लिमिट्स और फिट्स की विभिन्न प्रणालियां और मौलिक विचलन क्या है |

 इस पोस्ट में हम लिमिट्स और फिट्स की विभिन्न प्रणालियां, जैसे- ब्रिटिश प्रणाली, भारतीय प्रणाली, और मौलिक विचलन के बारे में विस्तार पूर्वक जानेंगे |

लिमिट्स और फिट्स की विभिन्न प्रणालियां (different systems of limits and fits)

लिमिट्स और फिट की मुख्यत: तीन प्रणालियां प्रचलित हैं|
1. न्यूअल प्रणाली(newell system)
2. ब्रिटिश मानक प्रणाली(British standard system)
3. भारतीय मानक प्रणाली(Indian standard system)

न्यूअल प्रणाली(newell system)

यह प्रणाली होल बेसिस सिस्टम पर आधारित है, जिसमें किसी भी प्रकार की फिटिंग प्राप्त करने के लिए छेद(hole) के व्यास को स्थिर रखा जाता है|
न्यूअल प्रणाली की खोज
इस प्रणाली की खोज न्यूअल इंजीनियरिंग कंपनी ने की, जिससे संसार की बहुत बड़े-बड़े कारखानों में विभिन्न प्रकार की फिटस दिए जाने वाले 1/2 इंच से 6 इंच व्यास तक के छेदों के लिए टोलरेंस निश्चित की |
न्यूअल प्रणाली की श्रेणियां
न्यूअल प्रणाली परीशुद्धता के आधार पर छेदों को A तथा B श्रेणियों में बांटा गया है|
A श्रेणी का प्रयोग अत्यधिक परिशुद्ध कार्यों के लिए किया जाता है|
एवं B श्रेणी का प्रयोग साधारण कार्यों के लिए किया जाता है|
इस प्रणाली में फोर्स फिट, ड्राइविंग फिट, पुश फिट तथा रनिंग फिट आती हैं|
इन फिटों को ड्राइंग पर दिखाने के लिए अक्षरों का प्रयोग किया जाता है, जैसे:- फोर्स फिट के लिए F और पूश फिट के लिए P अक्षर का प्रयोग किया जाता है|
परंतु फिट को दर्शाने के लिए अक्षर x, y, और z, का भी प्रयोग किया जाता है|

2. ब्रिटिश मानक प्रणाली(British standard system)

इस प्रणाली में 21 प्रकार की अलग-अलग फिट प्राप्त करने हेतु छेद (hole) के साइज पर एक तरफा(unilateral) या दो तरफा (bilateral) कुल 16 ग्रेड में टोलरेंस(tolerance) दी जाती है |
ब्रिटिश मानक प्रणाली में छेद(hole) को अंग्रेजी के बड़े अक्षरों में A,B,C, से Z तक दर्शाया जाता है |
तथा शाफ़्ट को अंग्रेजी की इन्हीं छोटे अक्षरों a,b,c,d, से z तक दर्शाया जाता है|
ब्रिटिश मानक प्रणाली की खोज
यह प्रणाली इंग्लैंड में सन 1953 में अपनाई गई थी|
जिसमें 16 ग्रेड की टोलरेंस 1 से 16 नवंबर तक दी जाती है|
यदि किसी छेद या शाफ़्ट पर टोलरेंस दी जाती है तो छेद या शाफ़्ट के निशान के साथ टोलरेंस की ग्रेड का नंबर भी लिया जाता है जैसे - H7, g6 आदि |

3. भारतीय मानक प्रणाली(Indian standard system)

इस प्रणाली में विभिन्न प्रकार की फिट प्राप्त करने के लिए 25 मौलिक विचलनों में बांटा गया है|
Limit-fits-ki-ISI-pranali


जिन्हें अंग्रेजी के बड़े अक्षरों द्वारा दर्शाया जाता है, जैसे:- छेद के लिए A,B,C,D,E,F,G,H,I,J,K,L,M,N,O,P,Q,R,S,T,U,V,W,X,Y,Z, तथा ZB, और ZC
एवं सॉफ्ट के लिए अंग्रेजी के यही अक्षर छोटे अक्षरों मैं प्रयोग किए जाते हैं|
za,zb, और, zc अधिकतम इंटरफियरेन्स प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं|

भारतीय मानक प्रणाली की खोज

भारत में ब्रिटिश प्रणाली के आधार पर I.S.919 - 1959 के अनुसार पहले यह प्रणाली इंचों मे थी, जिसमें 16 लिमिट्स और फिट्स की प्रणालियां थी, जिन्हें IT 1 से IT 16 तक व्यक्त किया जाता था|
इसके बाद अब भारतीय मानक संस्थान ने I.S.I. प्रणाली के आधार पर I.S.919 - 1959 मे संशोधन करके एक नई प्रणाली 10 दिसंबर 1963 के नाम से प्रकाशित की,
जिसमें लिमिट् और फिट का विस्तार पूर्वक विवेचन किया|
इसके अंतर्गत 500 मिलीमीटर व्यास की शाफ़्ट तथा छेद़ में विभिन्न फिट प्राप्त करने के लिए 18 बेसिक टॉलरेंस की श्रेणियां हैं|
इन श्रेणियों को ITO 1, ITO और IT 1 से IT 16 द्वारा व्यक्त किया जाता है | इन्हें परिशुद्धता ग्रेड भी कहते हैं |

मौलिक विचलन (fundamental division)

Maulik-vichalan,fundamental-division


दो विचलनों (divisions) मे से किसी एक को शुन्य रेखा (zero line) के साथ संबंधित टोलरेंस जोन(tolerance zone) दिखाने में सुविधा हो, उसी मौलिक विचलन कहते हैं|

इस पोस्ट में हमने जाना लिमिट्स और फिट्स की विभिन्न प्रणालियां, जैसे- ब्रिटिश प्रणाली, भारतीय प्रणाली, और मौलिक विचलन के बारे में अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया तो कृपया ज्यादा से ज्यादा शेयर करें

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