्रणाली में टौलरेन्स बेसिक साइंज के दोनों तरफ की जाती है |
अर्थात यह टौलरेन्स दोनों ही तरफ धनात्मक (+) या ऋणात्मक (-) मैं होती है|

मौलिक टौलरेन्स(fundamental tolerance)

भारतीय मानक प्रणाली(Indian standard system) अर्थात I.S.I. के अनुसार 500 मिलीमीटर व्यास की सॉफ्ट के हॉल में विभिन्न फिट के लिए 18 मौलिक(fundamental) टौलरेन्स की श्रेणियां होती है|
इन श्रेणियों को I T O, I T, से 16 नंबरों द्वारा व्यक्त किया जाता है |
इसे टौलरेन्स की ग्रेड से भी जाना जाता है |
टौलरेन्स का ग्रेड निर्माण(manufacture) की परीशुद्धता के आधार पर निर्धारित किया जाता है |

टौलरेन्स साइज(tolerance size)

टौलरेन्स साइज के अंतर्गत मौलिक डेविएशन, टौलरेन्स का ग्रेड और बेसिक साइज दिया जाता है |
जैसे:- 30 H 5 से आप क्या समझते हैं ?
हल:- होल का बेसिक साइज 30 मिलीमीटर व्यास है|
मौलिक डेविएशन H से प्रकट किया गया है |
टौलरेन्स ग्रेड 5 नंबर से प्रकट किया गया है|

टौलरेन्स जोन(tolerance zone)

हाई लिमिट तथा लो लिमिट के अंतर को टौलरेन्स जोन कहते हैं|
Tolerance-zone,hole-basis-tolerance


टौलरेन्स जोन के माप में बना किसी भी साइज का जॉब सही होता है |
टौलरेन्स जोन की दो प्रणालियां प्रचलित हैं|
1. होल बेसिस टौलरेन्स (hole basis tolerance)
2. शाफ्ट बेसिस टौलरेन्स (shaft basis tolerance)

होल बेसिस टौलरेन्स (hole basis tolerance)

इस प्रणाली में शाफ्ट का साइज स्थिर(fix) रखा जाता है और टौलरेन्स केवल छेद(hole) के साइज पर दी जाती है |
इस प्रणाली का उपयोग अधिकतम किया जाता है | क्योंकि किसी भी मानक साइज के छेद को आसानी से और शुद्धता में बनाया जा सकता है |

शाफ्ट बेसिस टौलरेन्स (shaft basis tolerance)

इस प्रणाली में शाफ्ट का साइज स्थिर रखा जाता है|
और टौलरेन्स केवल छेद के साइज पर दी जाती है |
इस प्रणाली का उपयोग होल बेसिस प्रणाली की अपेक्षा कम किया जाता है |

दोस्तों इस पोस्ट में हमने जाना टौलरेन्स क्या है और इसके क्या लाभ है, तथा टौलरेन्स की पद्धतियां, यूनिलैटरल टौलरेन्स, बाइलेटरल टौलरेन्स, मौलिक टौलरेन्स, और टौलरेन्स जोन को विस्तार से जाना |


लिमिट क्या हैं और यह कितने प्रकार की होती है

 इस पोस्ट में हम जानेंगे की लिमिट क्या है, यह क्यों जरूरी है, और यह कितने प्रकार की होती है तथा हाई लिमिट और लो लिमिट को जानेंगे

लिमिट क्या है

जॉब को बनाते समय उसके बेसिक साइंस से कुछ कम या अधिक बनाने की छूट दी जाती है | बेसिक साइज पर स्वीकृत अधिकतम तथा न्यूनतम सीमा जिस सीमा में पार्ट के साइज बनाए जा सकते हैं, उसे लिमिट (Limit) कहते हैं|

लिमिट को धन (+) या ऋण (-) चिन्हों से दर्शाया जाता है|

लिमिट क्यों जरूरी है

कार्यशाला में जब पुर्जो का उत्पादन किया जाता है तो कारीगर को पूर्जों के बेसिक साइजों को थोड़ा सा बड़ा या छोटा बनाने की छूट दी जाती है जिससे पुर्जो(parts) की गुणवत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि कई कारण ऐसे होते हैं जिनके कारण पूर्जों(parts) को बिल्कुल परिशुद्ध साइज में नहीं बनाया जा सकता है|

इसके अतिरिक्त यदि पार्ट को सही परिशुद्ध बना भी लिया जाता है तो समय अधिक लगता है|

इसलिए पार्ट को बनाने के लिए सीमा निर्धारित कर दी जाती है की पार्ट को बेसिक साइज से कितनी सीमा से अधिक या कम साइज में बनाया जा सकता है|

इससे कारीगर(worker) को पुर्जे(parts) को सही साइज में बनाने में आसानी रहती है और इस सीमा में बने पुर्जे(parts) सही रहते हैं और वह अपना कार्य अच्छे ढंग से करते हैं|

इसीलिए हमें लिमिट की जरूरत होती है जिससे पार्ट्स को बनाने में आसानी हो सके|

लिमिट के प्रकार (types of limit)

लिमिट दो प्रकार की होती हैं|

1. हाई लिमिट(high limit)

2. लो लिमिट(low limit)


हाई लिमिट(high limit)

किसी पार्ट्स के बेसिक साइज पर स्वीकृत सीमा जिससे पुर्जे(parts) को अधिक से अधिक जिस सीमा में उसकी साइज को बनाया जा सकता है, उसे हाई लिमिट कहते हैं|


लो लिमिट(low limit)

किसी पार्ट के बेसिक साइज पर स्वीकृत सीमा जिससे पार्ट को कम से कम जिस सीमा में उसकी साइज को बनाया जा सकता है उसे लो लिमिट कहते हैं |

limit,high-limit,low-limit


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विनिमयशीलता या इंटरचेंजेबिलिटी, और एसैम्बलिंग क्या है, और इनके क्या लाभ है

 इस पोस्ट में हम विनिमयशीलता या इंटरचेंजेबिलिटी, और एसैम्बलिंग क्या है, और इनके क्या लाभ है के बारे में विस्तार से जानेंगे|

विनिमयशीलता या इंटरचेंजेबिलिटी का परिचय(introduction of interchangeability)

जब कभी हमें एक ही तरह के पार्ट्स अधिक मात्रा में बनाने हो जो कि बिल्कुल एक ही साइज, एक ही आकार और परिशुद्धता में एक दूसरे के स्थान पर फिट हो जाएं तो इसे विनिमयशीलता या इंटरचेंजेबिलिटी(interchangeability) कहते हैं|


जब कभी मशीन के किसी खराब या घिसे हुए पुर्जे(parts) को बदलना पड़े तो उसके स्थान पर फिट किए जाने वाला पुर्जा किसी भी कंपनी से मंगवाया गया हो या नया हो तो यह खुर्जा बिना मशीनिंग संक्रिया(machining operation) के आसानी से फिट हो जाए और मशीन पहले की तरह कार्य करने लगे तो पूर्जों के फिट होने कि इस गुण को भी विनिमयशीलता या इंटरचेंजेबिलिटी कहते हैं|
अतः अगर दूसरे शब्दों में कहें तो मशीन या उपकरण में घिसे और टूटे-फूटे पुर्जो के स्थान पर नए पूजों की अदला-बदली को इंटरचेंजेबिलिटी कहते हैं|


एसैम्बलिंग क्या है


जब कोई भी उपकरण या मशीन बनाने के लिए अलग-अलग आकार की पूर्जो(parts) की आवश्यकता होती है, जिन्हें विभिन्न विधियों से बना कर और आपस में जोड़कर उपकरण या मशीन का नाम दिया जाता है इन पार्ट्स को जोड़ने की क्रिया को एसैम्बलिंग(assembling) कहा जाता है|


विनिमयशीलता या इंटरचेंजेबिलिटी के लाभ


विनिमयशीलता या इंटरचेंजेबिलिटी के अनेक लाभ हैं जो इस प्रकार है|
1. असेंबलिंग में कम समय लगता है|
2. पार्ट का रिजेक्शन(rejection) कम होता है|
3. उत्पादन तथा उपयोग के क्षेत्र में बढ़ोतरी होती है|
4. घिसे और टूटे मशीन पुर्जो को बदलने में सुविधा होती है क्योंकि बाजार में मिलने वाले पुर्जे मूल पुर्जे के विवरण के अनुसार बने होते है|


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स्क्रु थ्रेड का छोटा व्यास कैसे मापे

 इस पोस्ट में हम स्क्रु थ्रेड का छोटा व्यास कैसे मापे और इसे मापने वाले उपकरणों के बारे में विस्तार से जानेंगे|

स्क्रु थ्रेड का छोटा व्यास कैसे मापे

स्क्रु थ्रेड के छोटे व्यास को चेक करने के लिए विभिन्न प्रकार के मापी उपकरणों का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार हैं|

1. वर्नियर कैलीपर(Vernier caliper)

2. प्रिज्म(prism)

3. स्लिप गेज तथा प्रीसीजन रोलर्स के द्वारा(slip gauge and precision rollers)

4. टेपर पैरेलल के द्वारा(by taper parallel)

5. ऑप्टिकल प्रोजेक्टर के द्वार(by optical projector)


वर्नियर कैलीपर(Vernier caliper)

वर्नियर कैलीपर की द्वारा भी बाहरी माइनर डायमीटर चेक किया जा सकता है|

इसमें वर्नियर कैलीपर की नाइफ एज प्वाइंटों के द्वारा मापा जाता है|

प्रिज्म(prism)

प्रिज्म की 3 पॉइंट से भी थ्रेड के माइनर डायमीटर को चेक किया जा सकता है|

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यह प्रिज्म अलग-अलग साइजों मैं उपलब्ध होती हैं, जिससे साइजों के अनुसार ही थ्रेड चेक की जाती है|

स्लिप गेज तथा प्रीसीजन रोलर्स के द्वारा(slip gauge and precision rollers)

इस विधि में नट या बेलनाकार चूड़ीदार पार्ट के अंदर स्लिप गेज को सेट इस तरह किया जाता है कि रोलर्स को स्लाइड नहीं कर सके |

Slip-gauge-and-precision-rollers

इस विधि में रोलर तथा स्लिप गेज को प्रयोग करते समय व्यास के प्रीसीजन रोलर को बोल्ट के व्यास में विपरीत साइड में सेट किया जाता है|

टेपर पैरेलल के द्वारा(by taper parallel)

इस विधि में आंतरिक बेलनाकार चूड़ी के बीच में टेपर पैरेलल को फंसा कर सेट किया जाता है|

taper-paraller

इसकी सही सेटिंग के बाद आउटसाइड माइक्रोमीटर के द्वारा माप लिया जाता है|

ऑप्टिकल प्रोजेक्टर के द्वार(by optical projector)

Optical-projector


इस विधि में बाहरी इस ग्रुप ट्रेड की प्रोफाइल को उत्तल लेंस द्वारा बड़ा करके देखने पर उसकी प्रतिबिंब की कौण को प्रोजेक्टर के द्वारा स्क्रीन पर स्पष्ट देख सकते हैं और कौण को आसानी से मापा जा सकता है|

चूड़ियों (थ्रेड) को चेक करने के लिए मापने वाले यंत्र

 इस पोस्ट में हम चूड़ियों (थ्रेड) को चेक करने के लिए मापने वाले यंत्र जैसे- स्क्रु पिच गेज, थ्रेड गेज, रिंग गेज, स्क्रु थ्रेड कैलीपर गेज, स्क्रु थ्रेड माइक्रोमीटर, थ्री वायर विधि आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे |

चूड़ियों (थ्रेड) को चेक करने के लिए मापने वाले यंत्र

चूड़ी बनाने के बाद उनकी एक्यूरेसी एवं उनकी उपयोगिता के आधार पर जो एक निश्चित माप होनी चाहिए उसको चेक करने के लिए हम चूड़ियों को विभिन्न प्रकार के गेज के माध्यम से जांच करते हैं जो निम्नलिखित हैं|
1. स्क्रु पिच गेज(screw pitch gauge)
2. थ्रेड गेज(thread gauge)
3. थ्रेड रिंग गेज(thread ring gauge)
4. स्क्रु थ्रेड कैलीपर गेज(screw thread caliper gauge)
5. स्क्रु थ्रेड माइक्रोमीटर(screw thread micrometre)
6. थ्री वायर विधि(3 wire process)

स्क्रु पिच गेज(screw pitch gauge)

screw-pitch-gauge
screw-pitch-gauge


स्क्रु पिच गेज के द्वारा चूड़ी के आंतरिक भाग तथा बाहरी भाग को चेक किया जाता है |
इसमें पिच के अनुसार अलग-अलग ब्लेड लगे होते हैं तथा इन ब्लेडो पर नंबर और साइज लिखा होता है|
पिच की शुद्धता चेक करने के लिए स्क्रु पिच गेज एक अच्छा साधन है|

थ्रेड गेज(thread gauge)

थ्रेड गेज से यह चेक किया जाता है की चूड़ी की दी गई टोलरेंस लिमिट में है अथवा नहीं |
इस गेज से किसी जॉब की आंतरिक चूड़ियों को चेक किया जाता है|
Thread-gauge


इस गेज के GO सिरे की तरफ से प्रोफाइल कौण, पिच, मेजर डायमीटर, माइनर डायमीटर, और प्रभावी व्यास आदि को चेक किया जाता है|

थ्रेड रिंग गेज(thread ring gauge)

यह गेज GO तथा NOT GO दो गेज के सेट के रूप में मिलते हैं|
Thread-ring-gauge


थ्रेड रिंग गेज की सहायता से बाहरी चूड़ियों को शुद्धता से चेक किया जा सकता है|
इसके द्वारा यह चेक किया जाता है कि किसी जॉब कि थ्रेड दी गई टोलरेंस लिमिट में है अथवा नहीं|

स्क्रु थ्रेड कैलीपर गेज(screw thread caliper gauge)

इस गेज का इस्तेमाल(उपयोग) अन्य गेजो की तुलना में अधिक किया जाता है|
इस प्रकार की गेज का प्रयोग बाहरी चूड़ियां चेक करने के लिए किया जाता है|
Screw-thread-caliper-gauge


स्क्रु थ्रेड कैलीपर गेज 2 एंन्विल  लगे होते हैं, जिनके बीच में चूड़ियों को लगाकर चेक किया जाता है|
यह गेज एक उच्च प्रभावी गेज होता है|

स्क्रु थ्रेड माइक्रोमीटर(screw thread micrometre)

यह माइक्रोमीटर आउटसाइड माइक्रोमीटर की तरह ही बना होता है|
Screw-thread-micrometre


इसके द्वारा स्क्रु थ्रेड के प्रभावी व्यास(effective diameter) को चेक किया जा सकता है|
इस माइक्रोमीटर की एंन्विल तथा स्पिंडल के प्वाइंटों को बदला जा सकता है|

थ्री वायर विधि(three wire process)

यह एक प्रकार का आउटसाइड माइक्रोमीटर होता है|
इसके स्पिंडल के सिरे पर एक तार(wire) तथा एंन्विल के सिर पर दो तार होल्डरों में फिक्स होते हैं|

three-wire-process
three-wire-process


यह तीनों तार उच्च डिग्री की शुद्धता पर फिनिश करके बनाए जाते हैं|
इस विधि से थ्रेड के प्रभावी व्यास तथा फ्लैंक की आकार को चेक किया जाता है|

दोस्तों इस पोस्ट में हमने जाना चूड़ियों (थ्रेड) को चेक करने के लिए मापने वाले यंत्र के बारे में अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा तो शेयर करें |

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चाल के आधार पर चूड़ियों के प्रकार तथा पिच और लीड में अंतर

इस पोस्ट में हम चाल के आधार पर चूड़ियों के प्रकार तथा पिच और लीड के बीच अंतर एवंम सिंगल स्टार्ट चुड़ी तथा मल्टी स्टार्ट चूड़ियों में अंतर के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे|

चाल के आधार पर चूड़ियों के प्रकार

चाल के आधार पर चूड़ियां तीन प्रकार की होती हैं
1. सिंगल स्टार्ट थ्रेड(single start thread)
2. डबल स्टार्ट थ्रेड(double start thread)
3. मल्टी स्टार्ट थ्रेड(multi start thread)

सिंगल स्टार्ट थ्रेड(single start thread)

इन चूड़ियों में चूड़ी केवल एक स्थान से शुरू होकर अंत तक चली जाती है|
सिंगल स्टार्ट थ्रेड चूड़ी की लीड चूड़ी के पिच के बराबर होती है|

डबल स्टार्ट थ्रेड(double start thread)

डबल स्टार्ट थ्रेड मैं चूड़ी कि लीड चूड़ी की पिच के 2 गुना हो जाती है|
इस प्रकार की चूड़ियों में दो चूड़ियां दो अलग-अलग स्थानों से शुरू होकर अंत तक चली जाती हैं|

मल्टी स्टार्ट थ्रेड(multi start thread)

मल्टी स्टार्ट थ्रेड मे तीन या अधिक चूड़ियां अलग-अलग स्थानों से शुरू होकर अंत तक चली जाती है|
इन चूड़ियों में जितने स्टार्ट की चूड़ियां होती हैं उसमें लीड उस की पिच की उतने ही गुनी हो जाती है, जैसे- तीन स्टार्ट वाली चूड़ी की पिक्चर की तीन गुनी होगी|

पिच और लीड में अंतर(difference between pitch and lead)

1. पिच(pitch)

एक चूड़ी के केंद्र से दूसरी चूड़ी तक के बीच की दूरी को पिच कहते हैं |
पिच चूड़ियों के प्रति इन संख्या पर निर्भर करती है अर्थात पिच= 1/T.P.I.
एक मुंह वाली चूड़ी की पिच व लीड समान होती है|

लीड(Lead)

बोल्ट या पेच एक चक्कर पूरा करने में अपनी दूरी पर जितनी दूर आगे पीछे बड़ता है, उस दूरी को लीड कहते हैं |
लीड चूड़ी की पिक और उसके स्टार्ट पर निर्भर करती है अर्थात लीड= पिच×नंबर ऑफ स्टार्ट
जितने मुंह की चूड़ी होती है लिड पिच से उतनी ही गुना होती है |

सिंगल स्टार्ट चुड़ी तथा मल्टी स्टार्ट चूड़ियों में अंतर(difference between single start thread and multi start thread)

इकहरी चाल चूड़ी(single start thread)

यह एक चाल की चूड़ी होती है |
इन चूड़ियों का प्रारंभिक सिरा एक होता है |
इकहरी चाल चूड़ियां की पूरी लंबाई मैं केवल एक ही चूड़ी शुरू से अंत तक चलती है |
इकहरी चाल चूड़ी मैं लीड और पिच बराबर होते हैं|
यह चूड़ियां दो या दो से अधिक पार्ट्स को जोड़ने के लिए प्रयोग की जाती है|

बहु चाल चूड़ी(multi start thread)

यह चूड़ियां एक से अधिक चाल की जुड़ी होती है|
इन चूड़ियों में एक से अधिक प्रारंभिक सिरे होते हैं|
बहु चाल चूड़ी में समान दूरी पर दो या तीन या इससे अधिक एक ही माप वाली अलग-अलग चूड़ियां एक दूसरे के समांतर चलती हैं |
इस प्रकार की चूड़ी मे जितनी चूड़ियां अधिक होती है लिड उतनी ही गुना हो जाती है|
यह चूड़ियां शीघ्र चाल(quick drive) हेतु प्रयोग में लाई जाती है |

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स्क्रु थ्रेड (पेच चूड़ियों) के प्रकार और उपयोग

 इस पोस्ट में हम पेच चूड़ियों(screw threads) के प्रकार V चूड़ियों के प्रकार तथा स्क्वेअर एवं स्क्वेअर संशोधित चूड़ियों के बारे में विस्तार से जानेगे

स्क्रु थ्रेड(पेच चूड़ियों) के प्रकार | types of screw threads

स्क्रु थ्रेड(पेच चूड़ियों) को निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जा सकता है -
1. V चूड़ियां(V - threads)
2. स्क्वेयर एंड स्क्वेयर संशोधित चूड़ियां(square and Square modified threads)

1. V चूड़ियां(V - threads)

इस प्रकार की चूड़ियां अंग्रेजी के अक्षर V के आकार की होती है|
यह चूड़ियां मानक साइज(STANDARD SIZE) में पाई जाती है|

V चूड़ियों के प्रकार(types of V threads)

V चूड़ियां सात प्रकार की होती है-
1. ब्रिटिश स्टैंडर्ड विटवर्थ थ्रेड(B.S.W.)
2. ब्रिटिश स्टैंडर्ड फाइन थ्रेड(B.S.F.)
3. ब्रिटिश स्टैंडर्ड पाइप थ्रेड(B.S.P.)
4. ब्रिटिश एसोसिएशन थ्रेड(B.A.)
5. शार्प वी थ्रेड(Sharp V threads)
6. अमेरिकन नेशनल थ्रेड(American national thread)
7. भारतीय स्टैंडर्ड थ्रेड(Indian standard thread)

ब्रिटिश स्टैंडर्ड विटवर्थ थ्रेड(B.S.W.)

इन चूड़ियों को बीएसडब्ल्यू चूड़ियां भी कहते है|
B.S.W. चूड़ियों का आविष्कार जोसफ विट वर्थ ने सन 1841 ईस्वी में किया|
B.S.W-thread,
B.S.W-thread


यह चूड़ियां मानक साइज(standard size) मैं मिलती हैं |
B.S.W. चूड़ियों का उपयोग साधारण कार्यों नट बोल्ट स्टड तथा पेचो में किया जाता है|
B.S.W. चूड़ियों कार कोण 55 डिग्री होता है|
इन चूड़ियों की गहराई=0.6403P होती है|

ब्रिटिश स्टैंडर्ड फाइन थ्रेड(B.S.F.)

यह चूड़ियां B.S.W. चूड़ियों के समान ही होती हैं परंतु अंतर केवल इतना होता है कि इन की पिच बारीक होती है|
B.S.W. चूड़ियों की अपेक्षा B.S.F. चूड़ियों की प्रति इंच संख्या अधिक होती है|
इन चूड़ियों का अधिकतर प्रयोग कंपन्न वाले पार्ट के साथ किया जाता है |
चूड़ियों का उपयोग अधिकतर ऑटोमोबाइल्स वायुयान या मशीन टूल्स में किया जाता है|
B.S.F. चूड़ियों का कोण 55 डिग्री होता है |
इस प्रकार की चूड़ियों की पिच =1/प्रति इंच दांतो की संख्या(T.P.I.)
चूड़ियों की गहराई =0.6403 P होती है|
चूड़ियों की त्रिज्या =0.1373 P होती है|

ब्रिटिश स्टैंडर्ड पाइप थ्रेड(B.S.P.)

इस प्रकार की चूड़िया पानी गैस तथा भाप के पाइपों में काटी जाती है|
B.S.P. चूड़ियों का उपयोग वाटर जॉइंट बनाने के लिए किया जाता है |
इस प्रकार की चूड़ियां व्यास में प्रति फुट 3/ 4 इंच टेपर होती हैं|
B.S.P. चूड़ियों का कोण 55 डिग्री होता है|
इस प्रकार की चूड़ियों की पिच =1/प्रति इंच दांतो की संख्या(T.P.I.) होती है|

ब्रिटिश एसोसिएशन थ्रेड(B.A.)

यह चूड़ियां बहुत बारीक होती है और यह छोटे-छोटे पेचों में काटी जाती है |
British-association-thread
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यह चूड़ियां 0 से 25 नवंबर तक होती है|
परंतु कार्यशाला मैं अधिकतर जीरो से 10 नंबर तक ही चूड़ियां प्रयोग की जाती है|
जीरो नंबर की इन चूड़ियों का आउटसाइड डायमीटर 6 मिलीमीटर तक होता है|
इन चूड़ियों का अधिकतर उपयोग रेडियो घड़ियों कैमरो तथा टेलीफोन आदि में किया जाता है |
इन चूड़ियों को बीए (B.A.) चूड़ियां भी कहते हैं|
इन चूड़ियों का कौन 47 1/2 डिग्री होता है|
इस प्रकार की चूड़ियों की पिच =1/प्रति इंच दांतो की संख्या(T.P.I.) होती है|
B.A चूड़ियों की गहराई = 0.6P होती है|
इनकी त्रिज्या = 2×P/11=0.1818P होती है|

शार्प वी थ्रेड(Sharp V threads)

इस  की चूड़ियां V आकृति में बनी होती है
इन चूड़ियों की रूट और क्रेस्ट बहुत ही नुकीले होते हैं तथा यह बहुत जल्दी खराब हो जाती हैं |
इन चूड़ियों का कौन 60° डिग्री होता है
इन चूड़ियों की गहराई =0.866P होती है|

अमेरिकन नेशनल थ्रेड(American national thread)

इन चूड़ियों को सेलर चूड़ियां(seller thread) भी कहते हैं|
यह चूड़ियां अमेरिकन मशीनों में पाई जाती हैं|
यह कौरस और फाइंन दो ग्रेडों में पाई जाती है|
इन चूड़ियों का अधिकतर उपयोग हवाई जहाज मोटर गाड़ी आदि बनाने में किया जाता है|
इस प्रकार की चूड़ियों की रूट और क्रेस्ट चपटे(flat)
होते हैं|
इन चूड़ियों का कौन 60° डिग्री होता है|

भारतीय स्टैंडर्ड थ्रेड(Indian standard thread)

यह चूड़ियां भारतीय मानक संस्थान आई एस आई,(I. S. I.) से मान्यता प्राप्त होती हैं|
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यह चूड़ियां आई एस आई के अनुसार जीरो  0.25 मिलीमीटर से 300 मिली मीटर तक के व्यासों में पाई जाती हैं|
भारतीय स्टैंडर्ड थ्रेड का कोण 60 डिग्री होता है|

स्क्वेयर एंड स्क्वेयर संशोधित चूड़ियां(square and Square modified threads)

यह चूड़ियां V आकार की चूड़ियों से अधिक मजबूत होती हैं तथा ये निम्नलिखित प्रकार में पाई जाती हैं|
1. स्क्वेयर थ्रेड(square thread)
2. एक्मे थ्रेड(acme thread)
3. नकल थ्रेड(knuckle thread)
4. बटरैस थ्रेड(buttress thread)

स्क्वेयर थ्रेड(square thread)

यह चूड़ियां अधिक मजबूत होती हैं|
स्क्वेयर थ्रेड का अधिकतम उपयोग वॉइस के स्पिण्डल, प्रेस, स्क्रु जैक, आदि में किया जाता है |
इन चूड़ियों के लिए फ्लैट की मोटाई = 0.5P होती है|
इन चूड़ियों के लिए स्पेस की मोटाई = 0.5P होती है|

एक्मे थ्रेड(acme thread)

यह चूड़ियां बहुत ही अधिक मजबूत होती है|

acme-thread
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इनका अधिकतर प्रयोग पावर संचरण(power transmission) मैं किया जाता है|
लेथ मशीन की लीड स्क्रु पर इस प्रकार की चूड़ियां बनाई जाती है, जिससे स्प्लिट नट को आसानी से जोड़ करने और अलग करके ऑटोमेटिक फिड ली जा सकती है|
एक्मे चूड़ियों का कौण 29 डिग्री होता है|

नकल थ्रेड(knuckle thread)

नकल चूड़ियों में चूड़ी के रूट और क्रेस्ट अर्ध्द गोल(half round) बने होते हैं|
यह चूड़ियां रोल करके बनाई जाती है क्योंकि रोल करके बनाई गई चूड़ी टुल से बनी चूड़ी की अपेक्षा अधिक मजबूत होती है|
इन चूड़ियों का अधिकतर उपयोग रेलवे कपलिंग बनाने के लिए किया जाता है|

बटरैस थ्रेड(buttress thread)

यह चूड़ियां एक साइड अक्ष के समकोण पर तथा दूसरी साइड 45 डिग्री के कोण पर बनी होती है|

buttress-thread
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इन चूड़ियों का अधिकतर प्रयोग वहां किया जाता है जहां एक ही दिशा में अधिक दबाव पड़ता हो |
बटरैस चूड़ी का कोण 45 डिग्री होता है |

चूड़ियों का परिचय, उपयोग, गति के आधार पर प्रकार, और चूड़ी के भाग

आज हम जानेंगे चूड़ियों(threads) का परिचय, कार्य के अनुसार चूड़ियों के उपयोग, गति के आधार पर चूड़ियों के प्रकार, तथा चूड़ी के भाग के बारे में |

चूड़ियों का परिचय(introduction of threads)

किसी गोल आकार को जॉब के बाहरी या भीतरी सतह पर एक समान दूरी से लगातार बढ़ती हुई घुमावदार झुकी हुई झिर्रियों(grooves) को चूड़ियां कहते हैं|

बाहरी चूड़ियां(external threads)

जॉब के बाहरी सतह पर बनी चूड़ियों को बाहरी चूड़ियां(external threads) कहते हैं| जैसे-बोल्ट, स्टड, पेच और स्पिन्डल आदि में कटी चूड़ियां |

भीतरी चूड़ियां(internal threads)

जॉब के गोल छेद में कटी चूड़ियों को भीतरी चूड़ियां(internal threads) कहते हैं, जैसे- नट, या जॉब के अन्य छेदो में कटी चूड़ियां |

कार्य के अनुसार चूड़ियों के उपयोग (threads use according to works)

अलग-अलग कार्यों के अनुसार चूड़ियों का उपयोग निम्न प्रकार से कर सकते हैं|
1. बंधक की तरह(as a fastener)
2. गति देने के लिए(for transmit motion)
3. भार उठाने के लिए(for load lifting)
4. सही माप के लिए(for accurate measurement)
5. गति को कम करने के लिए(for speed reduction)
6. समायोजन के लिए(for adjustment)

बंधक की तरह(as a fastener)

पेच चूड़ियों(screw threads) की सहायता से दो या दो से अधिक भागों(parts) को आपस में आसानी से जोड़ा जा सकता है, जैसे- नट, बोल्ट, तथा स्क्रू द्वारा

गति देने के लिए(for transmit motion)

पेच चूड़ियों की सहायता से गति भी दी जा सकती है, जैसे-लेथ मशीन की लीड स्क्रु और रैक एवं पिनियन |

भार उठाने के लिए(for load lifting)

पेच चूड़ियों(screw threads) की सहायता से कम बल लगाकर अधिक भार को आसानी से उठाया जा सकता है, जैसे-स्क्रु जैक की सहायता से भारी वाहनों को आसानी से उठाया जा सकता है |

सही माप के लिए(for accurate measurement)

पेच चूड़ियों(screw threads) का प्रयोग करके सही माप ले सकते हैं, जैसे- माइक्रोमीटर द्वारा मांप लेना |
गति को कम करने के लिए(for speed reduction)
चूड़ियों की सहायता से गति को कम किया जा सकता है|जैसे- वर्म तथा वर्म व्हील  के द्वारा गति को कम करना |

समायोजन के लिए(for adjustment)

चूड़ियों(threads) की सहायता से किसी वस्तु को समायोजन कर सकते हैं, जैसे- डाई स्टॉक में समायोजन(adjustment) करना |

गति के आधार पर चूड़ियों के प्रकार(types of threads according to speed)

गति के आधार पर सभी चूड़ियां दो प्रकार की होती हैं|
1. वामाव्रत चूड़ियां(left hand threads)
2. दक्षिणावर्त चूड़ियां(right hand threads)


वामाव्रत चूड़ियां(left hand threads)

Left-hand-threads,वामावर्त-चुडिया
Left-hand-threads


यह चूड़ियां घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में घूमाते समय कसी जाती है|
इन चूड़ियों का झुकाव(inclination) बायी और होता है |

दक्षिणावर्त चूड़ियां(right hand threads)

Right-hand-threads,दक्षिणावर्त-चूड़ियां
Right-hand-threads


दक्षिणावर्त चूड़ियां घड़ी की सुई की दिशा(clockwise) में घूमाते समय कसी जाती हैं |
इन चूड़ियों का झुकाव(inclination) दायीं और होता है | इन चूड़ियों का उपयोग अधिकतर इंजीनियरिंग कार्यों में किया जाता है |

चूड़ी के भाग(parts of threads)

चूड़ी के भागों को आप इस चित्र के माध्यम से देख व समझ सकते हैं|

Parts-of-threads,चूड़ी-के-भाग
Parts-of-threads

1. मेजर डायमीटर(major diameter)

यह किसी चूड़ी का सबसे बड़ा व्यास होता है|

2. माइनर डायमीटर(minor diameter)

यहां किसी चूड़ी का सबसे छोटा व्यास होता है |

3. पिच डायमीटर(pitch diameter)

यह किसी चूड़ी का काल्पनिक व्यास होता है जो कि मेजर डायमीटर तथा माइनर डायमीटर के बीच में स्थित होता है यदि मेजर डायमीटर में से चूड़ी की अकेली गहराई घटा दी जाए तो पिच डायमीटर ज्ञात हो जाता है |

4. अक्ष(axis)

किसी पेज(screw) के बीचो बीच केंद्र(centre) से उसकी पूरी लंबाई तक गुजरती हुई सीधी रेखा को अक्ष(axis) कहते हैं |

5. पिच(pitch)

एक चूड़ी(thread) के केंद्र(centre) से दूसरी चूड़ी के केंद्र के बीच की दूरी को पिच कहते हैं |

6. लीड(lead)

पेज चूड़ी(screw thread) एक चक्कर में जितनी दूरी तय करती है वह उसकी लीड कहलाती है सिंगल स्टड वाली चूड़ी में लीड और पिच बराबर होती है |

7. क्रेस्ट(crest)

चूड़ी की दोनों साइडें ऊपर की तरफ जिस स्थान पर आकर मिलती हैं उसे क्रेस्ट कहते हैं |
8. रूट(root)
पेच चूड़ी की दोनों साइडें नीचे की तरफ जिस स्थान पर आकर मिलती हैं उसे रूट कहते हैं |

9. फ्लेंक या साइड(falank aur side)

यह चूड़ी की तिरछी सतह होती है, जो क्रेस्ट और रूट को मिलाती है |

10. चूड़ी का कोण(angle of thread)

पेज चूड़ी की दोनों साइड आपस में मिलने के बाद जो कौण बनता है उसे चूड़ी का कौण कहते हैं |

11. हेलिक्स कोण(helix angle)

पिच डायमीटर अक्ष के लंबवत पेच चूड़ी के हेलिक्स के द्वारा बनाया हुआ कोण हेलिक्स कोण कहलाता है |

12. चूड़ी की गहराई(depth of threads)

पेच चूड़ी के क्रेस्ट और रूट के बीच की दूरी को यदि अक्ष के लंबवत मान लिया जाए तो वह चूड़ी की गहराई कहलाती है |

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समानान्तर ब्लॉक और उसके प्रकार

 इस पोस्ट में हम जानेंगे समानान्तर ब्लॉक किस धातु के बनाए जाते हैं समानांतर ब्लॉक का उपयोग क्या है तथा यह कितने प्रकार के होते हैं|

समानान्तर ब्लॉक | parallel blocks

समानांतर ब्लॉक एक समान आकृति में बनाए गए बहुत सारे ब्लॉक  होते हैं यह ग्रेड तथा नंबरों के आधार पर कार्य करते हैं जोकि इन ब्लॉकों पर मार्किंग के द्वारा अंकित किया जाता है|

समानान्तर ब्लॉक किस धातु के बनाए जाते हैं

समानांतर ब्लॉक हाई कार्बन स्टील के द्वारा बनाये जाते है तथा इनको हार्ड एवं टैम्पर किया जाता है|

समानांतर ब्लॉक का उपयोग | use of parallel block

इनका उपयोग किसी जॉब या कार्यखण्ड की मशीनींग करते समय जॉब की सेटिंग के लिए किया जाता है|
यह चौड़ाई और मोटाई में समान्तर होते हैं|

समानान्तर ब्लॉक के प्रकार | types of parallel blocks

समानांतर ब्लॉक दो प्रकार के होते हैं|
1. ठोस समानान्तर ब्लॉक(solid parallel blocks)
2. समायोज्य समानान्तर ब्लॉक(adjustable parallel blocks)

ठोस समानान्तर ब्लॉक(solid parallel blocks)

इस प्रकार के समानान्तर ब्लॉक का अधिकतम प्रयोग किया जाता है|
ठोस समानान्तर ब्लॉकों पर नंबर अंकित होते हैं |
यह 2 ग्रेड में ग्रेड A तथा ग्रेड B मैं बनाये जाते है|
ग्रेड A वाले समानान्तर ब्लॉक अधिक परिशुद्ध होते हैं इसलिए इनका प्रयोग टूल रूम में किया जाता है|
और ग्रेड B वाले समानांतर ब्लॉक का प्रयोग कार्यशाला में सामान्य कार्यों के लिए किया जाता है|

solid-parallel-blocks,thos-samanantar-block,
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इनको टाइप ग्रेड साइज तथा नंबर आदि से नामित किया जाता है जैसे-  सोलिड पैरेलर AS×10×100 IS : 42 41 आदि |

ठोस समानान्तर ब्लॉक के साइज (table size of solid parallel blocks)

ठोस समानांतर ब्लॉक की साइज आप निम्नलिखित टेबल में चित्र के माध्यम से देख व समझ सकते हैं|

size-of-solid-parallel-blocks,ठोस-समानांतर-ब्लॉक-का-साइज
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समायोज्य समानान्तर ब्लॉक(adjustable parallel blocks)

समायोज्य समानांतर ब्लॉक 2  सेट के रूप में मिलते हैं|
यह टेपर में बने होते है और परस्पर यह एक दूसरे पर स्लाइड करते हैं|
Adjustable-parallel-blocks,समायोजित-समानांतर-ब्लॉक
Adjustable-parallel-blocks


इनके सेट में एक ब्लॉक में खांचा(groove) कटा होता है तथा दूसरे ब्लॉक में टैंग बनी होती है|
इस प्रकार के ब्लॉक का उपयोग जॉब की मशीनींग करते समय जॉब की सेटिंग में वॉइस टेबल पर जॉब तो सहारा देने के लिए तथा जॉब को ऊंचाई में सेट करने के लिए किया जाता है |
समायोजित समानांतर ब्लॉक को इसकी टाइप साइज तथा मानक नंबर से नामित किया जाता है |
जैसे- adjustable parallel 10×131.5 : 42 41

समायोज्य समानांतर ब्लॉक की साइज(table size of adjustable parallel block)

समायोज्य समानांतर ब्लॉक की साइज आप निम्नलिखित  टेबल में देख सकते हैं|

size-of-adjustable-parallel-block, समायोजित-समानांतर-ब्लॉक-का-साइज
size-of-adjustable-parallel-block


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आधार कार्ड में दस्तावेज़ अपलोड Document upload in Aadhar Card

 इस पोस्ट में हम जानेगे आधार कार्ड में दस्तावेज़ अपलोड करना क्यों जरुरी है और आधार कार्ड में दस्तावेज़ अपलोड करने की प्रक्रिया क्या है | आधा...