आधार कार्ड में दस्तावेज़ अपलोड Document upload in Aadhar Card

 इस पोस्ट में हम जानेगे आधार कार्ड में दस्तावेज़ अपलोड करना क्यों जरुरी है और आधार कार्ड में दस्तावेज़ अपलोड करने की प्रक्रिया क्या है |

आधार कार्ड में दस्तावेज़ अपलोड Document upload in Aadhar Card




आधार कार्ड में अब सभी के लिए दस्तावेज़ अपलोड करना जरुरी कर दिया है आधार कार्ड में दस्तावेज़ अपलोड करने की प्रकिर्या  को 14/06/2024  तक फ्री रखा गया है इसके बाद हो सकता है की इस प्रकिर्या के लिए फीस ली जाये इसलिए आप सभी 14/06/2024 से पहले अपने आध्हर कार्ड में Document upload कर लेवे |

आधार कार्ड में दस्तावेज़ अपलोड करना क्यों जरुरी है 

आधार कार्ड में दस्तावेज़ अपलोड करना इसलिए जरुरी है क्योंकि यह आपकी पहचान और पते के सटीक प्रमाण के लिए आवश्यक है। यहां इसके कुछ मुख्य कारण दिए गए हैं:-

सत्यापन और सटीकता

  • पहचान की पुष्टि

आधार में अपलोड किए गए दस्तावेज़ आपकी पहचान और पते की पुष्टि करते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि आपके आधार डेटा में गलत जानकारी नहीं है।

  • सटीक रिकॉर्ड
दस्तावेज़ अपलोड करने से आपके रिकॉर्ड में सटीकता बनी रहती है, जिससे सरकारी योजनाओं और सेवाओं का सही तरीके से लाभ उठाया जा सकता है।

धोखाधड़ी की रोकथाम:-

  • फर्जी पहचान की रोकथाम
सटीक दस्तावेज़ के बिना, फर्जी पहचान बनाना आसान हो सकता है। दस्तावेज़ अपलोड करने से यह सुनिश्चित होता है कि केवल सही व्यक्ति ही आधार नंबर का उपयोग कर सकते हैं।

  • डुप्लिकेट आधार से बचाव
दस्तावेज़ अपलोड करने से यह सुनिश्चित होता है कि एक व्यक्ति के नाम पर एक से अधिक आधार कार्ड जारी नहीं किए जा सकें।

सरकारी योजनाओं का लाभ

  • योजनाओं की पात्रता
विभिन्न सरकारी योजनाओं और सब्सिडियों का लाभ उठाने के लिए आपके आधार कार्ड का सत्यापन आवश्यक है। सही दस्तावेज़ के बिना, आप इन योजनाओं के लाभ से वंचित रह सकते हैं।
  • डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर
सब्सिडी और सरकारी लाभ सीधे आपके बैंक खाते में भेजने के लिए आधार का उपयोग किया जाता है। सही दस्तावेज़ सुनिश्चित करते हैं कि यह प्रक्रिया बिना किसी रुकावट के पूरी हो।

कानूनी आवश्यकताएं:-

  • नियम और प्रावधान
भारतीय कानूनों के अनुसार, पहचान पत्रों के लिए सटीक और प्रमाणित जानकारी आवश्यक है। आधार में दस्तावेज़ अपलोड करना इस नियम का पालन करता है।
  • केवाईसी (KYC) प्रक्रिया
बैंकिंग, मोबाइल कनेक्शन, और अन्य सेवाओं के लिए केवाईसी प्रक्रिया के तहत आधार का उपयोग होता है, जिसके लिए सटीक दस्तावेज़ आवश्यक होते हैं।

अपडेट और करेक्शन:-

  • जानकारी अपडेट करना
यदि आपके व्यक्तिगत विवरण जैसे नाम, पता, जन्म तिथि आदि में कोई बदलाव होता है, तो सही दस्तावेज़ अपलोड करने से यह सुनिश्चित होता है कि आपके आधार कार्ड में यह जानकारी सही ढंग से अपडेट हो।
  • त्रुटियों का सुधार
  • यदि आधार कार्ड में कोई गलती है, तो दस्तावेज़ अपलोड करने से यह गलती सुधारी जा सकती है।

दस्तावेज़ अपलोड करना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि आपका आधार कार्ड आपकी सही पहचान और पते को दर्शाता है, जिससे आप सरकारी सेवाओं और लाभों का सही तरीके से उपयोग कर सकते हैं। इसके साथ ही, यह प्रक्रिया आपकी जानकारी को सुरक्षित और सटीक रखती है, जो कि विभिन्न सेवाओं और कानूनी आवश्यकताओं के लिए जरूरी है।

आप अधिक जानकारी के लिए UIDAI की आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते हैं।

आधार कार्ड में दस्तावेज़ अपलोड करने की प्रक्रिया

ऑनलाइन प्रक्रिया:

आधार की वेबसाइट पर जाएं:

  • UIDAI की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं
  1. लॉगिन करें:

  • "My Aadhaar" सेक्शन में जाकर "Update Your Aadhaar" पर क्लिक करें।
  • इसके बाद, "Update Demographics Data & Check Status" पर क्लिक करें।
  • आपसे आपका आधार नंबर और ओटीपी (जो आपके पंजीकृत मोबाइल नंबर पर आएगा) मांगा जाएगा।
  1. अपडेट रिक्वेस्ट:

  • लॉगिन करने के बाद, आपको "Update Demographics Data" पर क्लिक करना है।
  • यहां पर आपको वे विवरण चुनने होंगे जिन्हें आप अपडेट करना चाहते हैं (जैसे नाम, पता, जन्म तिथि आदि)।
  1. दस्तावेज़ अपलोड करें:

  • आपने जो विवरण अपडेट करने के लिए चुने हैं, उनके अनुरूप दस्तावेज़ अपलोड करें।
  • दस्तावेज़ की स्कैन कॉपी को अपलोड करें। यह पीडीएफ, जेपीजी, या पीएनजी फॉर्मेट में होनी चाहिए।
  1. भुगतान करें:

  • दस्तावेज़ अपलोड करने के बाद, आपको मामूली शुल्क का भुगतान करना होगा (आमतौर पर ₹50)।
  • भुगतान विभिन्न माध्यमों (क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग आदि) से किया जा सकता है।
  •  14/06/2024 तक यह प्रकिया  आप फ्री में कर सकते है |
सबमिट करें:
  • दस्तावेज़ अपलोड और भुगतान के बाद, आपका अनुरोध सबमिट हो जाएगा।
  • आपको एक URN (Update Request Number) मिलेगा जिससे आप अपने अपडेट स्टेटस को ट्रैक कर सकते हैं

ऑफलाइन प्रक्रिया:

  1. आधार केंद्र पर जाएं:

  • अपने नजदीकी आधार नामांकन केंद्र (Aadhaar Enrolment Centre) पर जाएं। आप इसे UIDAI पोर्टल पर ढूंढ सकते हैं।
  1. फॉर्म भरें:

  • आधार अपडेट/सुधार फॉर्म प्राप्त करें और इसे भरें।
  1. दस्तावेज़ जमा करें:

  • फॉर्म के साथ आवश्यक दस्तावेजों की फोटोकॉपी संलग्न करें और ओरिजिनल दस्तावेज़ भी साथ ले जाएं। ओरिजिनल दस्तावेज़ सिर्फ सत्यापन के लिए देखे जाएंगे और वापस कर दिए जाएंगे।
  1. बायोमेट्रिक डेटा:

  • आधार केंद्र पर आपके बायोमेट्रिक डेटा (फिंगरप्रिंट और आईरिस स्कैन) को पुनः लिया जा सकता है, यदि आवश्यक हो।
  1. भुगतान:

  • आपको ₹50 का मामूली शुल्क देना होगा।
  1. रसीद प्राप्त करें:

  • फॉर्म और दस्तावेज़ जमा करने के बाद, आपको एक रसीद मिलेगी जिसमें URN (Update Request Number) होगा। इससे आप अपने अनुरोध की स्थिति को ट्रैक कर सकते हैं।

आवश्यक दस्तावेज़:

  • पहचान प्रमाण (POI): पासपोर्ट, पैन कार्ड, वोटर आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस आदि।
  • पता प्रमाण (POA): बिजली बिल, पानी का बिल, बैंक स्टेटमेंट, रेंट एग्रीमेंट आदि।
  • जन्म तिथि प्रमाण: जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, SSLC सर्टिफिकेट आदि।

टूलरूम लेथ मसीन (Toolroom Lathe Machine)

 इस पोस्ट में हम जानेगे टूलरूम लेथ मसीन (Toolroom Lathe Machine), टूलरूम लेथ मसीन की विशेषताएँ, और इसके उपयोग के बारे में 


टूलरूम लेथ मसीन (Toolroom Lathe Machine)

टूलरूम लेथ मसीन (Toolroom Lathe Machine) उच्च-सटीकता वाली मशीन होती है, जिसे विशेष रूप से टूलमेकिंग, डाई-मेकिंग, और जटिल मशीनिंग कार्यों के लिए डिजाइन किया गया है। इसे विशेष रूप से उच्च सटीकता और मापन की आवश्यकता वाले कार्यों के लिए उपयोग किया जाता है। टूलरूम लेथ मसीन विशेष रूप से उन कार्यों के लिए उपयोगी होती है जहां उच्च सटीकता और जटिलता की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग छोटे से बड़े वर्कशॉप्स और औद्योगिक अनुप्रयोगों में व्यापक रूप से किया जाता है। आइए इस मशीन के कुछ अन्य पहलुओं के बारे में जाने |

टूलरूम लेथ मसीन की विशेषताएँ ( features of toolroom lathe machine)

  • उच्च सटीकता

टूलरूम लेथ में उच्च सटीकता वाले तंत्र होते हैं, जो उच्च परिशुद्धता (precision) और सूक्ष्म मापदंडों के लिए उपयुक्त हैं। ये मशीने उच्च परिशुद्धता वाली ग्राइंडिंग (grinding) कर सकती हैं।

  • विभिन्न प्रकार की ड्राइव

टूलरूम लेथ को बेल्ट ड्राइव, मोटर ड्राइव, और रिड्यूसर ड्राइव में विभाजित किया जा सकता है। यह विभिन्न ड्राइव स्रोतों के अनुसार संशोधित किया जा सकता है।

  • स्पीड और पावर

ये मशीने आमतौर पर 100 से 3000 आरपीएम (RPM) की गति तक पहुँच सकती हैं। कुछ टूलरूम लेथ मशीने 1750 आरपीएम की बेस स्पीड तक पहुँच सकती हैं

  • सीएनसी कंट्रोल

आधुनिक टूलरूम लेथ में सीएनसी (CNC) कंट्रोल भी शामिल होता है, जो मशीन को और अधिक सटीक और स्वचालित बनाता है। सीएनसी टूलरूम लेथ का उपयोग एयरोस्पेस, ऑटोमोटिव और इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोजेक्ट्स में किया जा सकता है |

टूलरूम लेथ मसीन के उपयोग ( use of toolroom lathe machine)

  • टूलमेकिंग (Toolmaking)
कटर, डाई, और मोल्ड्स का निर्माण: टूलरूम लेथ मसीन का उपयोग उच्च सटीकता वाले कटर, डाई, और मोल्ड्स बनाने के लिए किया जाता है। यह मशीन बारीक कटिंग और फिनिशिंग प्रदान करती है, जिससे जटिल और सटीक टूल्स का निर्माण संभव होता है
  • डाई-मेकिंग (Die-making)

प्रेस टूल्स और फोर्जिंग डाई का निर्माण: टूलरूम लेथ का उपयोग प्रेस टूल्स और फोर्जिंग डाई जैसे जटिल उपकरणों को बनाने के लिए किया जाता है। इन उपकरणों की निर्माण प्रक्रिया में उच्च सटीकता की आवश्यकता होती है जो टूलरूम लेथ प्रदान कर सकती है

  • प्रोटोटाइपिंग (Prototyping)

नए उत्पादों के प्रोटोटाइप: इंजीनियर और डिजाइनर नए उत्पादों के प्रोटोटाइप बनाने के लिए टूलरूम लेथ का उपयोग करते हैं। यह उन्हें जटिल डिज़ाइनों को सटीक रूप से बनाने और परीक्षण करने की सुविधा प्रदान करता है।

  • मरम्मत और रखरखाव (Repair and Maintenance)
मशीन पार्ट्स की मरम्मत: टूलरूम लेथ का उपयोग मशीन पार्ट्स की मरम्मत और पुनर्निर्माण के लिए किया जाता है। इसके द्वारा पुराने और क्षतिग्रस्त हिस्सों को सटीकता से पुनः निर्मित किया जा सकता है।

  • प्रशिक्षण और शिक्षा (Training and Education)
इंजीनियरिंग और तकनीकी शिक्षा: टूलरूम लेथ मसीन का उपयोग इंजीनियरिंग कॉलेजों और तकनीकी संस्थानों में प्रशिक्षण के लिए किया जाता है। यह छात्रों को सटीक मशीनिंग और टूलमेकिंग की तकनीकों को सीखने में मदद करता है।

  • सीएनसी ऑपरेशन्स (CNC Operations)
उच्च सटीकता वाली सीएनसी मशीनिंग: सीएनसी टूलरूम लेथ मसीन का उपयोग उन्नत और सटीक मशीनिंग कार्यों के लिए किया जाता है। इसका उपयोग एयरोस्पेस, ऑटोमोटिव, और इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोजेक्ट्स में किया जाता है, जहां उच्च परिशुद्धता की आवश्यकता होती है

  • अन्य विशेष कार्य (Specialized Operations)
थ्रेडिंग, ग्राइंडिंग, और फिनिशिंग: टूलरूम लेथ का उपयोग थ्रेडिंग, ग्राइंडिंग, और फिनिशिंग के विशेष कार्यों के लिए भी किया जाता है। यह मशीन छोटे और जटिल भागों पर सटीकता से काम कर सकती है।
इन सभी उपयोगों के कारण, टूलरूम लेथ मसीन विभिन्न उद्योगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह मशीन उच्च सटीकता, विविधता और विश्वसनीयता प्रदान करती है, जिससे इसे मैन्युफैक्चरिंग और मरम्मत कार्यों में एक अनिवार्य उपकरण माना जाता है।​

सेंटर लेथ मसीन (Center Lathe Machine)

इस पोस्ट में हम जानेगे  सेंटर लेथ मसीन (Center Lathe Machine)  के बारे में जेसे सेंटर लेथ मसीन के मुख्य भाग, सेंटर लेथ मसीन की कार्यप्रणाली, सेंटर लेथ मसीन के उपयोग, सेंटर लेथ मसीन के लाभ, आदि के बारे में 

 सेंटर लेथ मसीन (Center Lathe Machine) 

Center Lathe Machine एक बहुप्रचलित और बहुउद्देश्यीय मशीन टूल है, इस मशीन का  उपयोग धातुओं, लकड़ी, और अन्य सामग्रियों को काटने, घिसाई करने, ड्रिलिंग करने, तथा थ्रेडिंग करने के लिए किया जाता है। यह मसीन विभिन्न प्रकार के औद्योगिक कार्यों और निर्माण प्रक्रियाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण है।  सेंटर लेथ मसीन को इंजन लेथ भी कहा जाता है | यह मैन्युअल और सीएनसी (कंप्यूटर न्यूमेरिकल कंट्रोल) दोनों प्रकार में उपलब्ध है और इसे मशीन शॉप्स और फैक्ट्रीज में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

सेंटर लेथ मसीन के मुख्य भाग

सेंटर लेथ मसीन के मुख्य भाग निम्नलिखित हैं:


बेड (Bed) 

यह मसीन का बेस होता है, जो सभी भागों को सपोर्ट करता है और मसीन की स्थिरता सुनिश्चित करता है।


हेडस्टॉक (Headstock)

यह बेड के एक सिरे पर स्थित होता है और इसमें स्पिंडल होता है। स्पिंडल वर्कपीस को पकड़ता है और घुमाता है।


टेलस्टॉक (Tailstock)

यह बेड के दूसरे सिरे पर स्थित होता है और वर्कपीस को समर्थन देता है। इसका उपयोग ड्रिलिंग और अन्य प्रक्रियाओं के लिए भी किया जाता है।


कैरेज (Carriage)

 यह बेड पर चलता है और टूल को वर्कपीस की ओर ले जाता है। इसमें क्रॉस-स्लाइड, टूल पोस्ट और कम्पाउंड रेस्ट होते हैं।


लीड स्क्रू और फीड रॉड (Lead Screw and Feed Rod)

यह मसीन के ऑटोमेटिक फीड और थ्रेडिंग ऑपरेशन के लिए उपयोग होता है।


सेंटर लेथ मसीन की कार्यप्रणाली

सेंटर लेथ मसीन की कार्यप्रणाली निम्नलिखित चरणों में विभाजित की जा सकती है:


  • वर्कपीस को सेट करना - वर्कपीस को स्पिंडल पर या चक में फिक्स करना।
  • टूल को सेट करना -टूल को टूल पोस्ट में फिक्स करना और इसे सही पोजीशन में लाना।
  • मसीन को सेट करना -  स्पिंडल की गति और फीड रेट सेट करना।
  • कटिंग ऑपरेशन - मसीन को चालू करके वर्कपीस को घुमाना और टूल को वर्कपीस की ओर बढ़ाना।
  • मेजरमेंट और फिनिशिंग -  आवश्यकतानुसार माप लेना और फिनिशिंग टच देना।


सेंटर लेथ मसीन के उपयोग

सेंटर लेथ मसीन का उपयोग विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए किया जाता है:


  • सिलिंड्रिकल टर्निंग -  वर्कपीस को सिलिंड्रिकल आकार में काटना।

  • फेसिंग - वर्कपीस के सिरों को समतल करना।

  • ड्रिलिंग - वर्कपीस में छेद बनाना।
  • बोरिंग - वर्कपीस के छेद का आकार बढ़ाना।
  • थ्रेडिंग -  वर्कपीस पर थ्रेड्स बनाना।
  • नटिंग और चेम्फरिंग - वर्कपीस के किनारों को गोल या चेम्फर करना।


सेंटर लेथ मसीन के  लाभ

बहुउद्देश्यीय - एक ही मसीन पर विभिन्न प्रकार के कार्य किए जा सकते हैं।
सटीकता - उच्च सटीकता और फिनिशिंग प्राप्त की जा सकती है।
सरल ऑपरेशन - आसानी से ऑपरेट और मेंटेन की जा सकती है।

सेंटर लेथ मसीन मशीनीकरण और निर्माण उद्योग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे उच्च गुणवत्ता और सटीकता वाले उत्पाद बनाए जा सकते हैं।


लेथ मसीन के प्रकार Types of lath Machine

 लेथ मसीन के प्रकार Types of lath Machine

 दोस्तों इस पोस्ट में हम जानेंगे लेथ मसीन के प्रकार Types of lath Machine जेसे  Center Lathe Machine, Toolroom Lathe Machine, Capstan and Turret Lathe Machine, Special Purpose Lathe Machine, CNC Lathe Machine आदि के बारे में 

लेथ मसीन के प्रकार (Types of lath Machine)

 लेथ मसीन समान्यत कई प्रकार की होती हैं, जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए किया जाता है। मुख्य लेथ मसीन के प्रकार निम्नलिखित हैं |

  • सेंटर लेथ मसीन (Center Lathe Machine)
  • टूलरूम लेथ मसीन (Toolroom Lathe Machine)
  • कैप्स्टन और टर्रेट लेथ मसीन (Capstan and Turret Lathe Machine)
  • स्पेशल पर्पस लेथ मसीन (Special Purpose Lathe Machine)
  • सीएनसी लेथ मसीन (CNC Lathe Machine)
  • प्लानर लेथ मसीन (Plainer Lathe Machine)
  • बेंच लेथ मसीन (Bench Lathe Machine)
  • वर्टिकल लेथ मसीन (Vertical Lathe Machine)

आइये जानते है इन मशीनो के बारे में |

सेंटर लेथ मसीन (Center Lathe Machine)

 यह सबसे सामान्य प्रकार की लेथ मसीन है, इसका  उपयोग सामान्य काटने, घिसाई, ड्रिलिंग, और थ्रेडिंग के लिए किया जाता है। इसे इंजन लेथ भी कहा जाता हैं।


टूलरूम लेथ मसीन (Toolroom Lathe Machine)

यह बहुत ही उच्च सटीकता वाली मसीन है, इसका  उपयोग टूल बनाने, मरम्मत करने में और मरम्मत के कार्यो के लिए किया जाता है। इसमें मशीन में फाइन फीड्स और माइक्रोमीटर समायोजन होते हैं।


कैप्स्टन और टर्रेट लेथ मसीन (Capstan and Turret Lathe Machine)

 यह मसीन बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए डिजाइन की गई हैं। इनमें अनेक टूल्स को एक साथ रखा जा सकता है, इसमें एक बार में विभिन्न प्रकार के कार्य किए जा सकते हैं।


स्पेशल पर्पस लेथ मसीन (Special Purpose Lathe Machine)

इस मशीन का  उपयोग विशेष प्रकार के कार्यों के लिए किया जाता है, जैसे कि फ्लूटिंग, नॉचिंग, और अन्य विशेष आपरेसन में किया जाता है ।


सीएनसी लेथ मसीन (CNC Lathe Machine)

यह मशीन कंप्यूटर नियंत्रित मसीन है, इसका उपयोग उच्च सटीकता और स्वचालित 

उत्पादन के लिए किया जाता है। इस मशीन में कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के माध्यम से जटिल आकार और डिज़ाइन बनाए जा सकते हैं।


प्लानर लेथ मसीन (Plainer Lathe Machine)

प्लानर मसीन का उपयोग बड़े और भारी वर्कपीस के लिए किया जाता है, जिनकी लंबाई अधिक होती है।


बेंच लेथ मसीन (Bench Lathe Machine)

यह छोटी और पोर्टेबल लेथ मसीन होती है, जिसे बेंच पर रखा जाता है। इसका उपयोग छोटे कार्यों और शौकिया कामों के लिए किया जाता है।


वर्टिकल लेथ मसीन (Vertical Lathe Machine)

 इस मसीन में स्पिंडल वर्टिकल पोजीशन में होता है और इसका उपयोग बड़े और भारी वर्कपीस के लिए किया जाता है, जो वर्टिकल पोजीशन में काम करने के लिए उपयुक्त होते हैं।


इन विभिन्न प्रकार की लेथ मसीनों का उपयोग विभिन्न उद्योगों और कार्यशालाओं में उनकी आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है।


लेथ मसीन क्या ह प्रकार और ऊपयोग (what are the types and uses of lathe machine)

 लेथ मसीन क्या ह (What Is Lathe Machine)

लेथ मशीन (Lathe Machine) एक उपकरण है जो मेटल या विभिन्न अन्य सामग्री को घूर्णन करने और आकार देने के लिए उपयोग होता है। यह एक प्रकार की मशीन टूल है जिसका प्रमुख काम चक्रवाती गति में वस्त्राल प्रक्रिया को संचालित करना होता है।

लेथ मशीन के मुख्य हिस्से शीर्ष प्लेट, बेड, कार्रवाईयों की गाइड, स्पिंडल, टूल पोस्ट, टूल पोस्ट होल्डर, और टेलस्कोपिक स्टॉक से मिलकर बने होते हैं।

लेथ मशीन के द्वारा वस्त्राल कार्रवाई किसी सामग्री को घूमा जाता है, और यह वस्त्राल घूर्णन सामग्री के आकार, आकार, समता, और सतह की स्थिरता को बदलने में मदद करता है। यह बारीक कार्रवाई, धातु सिरों की उत्पत्ति, थ्रेडिंग, चमकदार काम, गुड़िया या पेड़ पर चर्चा के लिए उपयोग होता है।

लेथ मशीन विभिन्न आकार, क्षमता, और उद्देश्यों के साथ उपलब्ध होती हैं, और इसे मैकेनिकल शॉप्स, उद्योग, ग्राहकों, और विज्ञान और अनुसंधान क्षेत्र में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

लेथ मसीन के प्रकार (Types of Lathe Machine)

लेथ मशीन के कई प्रकार होते हैं, जो निम्नलिखित हैं: 1. इंजीन लेथ (Engine Lathe): यह सबसे आम और प्रचलित लेथ मशीन है। इसका उपयोग छोटे और मध्यम आकार के वस्त्राल कार्यों के लिए होता है। 2. स्पीड लेथ (Speed Lathe): यह लेथ मशीन बहुत उच्च चक्रवाती गति प्रदान करती है और छोटे कार्यों के लिए उपयोगी होती है, जैसे चमकदार कार्य और धातु के ट्रिमिंग कार्यों में। 3. टरेट लेथ (Turret Lathe): यह एक ऑटोमेटेड लेथ होती है जिसमें एक टरेट हेड होता है जो विभिन्न उपकरणों को स्वतः परिवर्तित करता है। इसका उपयोग छोटे वस्त्राल उत्पादन और बार स्टॉक के साथ काम करने के लिए किया जाता है। 4. यूनिवर्सल लेथ (Universal Lathe): यह लेथ मशीन एक यूनिवर्सल टरेट हेड के साथ आता है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए किया जा सकता है, जैसे फेसिंग, थ्रेडिंग, बोरिंग, और गियर कटिंग। 5. वर्टिकल लेथ (Vertical Lathe): इसमें भूमिगत टरेट हेड होता है और यह बड़े और भारी वस्त्राल कार्यों के लिए उपयोगी होता है, जैसे गियर और फ्लाइ व्हील निर्माण। 6. स्पेशल लेथ (Special Purpose Lathe): यह विशेष उद्देश्यों के लिए डिज़ाइन की गई लेथ होती है जैसे ऑर्नामेंटल लेथ, एक्सल स्लीप लेथ, और क्रैंकशाफ्ट लेथ। ये कुछ प्रमुख लेथ मशीनों के प्रकार हैं, हालांकि और भी बहुत सारे विशेष प्रकार के लेथ मशीन उपलब्ध होते हैं जो विभिन्न कार्यों के लिए उपयोगी होते हैं।

लेथ मसीन का ऊपयोग (Use of lethe Machine)

लेथ मशीन का उपयोग विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए किया जाता है। यहां कुछ मुख्य उपयोगों की एक सूची है: 1. धातु कार्य: लेथ मशीन धातु के कार्यों को करने के लिए उपयोगी होता है, जैसे कटाई, चमकदार कार्य, थ्रेडिंग, फेसिंग, बोरिंग, और टर्निंग। 2. वस्त्राल निर्माण: लेथ मशीन का उपयोग वस्त्राल उत्पादों के निर्माण में किया जाता है, जैसे सिलेंडरिकल प्रवाल, गियर, बुशिंग, और फ्लाइ व्हील। 3. लेथ ऑपरेशन्स: लेथ मशीन से विभिन्न ऑपरेशन्स की जा सकती हैं जैसे कि टर्निंग (वस्त्राल परिवर्तन), फेसिंग (वस्त्राल सतह), थ्रेडिंग (धागा उत्पादन), ग्रूविंग (नाली या गड्ढा उत्पादन), बोरिंग (गहराई उत्पादन), कॉपींग (प्रतिरूपण), टेपिंग (टेपरिंग उत्पादन), और स्पिरलिंग (कोने का उत्पादन)। 4. प्रतिरूपण और नकल: लेथ मशीन का उपयोग प्रतिरूपण (किसी आदर्श आकार की नकल बनाना) और नकल (एक आदर्श का उत्पादन करने के लिए नकल करना) में किया जाता है। 5. एक्सल स्लीप निर्माण: लेथ मशीन का उपयोग रेलवे एक्सल स्लीप्स (पेड़ पर चर्चा) के निर्माण में भी किया जाता है। लेथ मशीन विभिन्न उद्योगों, मैकेनिकल शॉप्स, उत्पादन इकाइयों, और कार्यशालाओं में व्यापक रूप से प्रयोग होता है।

डिग्री और रेडियन में सम्बन्ध Relationship Between Degree and Radian

 दोस्तों म SUNIL KUMAR YADAV आपका स्वागत करता हु ITI FITTER THEORY के इस अध्याय में इस पोस्ट में हम जानेगे डिग्री और रेडियन में सम्बन्ध  Relationship Between Degree and Radian और डिग्री को रेडियन में बदलने का सूत्र (Degree Ko Radian Me Badalne ka Sutra ) एवं सम्बंधित प्रसन  के बारे मे आइये सुरु करते है 

डिग्री और रेडियन में सम्बन्ध  Relationship Between Degree and Radian

डिग्री और रेडियन दोनों ही मापों के लिए कोण मापन के इकाई होते हैं, लेकिन इनका उपयोग अलग-अलग विज्ञान और गणित के क्षेत्रों में किया जाता है.

डिग्री (Degree): डिग्री एक कोण मापन की मात्रिका है और इसकी एक पूर्ण मान 360 होती है. यह एक संख्यात्मक माप है और बहुत सारे प्राकृतिक और गणितीय विज्ञानों में उपयोग होती है. एक पूर्ण चक्र (360 डिग्री) को क्रमशः 0 से 360 तक मापा जा सकता है. सबसे सामान्य उपयोग मानचित्रों, भूगोल, नेविगेशन, विज्ञान और इंजीनियरी में होता है.

रेडियन (Radian): रेडियन भी कोण मापन की मात्रिका है, लेकिन यह एक प्राकृतिक माप है और इसकी एक पूर्ण मान 2π (या लगभग 6.28) होती है. रेडियन को ज्यामिति, फिजिक्स, गणित, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य विज्ञान क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है. रेडियन को पूर्ण चक्र में 2π बराबर होता है, जिससे कोण की माप को सरल बनाने में मदद मिलती है.

डिग्री को रेडियन में बदलने का सूत्र (Degree Ko Radian Me Badalne ka Sutra )

डिग्री और रेडियन के बीच सम्बन्ध कोणों की मापन पद्धतियों को प्रतिनिधित्व करता है. डिग्री को रेडियन में बदलने के लिए आप π/180 (रेडियन का मान / डिग्री का मान) को गुणा करते हैं और रेडियन को डिग्री में बदलने के लिए आप 180/π (डिग्री का मान / रेडियन का मान) को गुणा करते हैं. यहां एक उदाहरण है: 90 डिग्री को रेडियन में बदलने के लिए, हम π/180 × 90 = π/2 रेडियन प्राप्त करेंगे.


सार्वजनिक संगणकों, वेबसाइटों और कैलकुलेटरों में आमतौर पर डिग्री और रेडियन के बीच रूपांतरण के लिए विशेष बटन या फ़ंक्शन उपलब्ध होते हैं, जिससे आप आसानी से यह रूपांतरण कर सकते हैं.

पर्तियोगी परीक्षा में पूछे गये प्रर्सन 

120 डिग्री को रेडियन में बदलो (isro 2023)

120 डिग्री को रेडियन में बदलने के लिए हम π/180 × 120 का उत्पादन करेंगे:

π/180 × 120 = (π × 120) / 180 = 2π/3

इसलिए, 120 डिग्री को रेडियन में बदलने पर परिणाम 2π/3 होगा।


शीतलक और स्नेहक में अंतर | difference between coolant and lubricants in Hindi

 शीतलक और स्नेहक में अंतर | difference between coolant and lubricants in Hindi

दोस्तो आज हम जानेंगे शीतलक और स्नेहक में अंतर | difference between coolant and lubricants in Hindi

किसी भी काटने वाले उपकरण को ठंडा रखने के लिए शीतलक (coolant) का प्रयोग किया जाता है किसी धातु को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटने और चिप्स के रूप में काटने के लिए भी शीतलक (coolant) का उपयोग किया जाता है |

जबकि स्नेहक(lubricants) का उपयोग किन्हीं दो चलते हुए भागों के बीच घर्षण को कम करने तथा चिकनाहट के लिए किया जाता है स्नेहक मशीन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसे सभी मशीनों पर उपयोग में लाया जाता है जैसे खराद मशीन मिलिंग मशीन आदि की जीवन और दक्षता स्नेहक के प्रयोग से और अधिक बढ़ जाती है |



आइए जानते हैं स्नेहक और शीतलक में अंतर - को हम निम्नलिखित सारणी के माध्यम से जानेंगे |

शीतलक और स्नेहक में अंतर | difference between coolant and lubricants in Hindi

शीतलक ( Coolant )

स्नेहक ( Lubricant )

शीतलक ( Coolant )इसका प्रयोग कार्यखण्ड और कर्तन औजार ( Cutting Cool ) से उत्पन्न हुई ऊष्मा को दूर करने के लिए किया जाता है । स्नेहक ( Lubricant )इसका प्रयोग दो मिलकर चलने वाले पुर्जो ( Parts ) की घर्षण द्वारा उत्पन्न ऊष्मा को कम करने के लिए किया जाता है ।
शीतलक ( Coolant )इसके प्रयोग से छीलन ( Chips ) को औजार ( Tools ) के कलक ( Face ) के साथ वैल्ड नहीं होता है | स्नेहक ( Lubricant )इसके प्रयोग से चलने वाले पुर्जे ( Parts ) जाम नहीं होते हैं ।
शीतलक ( Coolant )औजार ( Tool ) की कर्तन ( Cutting ) क्षमता बढ़ती है । स्नेहक ( Lubricant )इसके प्रयोग से मशीन को उच्च गति ( High Speed ) पर चलाया जा सकता है 1
शीतलक ( Coolant )इसके प्रयोग से कम शक्ति लगाकर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है । स्नेहक ( Lubricant )इसमें भी कम शक्ति लगानी पड़ती है क्योंकि तेल की एक चिकनी परत सम्पर्क गति करने वाले पुर्जों ( Parts ) के बीच बन जाती है ।
शीतलक ( Coolant )कार्यखण्ड या जॉब पर अच्छी फिनिश आती है । स्नेहक ( Lubricant )इसके प्रयोग से मशीन की यथार्थता ( Accuracy ) लम्बे समय तक बनी रहती है ।
शीतलक ( Coolant )इसके प्रयोग से औजार ( Tool ) का जीवन - काल बढ़ता है । स्नेहक ( Lubricant )इसके प्रयोग से मशीन का जीवन - काल बढ़ता है ।
शीतलक ( Coolant )इसके प्रयोग से प्रयोग किये जाने वाले औजार पर जंग नहीं लगता है 1 स्नेहक ( Lubricant )इसके प्रयोग से मशीन के पुर्जों ( Parts ) पर जंग नहीं लगता है ।

इस पोस्ट में हमने शीतलक और स्नेहक में अंतर | difference between coolant and lubricants in Hindi के बारे में विस्तार पूर्वक जानम उम्मीद है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें धन्यवाद 

होनिंग और लैपिंग में अंतर | difference between honng and lapping in Hindi

 होनिंग और लैपिंग में अंतर | difference between honng and lapping in Hindi


दोस्तों इस पोस्ट में हम जानेंगे होनिंग और लैपिंग में अंतर | difference between honng and lapping in Hindi और होनिंग और लैपिंग से संबंधित पूछे जाने वाले प्रश्नों के बारे में

लैपिंग और होनिंग दोनों ही एक मशीनिंग प्रक्रिया है जिसका उपयोग किसी भी प्रकार की धातु की सतह की फिनिशिंग में सुधार करने के लिए किया जाता है लेकिन लैपिंग और होनिंग में कुछ सामान्य अंतर है जिसके बारे में हम पूरी तरह से विस्तार से इस पोस्ट में जानेंगे।

आज के दौर में दोनों मशीनिंग प्रक्रिया पूरी तरह से स्वचालित है जो सीएनसी मशीनों पर आसानी से की जा सकती है |

होनिंग और लैपिंग में निम्नलिखित अंतर है |

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होनिंग और लैपिंग में अंतर | difference between honng and lapping in Hindi


लैपिंग ( Lapping ) होनिंग ( Honing )
लैपिंग ( Lapping )इसमें मुलायम धातु के लैप का प्रयोग लैपिंग कम्पाउन्ड के साथ किया जाता है । होनिंग ( Honing )इसमें होनिंग स्टोन का प्रयोग किया जाता है ।
लैपिंग ( Lapping )यह क्रिया हाथ तथा मशीन दोनों के द्वारा की जा सकती है । होनिंग ( Honing )यह क्रिया केवल मशीन के द्वारा की जाती है ।
लैपिंग ( Lapping )इस क्रिया में शीतलक ( Coolant ) की आवश्यकता नहीं होती है । होनिंग ( Honing )इस क्रिया में शीतलक ( Coolant ) की आवश्यकता होती है ।
लैपिंग ( Lapping )इसमें कार्य करने की गति ( Speed ) कम होती है । होनिंग ( Honing )इसमें कार्य करने की गति ( Speed ) अधिक होती है ।
लैपिंग ( Lapping )यह क्रिया सपाट ( Flat ) और बेलनाकार ( Cylindrical ) दोनों प्रकार की सतहों पर क जाती है । होनिंग ( Honing )यह क्रिया केवल बेलनाकार सतहों ( Cylindrical surface ) पर की जा सकती है ।
लैपिंग ( Lapping )यह ग्लास की तरह फाइन फ़िनिश सतह प्रदान करती है और यह होनिंग से बेहतर है होनिंग ( Honing )यह लैपिंग से कुछ कम सर्फेस फिनिश प्रदान करती है |
लैपिंग ( Lapping )इस प्रक्रिया में IT 01 टॉलरेंस ग्रेड प्राप्त किया जा सकता है। होनिंग ( Honing )इस प्रक्रिया में IT 01 टॉलरेंस ग्रेड प्राप्त किया जा सकता है।
लैपिंग ( Lapping )स्लाइडिंग सतह के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि इसमें अधिक चिपकने वाला होता है। होनिंग ( Honing )स्लाइडिंग सतहों के लिए उपयुक्त है।

लैपिंग और होनिंग के लिए पूछे जाने वाले प्रश्न

लैपिंग के लिए किस अपघर्षक का उपयोग किया जाता है?

वर्कपीस और लैपिंग टूल के बीच बहुत छोटे अपघर्षक कणों के लैपिंग स्लरी या तरल निलंबन का उपयोग किया जाता है।

लैपिंग होनिंग और ग्राइंडिंग में क्या अंतर है?

लैपिंग एक मशीनिंग प्रक्रिया है जिसका उपयोग लैपिंग कंपाउंड का उपयोग करके खुरदरापन और अन्य प्रकार की अनियमितताओं को कम करके सतह की फिनिश में सुधार करने के लिए किया जाता है और होनिंग एक अपघर्षक मशीनिंग प्रक्रिया है जिसका उपयोग एक अपघर्षक होनिंग स्टोन को रगड़ कर धातु वर्कपीस की बेलनाकार सतह को खत्म करने के लिए किया जाता है। घिसाई धातु को काटने का अर्थ है कि घिसने वाले पहिये का उपयोग अवांछित सामग्री को हटाने और परिष्कृत सतह प्रदान करने के लिए किया जाता है।

लैपिंग किसके लिए प्रयोग किया जाता है?

लैपिंग का उपयोग बाहरी के साथ-साथ आंतरिक बेलनाकार सतहों और सपाट सतहों की चिकनी फिनिशिंग के लिए किया जाता है।

होनिंग लैपिंग तथा सुपरफिनिशिंग में क्या अंतर है?

आंतरिक बेलनाकार जॉब की फिनिशिंग के लिए होनिंग का उपयोग किया जाता है और सपाट और बेलनाकार सतहों को खत्म करने के लिए लैपिंग का उपयोग किया जाता है जबकि माइक्रोफिनिशिंग के लिए सुपरफिनिशिंग का उपयोग किया जाता है।

इस पोस्ट में हमने जाना होनिंग और लैपिंग में अंतर | difference between honng and lapping in Hindi और होनिंग और लैपिंग से संबंधित पूछे जाने वाले प्रश्नों के बारे में उम्मीद है यह आपके लिए उपयोगी साबित रहा होगा अगर आपको यह पसंद आया तो कृपया अपने दोस्तों के साथ शेयर करें धन्यवाद

ब्रेजिंग क्या है What Is Brazing in hindi | ब्रेजिंग के प्रकार Types of Brazing ओर ब्रेजिंग के उपयोग

 ब्रेजिंग क्या है What Is Brazing in hindi | ब्रेजिंग के प्रकार Types of Brazing ओर ब्रेजिंग के उपयोग

ब्रेजिंग एक स्थाई बंधक (permanent fastener) है|  यह दो धातुओं को आपस में जोड़ने की एक युक्ति होती है

जैसे हम वेल्डिंग या सोल्डरिंग के द्वारा दो धातुओं को आपस में जोड़ते हैं ठीक उसी प्रकार ब्रेजिंग भी धातुओं को आपस में जोड़ने का कार्य करती है |

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हालांकि यह वेल्डिंग और सोल्डरिंग से थोड़ी सी अलग होती है| जोकि इस पोस्ट में हम आपको बता रहे हैं-  ब्रेजिंग क्या है, What Is Brazing, Brazing करने की विधि, Brazing कितने प्रकार की होती है. Brazing फिलर मैटेरियल, Brazing के उपयोग इन सब के बारे में विस्तार से बताया गया है|

Brazing करने की विधि

  • बेजिंग द्वारा जोड़े जाने वाली सतहों को सबसे पहले सोल्डरिंग की तरह साफ कर लिया जाता है । 
  • फिर इन अंगों पर फ्लक्स लगाकर तथा परस्पर मिलाकर वाँछित जोड़ की आकृति में रखकर पतले तार से बाँध देते हैं , जिससे गरम करने पर ये भाग अलग - अलग न हो जायें । 
  • फ्लक्स के रूप में सुहागा ( Borax ) का उपयोग किया जाता है । कार्य को ब्रेजिंग भट्टी ( Brazing Hearth ) में रखकर इस पर चारों ओर से कोयला या एस्बेस्टस के छोटे टुकड़े भर देते हैं , जिससे वे ऊष्मा को बाहर न निकलने दें । 
  • जब कार्य आवश्यक तापमान तक गरम हो जाता है तो जोड़ पर कठोर सोल्डर या स्पेल्टर ( Spelter ) को रखते हैं ।
  • जैसे - जैसे सोल्डर पिघलता है , यह जोड़ पर बहता है तथा ब्रेजिंग होती है । ब्रेजिंग के बाद कार्य को धीरे - धीरे ठंडा होने दिया जाता है । ठंडा होने पर कार्य को 5 % कास्टिक सोडे के उबलते घोल में डालकर जोड़ पर शेष बचे फ्लक्स को हटा दिया जाता है ।
  •  इसके पश्चात् कार्य को पानी से धोकर साफ कर दिया जाता ब्रेजिंग समान तथा असमान धातुओं को एक गलनीय एलॉय ( 600 ° C से अधिक गलनांक वाला स्पेल्टर ) द्वारा जोड़ने की विधि है । स्पेल्टर अर्थात् फिलर धातु पाउडर के रूप में कॉपर , टिन और जिंक की एक एलॉय है । 
  • कठोर सोल्डरिंग की इस विधि में फ्लक्स ( बोरेक्स ) को प्रयुक्त किया जाता है । कार्य को गरम किया जाता है ताकि स्पेल्टर पिघल सके और स्पेल्टर को प्रयुक्त करके ठंडा होने दिया जाता है । 
  • यह विधि पाईप एवं उनकी फिटिंग्स , टूल शैंक पर कार्बाइड टिप्स , इलैक्ट्रिक पार्ट्स , रेडिएटर्स , कास्ट आयरन को पार्ट्स की मरम्मत एवं हीट एक्सचेन्जर्स को जोड़ने के लिए उपयोगी है । कठोर सोल्डरिंग की इस विधि द्वारा सोफ्ट सोल्डरिंग प्रोसिस की तुलना में अधिक मजबूत जोड़ बनाए जाते हैं । परन्तु बिट के स्थान पर धातु के टुकड़ों को गरम किया जाता पेस्ट को तैयार करने के लिए स्पेल्टर और बोरेक्स ( फ्लक्स ) को मिलाकर पानी की उपयुक्त मात्रा मिलाई जाती है |

ब्रेजिंग के प्रकार ( Types of Brazing )

ब्रेजिंग मुख्य से पांच प्रकार से की जाती है जो निम्न प्रकार है-

  1. टॉर्च ब्रेजिंग ( Torch Brazing ) 
  2. प्रतिरोध ब्रेजिंग ( Resistance Brazing ) 
  3. फरनैस ब्रेजिंग ( Furnace Brazing )
  4. उच्च आवृति ब्रेजिंग ( High Frequency Brazing )
  5. मैटल बाथ ब्रेजिंग ( Metal Bath Brazing )


टॉर्च ब्रेजिंग ( Torch Brazing ) 

ब्रेजिंग के लिए प्रयोग की जाने वाली अत्यंत साधारण विधि है । धातुओं को ब्रेज करने से पहले दोनों टुकड़ों को एक समान रूप से गरम करने के लिए प्राकृतिक ज्वाला ( Natural Flame ) का प्रयोग किया जाता हैं |

प्रयोग किए जाने वाले ईंधन ( Fuel ) ऑक्सी - ऐसिटलीन , ऑक्सी हाइड्रोजन अथवा प्राकृतिक गैस हो सकते हैं । दोनों अवयवों को एक समान ब्रेजिंग तापमान तक लाने के लिए इन्हें जोड़ों के आस - पास भी गरम किया जाता है |

आपरेशन को तेज गति से करने तथा पार्ट्स को समान रूप से गरम करने के लिए प्राय : मल्टीपल टिप टॉर्च का प्रयोग किया जाता है ।

प्रतिरोध ब्रेजिंग ( Resistance Brazing ) 

इस प्रोसिस में ब्रेज किए जाने वाले पार्ट्स में से विद्युत धारा पास की जाती है । धारा के प्रवाह के लिए उत्पन्न हुआ प्रतिरोध ऊष्मा ( Heat ) उत्पन्न करता है और ब्रेजिंग पदार्थ एवं फ्लक्स को पिघला देता है ।

रेजिस्टैंस के उपयोग हेतु जल शीतित कार्बन इलैक्ट्रोड रखने वाली विशेष प्रकार की मशीनें डिजाइन की गई है ।

इस प्रोसेस के मुख्य लाभ- 

( i ) दाब के अंतर्गत गरम करना , 

( ii ) तेजी से गरम और ठंडा करना , ( iii ) ऊष्मा ( Heat पर आसान कंट्रोल तथा ( iv ) अकुशल कारीगरों को स्वीकारना है ।

फरनैस ब्रेजिंग ( Furnace Brazing )

कम से कम ऑक्सिडेशन चाहने वाले जटिल समन्वायोजनों ( Complicate Assemblies ) अथवा बहुत - से जोड़ रखने वाली यूनिटों एवं अधिक संख्या में छोटे - छोटे भागों के उत्पादन कार्यों के लिए प्राय : बिजली से गरमी देने वाली और वातावरण को कंट्रोल करने वाली भट्टियाँ आदर्श रूप से उपयोगी हैं । 

ब्रेज किए जाने वाले अवयव भट्टी में से धीरे - धीरे पास किए जाते हैं । भट्टी की गरमी स्पेल्टर को पिघला देती है और कैपिलरी . क्रिया इसे जोड़ के अंदर ले जाती है ।

बहुत कम फ्लक्स अथवा बिल्कुल नहीं की आवश्यकता होती है क्योंकि भट्टी का सुरक्षित अथवा प्राकृतिक वातावरण ऑक्सीडेशन को कम करता है ।

उच्च आवृति ब्रेजिंग ( High Frequency Brazing)

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धातुओं को जोड़ने की यह तेज और दक्ष ( Efficient ) विधि है । व्यवस्थित करने से पहले पार्ट्स को अच्छी तरह से साफ करके फ्लक्स लगा लेना चाहिए । स्थिति में लाकर कॉइल के अंदर से उच्च आवृत्ति की धारा ( Current ) को तब तक पास किया जाता है जब तक कि टूल ब्रेजिग तापमान तक नहीं पहुंच जाता है । इस विधि की ब्रेजिंग करने की गति ( Speed ) स्वयं ही इसे वृहद उत्पादन ( Mass Production ) की ओर ले जाती है ।

मैटल बाथ ब्रेजिंग ( Metal Bath Brazing )

यह पार्ट्स को डुबोकर की जाने वाली यह विधि है , जिसमें पिघली हुई धातु ( स्पेल्टर ) को छानकर एक कुंड ( Bath ) में भर लिया जाता है और जिन पार्ट्स को जोड़ना होता है , उन पर फ्लक्स लगाकर और कलैम्प करके पिघले हुए स्पेल्टर में डुबोकर ब्रेजिंग कर लो जाती है । इस प्रकार की ब्रेजिंग प्राय : उत्पादन कार्यों के लिए की जाती है ।

 Brazing फिलर मटेरियल

किसी धातु को जोड़ने के लिए जो अतिरिक्त धातु भरी जाती है उसे हम फिलर मटेरियल कहते हैं, इस का गलनांक बिंदु जोड़े जाने वाली धातु से बहुत कम होता है, कुछ ब्रेजिंग तकनीक ऐसी होती हैं जिनमें फिलर मटेरियल को पहले ही ब्रेजिंग पॉइंट पर रखा जाता है, फिलर बनाने के लिए कई प्रकार की धातुओं का इस्तेमाल किया जाता है, जोकि इस प्रकार है -

  • एलमुनियम सिलिकॉन
  • कॉपर सिल्वर
  • कॉपर जिंक
  • सोना सिल्वर
  • सिल्वर
  • निकल मिश्रधातु

ब्रेजिंग के उपयोग ( Applications of Brazing )

  • डाई , पंच एवं कटिंग टूल को बनाने के लिए ।
  • टंगस्टन कार्बाइड जैसे कठोर धातुओं को जोड़ने के लिए । निकल ( Nickel ) और इसकी मिश्र ( Alloy ) धातुओं को जोड़ने के लिए ।
  • स्टीम टरबाइन एवं साइकल के निर्माण के लिए ।
  • कार्बन इस्पातों ( Carbon Steels ) को नॉन -- फैरस धातुओं , जैसे कॉपर या सिल्वर तथा इसके एलॉय से जोड़ने के लिए । 
  • पाइप फिटिंग्स , टैक्स , टूल्स पर कार्बाइड टिप्स , रेडियेटर्स , हीट एक्सचेन्जर्स एवं इलैक्ट्रीकल पार्ट्स को जोड़ने के साथ - साथ ढलाइयों ( Castings ) की मरम्मत करने के लिए Brazing का उपयोग किया जाता है |

इस पोस्ट में हमने ब्रेजिंग क्या है, What Is Brazing, Brazing करने की विधि, Brazing कितने प्रकार की होती है. Brazing फिलर मैटेरियल, Brazing के उपयोग इन सब के बारे विस्तारपूर्वक जाना अगर आप को यह पोस्ट अच्छा लगा तो कृपया इसे अपने दोस्तों में शेयर करें तथा Iti fitter theory से संबंधित इस प्रकार  की जानकारी पाने के लिए कृपया हमारे साथ बने रहे धन्यवाद |

सोल्डरिंग और ब्रेजिंग में अंतर | difference between soldering and Brazing

 सोल्डरिंग और ब्रेजिंग में अंतर | difference between soldering and Brazing

 अगर संक्षेप में देखा जाए तो सोल्डरिंग और ब्रेजिंग के बीच मुख्य अंतर वह तापमान है जिस पर यह प्रक्रिया होती हैं |

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सोल्डरिंग और ब्रेज़िंग दोनों ही अलग-अलग जंवाइंडिंग कंडीशन में इस्तेमाल होने वाली मेटल जांवाइंडिंग प्रोसेस हैं। इन प्रक्रियाओं में अंतर करना थोड़ा भ्रमित करने वाला होता है क्योंकि दोनों प्रक्रियाओं में भराव सामग्री (filler material) का उपयोग किया जाता हैं और वह भी एक महत्वपूर्ण तापमान से नीचे की जाती हैं।

आज हम सोल्डरिंग और ब्रेजिंग में अंतर बताने जा रहे हैं ताकि आप इन प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से जान व समझ  सकें |

सोल्डरिंग और ब्रेज़िंग के बीच में मुख्य अंतर यह होता है कि सोल्डरिंग का उपयोग धातुओं के बीच विद्युत की सहायता से एक मजबूत जोड़ बनाने के लिए किया जाता है जो सभी विद्युत भार का सामना कर सकता है |

और ब्रेज़िंग का उपयोग एक यांत्रिक मजबूत जोड़ बनाने के लिए किया जाता है जो सभी मैकेनिकल भार और तनाव को सहन करने में सहायक होता है|

सोल्डरिंग और ब्रेजिंग के बीच अंतर को निम्नलिखित सारणी के द्वारा समझा जा सकता है |

सोल्डरिंग और ब्रेजिंग में अंतर | difference between soldering and Brazing 

सोल्डरिंग soldering ब्रेजिंग Brazing
सोल्डरिंग(solderingसोल्डरिंग की प्रक्रिया टिन और लैंड की मिश्र धातु से कीब्रेजिंग तांबे और जस्ते की मिश्र धातु से की जाती है । ब्रेजिंग Brazing  ब्रेजिंग तांबे और जस्ते की मिश्र धातु से की जाती है ।
सोल्डरिंग solderingसोल्डर को सोल्डरिंग आयरन से पिघलाकर सोल्डरिंग की जाती है । ब्रेजिंग Brazingस्पेल्टर को जोड़ के मुंह पर रखकर तथा जॉब और स्पेल्टर को प्रत्यक्ष ताप से गर्म करते हैं और स्पेल्टर को पिघलाकर ब्रेजिंग की जाती है ।
सोल्डरिंग solderingसोल्डरिंग के लिए 350 ° C से कम ताप की आवश्यकता होती है | ब्रेजिंग Brazingब्रेजिंग के लिए 600 ° C से अधिक ताप की आवश्यकता होती है ।
सोल्डरिंग solderingसोल्डरिंग में मैटल के अनुसार तरह-तरह के फ्लक्स इस्तेमाल किये जाते हैं । ब्रेजिंग Brazingब्रेजिंग मे सभी तरह की धातुओं के लिए एक ही फ्लक्स सुहागे , ( Barax ) का इस्तेमाल किया जाता है ।
सोल्डरिंग solderingसोल्डरिंग से तैयार जोड़ कमजोर होता है , अतः वह कम्पन्न बर्दाश्त नहीं कर सकता । ब्रेजिंग Brazingबेंजिंग से तैयार जोड़ मजबूत होता है । अतः कम्पन्न बर्दाश्त कर सकता है ।
सोल्डरिंग solderingसोल्डरिंग से तैयार जोड़ पर ताप देकर जुड़े हुए टुकड़ो को पृथक किया जा सकता है । ब्रेजिंग Brazingब्रेजिंग से तैयार जोड पर ताप पहुँचाकर जुड़े हुए दोनों टुकड़ों को ज्यों का त्यों अलग नहीं किया जा सकता ।
सोल्डरिंग solderingएण्टीमनी , ऐल्यूमिनियम और ऐल्यूमिनियम एलॉय को छोड़कर बाकी सभी धातुओं पर सोल्डरिंग की जा सकती है । ब्रेजिंग Brazing700 ° C से कम तापमान पर पिघलने वाले मैटल तथा मैग्नीशियम और मैग्नीशियम एलॉय पर ब्रेजिंग नहीं की जा सकती है ।

सोल्डरिंग (Soldering) सोल्डरिंग के प्रकार Types Of Soldering और सोल्डरिंग फ्लक्स के प्रकार Types Of Soldering Flux

 इस पोस्ट में हम जानेंगे ITI Fitter Theory के अध्याय सोल्डरिंग (Soldering) सोल्डरिंग के प्रकार Types Of Soldering और सोल्डरिंग फ्लक्स के प्रकार Types Of Soldering Flux के बारे में

सोल्डरिंग (Soldering)

दो एक-सी धातुओं, खासतौर पर पतली चादरों (Sheets) को आपस में अर्द्ध-स्थायी रूप से जोड़ने की विधि को सोल्डरिंग कहते हैं। धातु के टुकड़ों को जोड़ने के लिए एक अन्य फिलर मैटल प्रयोग की जाती है और इस जोड़ने वाली धातु को ही सोल्डर (Solder) कहते हैं। सोल्डर को पिघली हुई अवस्था में प्रयोग किया जाता है। सोल्डर मुख्यतः लैड (Lead) और टिन (Tin) की ऐलॉय (Alloy) होती है। कभी-कभी इसका गलनांक (Melting Point) कम करने के लिए दूसरी धातुएं भी मिलाई जाती हैं।
साधारण सोल्डर का गलनांक 200°C होता है।
सोल्डरिंग के लिए उपयोगी फिलर मैटल अर्थात् सोल्डर का गलनांक 350°C से कम ही होना चाहिए।

सोल्डर के मिश्रण एवं उपयोग

Solder-Ke-Misran


सोल्डर के प्रकार Types Of Solder

सोल्डर को दो भागों में बांटा गया है जो निम्नलिखित है|

  1. नरम सोल्डर (Soft Solder)
  2. कठोर सोल्डर (Hard Solder)


नरम सोल्डर (Soft Solder)

इसका प्रयोग प्रायः उन पतली चादरों (Sheets) को जोड़ने के लिए किया जाता है, जिन्हें न तो ऊँचे तापमान का सामना करना पडे और न ही अधिक बल और भार सहना हो। इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे पार्ट्स तथा तारों को जोड़ने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। यह सोल्डर मुख्यतः सीसे (Lead) और टिन (Tin) को मिलाकर बनाया जाता है।
इसके पिघलने का तापमान 150-300°C तक होता है परंतु इसमें विस्मथ और एंटीमनी मिलाने से इसका गलनांक (Melting Point) बहुत कम अर्थात् 56°C तक गिर जाता है। नरम सोल्डर के विभिन्न मिश्रण एवं उपयोग उपरोक्त तालिका में दिखाए गए हैं, इसका इस्तेमाल अधिकतर स्टील, ताँबा, पीतल और टिन आदि की बनी हल्की वस्तुओं को जोड़ने के लिए किया जाता है। इसका सबसे अधिक इस्तेमाल बिजली और रेडियो के कामों में तांबे के तार का जोड़ या कनैक्शन बनाने के लिए किया जाता है।
नरम सोल्डर से बनाए गए जोड़ 300°C तापमान पर खुल जाते हैं, साथ ही यह अधिक मजबूत भी नहीं होता। अतः जहाँ अधिक मजबूती की आवश्यकता हो या जॉब कंपन्न और उच्च तापमान के अधीन हो, वहाँ नरम सोल्डर का प्रयोग न करके कठोर सोल्डर इस्तेमाल किया जाता है।

कठोर सोल्डर (Hard Solder)

यह ताँबे (Copper) और जस्ते (Zinc) की एलॉय है, जिसे सिल्वर सोल्डर बनाने के लिए कभी-कभी थोड़ी-सी चाँदी (Silver) भी मिला ली जाती है।
यह नरम सोल्डर की अपेक्षा अधिक कठोर होता है तथा Hard Solder का गलनांक 350-600°C तक होता है
इसका इस्तेमाल कठोर सोल्डरिंग (Hard Soldering) अर्थात् ब्रेजिंग (Brazing) में किया जाता है। कठोर सोल्डर में जस्ते (Zinc) की मात्रा बढ़ाने से गलनांक कम होता है, ताँबे की मात्रा बढ़ाने से गलनांक बढ़ता है। 700°C से कम तापमान पर पिघलने वाली धातुओं पर ब्रेजिंग नहीं की जा सकती। इसका जोड़ बहुत मजबूत होता है, अतः भारी भार एवं कंपन्न बर्दाश्त करने वाले और ऊँचे तापमान के अधीन रहने वाले जॉब (Jobs) को कठोर सोल्डरिंग अर्थात् ब्रेजिंग के द्वारा जोड़ा जाता है।

स्पैल्टर (Spelter)

यह ताँबा और जस्ता या ताँबा, जस्ता तथा टिन अथवा ताँबा, जस्ता और कैडमियम मिलाकर बनाया जाता है। अधिकतर ताँबा और जस्ता बराबर-बराबर मात्रा में मिलाए जाते हैं।
2/3 भांग तांबा और 1/3 भाग जस्ता मिलाकर तैयार किया गया स्पैल्टर बहुत मजबूत जोड़ तैयार करता है 1/2 भाग ताँबा, 3/8 भाग जस्ता और 1/8 भाग टिन मिलाने से बहुत अच्छा स्पैल्टर तैयार होता है।
यह दानेदार या तार की शक्ल में मिलता है।
इससे अधिकतर ताँबा और स्टील आदि के जोड़ तैयार किए जाते है|
इससे पीतल भी जोड़ा जा सकता है। परन्तु इसके लिए स्पैल्टर का गलनांक कम करना पड़ता है।

सिल्वर सोल्डर (Silcver Solder)

यह ताँबा और चाँदी या ताँबा, चाँदी और जस्ता मिलाकर बनाया जाता है। यह अधिकतर 5 भागं ताँबा, 3 भाग जस्ता और 2 भाग 'चाँदी मिलाकर बनाया जाता है।
Silcver Solder का गलनांक नरम सोल्डर से अधिक लेकिन स्पैल्टर से बहुत कम होता है।
यह पतली पत्ती की शक्ल में मिलता है, जिसे आवश्यकता के अनुसार छोटे-छोटे टुकड़ो में काटा जा सकता है। इससे स्टेनलेस स्टील और निकिल को बहुत सफाई के साथ जोड़ा जा सकता है। वास्तव में यह सुनारी सोल्डर है, जिसका इस्तेमाल सुनार चाँदी और सोने के गहने बनाने में करते हैं।
सिल्वर सोल्डरिंग में उष्मा (Heart) देने के लिए ब्लो-पाइप (Blow Pipe) की आवश्यकता होती है |

सोल्डर वायर तथा स्टिक (Solder Wire and Stick)

साधारण प्रयोग में लाए जाने वाले सोल्डर तार या छड़ों के रूप में मिलते हैं। आवश्यकता के अनुसार इनके अवयवों की मात्रा में भिन्नता होती है क्योंकि ये विभिन्न धातुओं की सोल्डरिंग करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं और इन रूपों में ये स्वचालित ( Automatic) सोल्डरिंग विधियों के लिए भी उपयोग में लाए जाते हैं|

रेजिन कोर्ड सोल्डर (Resin Cored Solder)

सोल्डरिंग करते समय साधारणतया तीन क्रियाओं को एक साथ किया जाता है,
  1. फलक्स (Flux) लगाना
  2. सोल्डरिंग आयरन को गरम करना तथा
  3. सोल्डरिंग करना।
ये तीनों ही कार्य अलग-अलग करने होते हैं। सोल्डरिंग करते समय सबसे पहले फ्लक्स लगाया जाता है और फिर शेष दोनों क्रियाएँ की जाती हैं। यदि तीनों क्रियाएँ एक साथ की जाएं तो समय भी कम लगेगा और जोड़ भी मजबूत बनेगा। इसके लिए एक विशेष प्रकार के सोल्डर वायर का उपयोग किया जाता है। जिसके बीच में फ्लक्स ठोस, पाउडर या गाढ़े पेस्ट के रूप में स्थित रहता है। इसे फ्लक्स कोर्ड वायर कहते हैं।
जब वायर का किनारा गरम सतह पर लगाया जाता है तो उपयुक्त तापमान होने पर पहले फ्लक्स पिघलकर सतह पर फैलता है और फिर सोल्डर पिघलकर फ्लक्स लगी सतह पर बहता है और ठंडा होकर जोड़ बना देता है। कोर्ड सोल्डर वायर के प्रयोग से फ्लक्स के कम या अधिक लगने का डर नहीं रहता क्योंकि इससे नियंत्रित मात्रा (वाछित मात्रा) में फ्लक्स निकलता है। यह लगभग स्वचालित (Automatic) के जैसा ही होता है तथा बिना क्रिया वाला फ्लक्स सतह पर नहीं बचता और साफ सुथरा जोड़ तैयार हो जाता है।

फ्लक्स (Flux)

इसका प्रयोग जोड़ी जाने वाली सतह को ऑक्सीडेशन से बचाने तथा सोल्डर को पिघलाने के लिए किया जाता है। यह सतह को साफ रखता है तथा सोल्डर को फैलाने में भी सहायता करता है अर्थात् इसके प्रयोग से जोड़ की सतह पर जमी कार्बन एवं अन्य अशुद्धियाँ साफ हो जाती हैं।
ये सोल्डर को शीघ्र पिघलाने में सहायक होते हैं,
ये सोल्डर को शीघ्र बहने में सहायता करते हैं ताकि सोल्डर
तंग जगह में भी आसानी से पहुंच जाए,
यह धात पर सोल्डर को पकड़ को मजबूत बनाने में सहायक होता है|
सामान्य रूप से प्रयोग किए जाने वाले फ्लक्स जिंक क्लोराइड या अमोनियम क्लोराइड अथवा दोनों पानी में घोलकर या पैट्रोल में मिलाकर बनाए जाते हैं।
Flux में प्रायः 71% जिंक क्लोराइड तथा 29% अमोनियम क्लोराइड मिलाया जाता है।

सोल्डरिंग फ्लक्स के प्रकार Types Of Soldering Flux

कोरोसिस एलवरा Corrusive Tax)

यह क्षार ( Alkali) तथा तेजाव (Acid) आदि के बनाये जाते हैं जैसे जिंक क्लोराइड सोल्युशन, नमक का तेजाब (Hydrochloric Acid) तथा नौसादर आदि। फ्लक्स अगर धातु पर लगे रहें तो धातु को क्षति पहुँचाते हैं और धातु पर जंग आदि लग जाता है। इसका प्रयोग कभी भी रेडियो, टेलीविजन तथा एयरक्राफ्ट के भागों में नहीं करना चाहिए। सामान्य रूप से प्रयोग किये जाने वाला सक्रिय फ्लक्स (Active Flux) हाइड्रोक्लोरिक एसिड में जिंक को घोलकर तैयार किया जाता है। इसकी संक्षारण क्रिया (Corrosive Action) में कमी लाने के लिए इसमें कुछ ग्लिसरीन भी मिला दी जाती है। यह जोड़े जाने वाले भागों के ऊपर से ग्रीस एवं तेल हटाने के लिए बहुत उपयुक्त होता है।

नॉन-कोरोसिव फ्लक्स (Non-Corrosive Flux)

ऐसे फ्लक्स जिनके धातु पर लगे रहने से धातु को कोई नुकसान न पहुँचे, उन्हें नॉन-कोरोसिब फ्लक्स कहते हैं, जैसे : बिरौजा, सुहागा, तारपीन का तेल आदि। निष्क्रिय (Passive) फ्लक्स कार्य पर गाढ़े पेस्ट के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। जोड़ की सफलता के लिए उसको साफ करना आवश्यक है क्योंकि ये फ्लक्स सफाई कार्य नहीं करते। इस फ्लस्क के इस्तेमाल से संक्षारण (Corrosion) की संभावना नहीं रहती है और इसी कारण से इसे बिजली के कार्यों, रेडियो, टेलीविजन तथा एयरक्रास्ट के भागों को जोड़ने के लिए वरीयता के साथ प्रयोग करते हैं।
जिस माध्यम से ज्वाइन्ट को साफ किया जाता है, उसे फ्लक्स कहते हैं। यह प्राय: तरल, पेस्ट या पाउडर के रूप में पाया जाता है। जब सोल्डरिंग या ब्रेजिंग की जाती है तो जोड़ के ऊपर फ्लक्स को लगाया जाता है।
फ्लक्स के निम्नलिखित मुख्य कार्य होते हैं
जोड़ को साफ करना।
जोड़ के ऊपर सोल्डर या स्पैल्टर की मजबूत पकड़ लाना।

धातु एवं फ्लक्स (Metal and Fluxes)

Soldering-Metal-And-Fluxes


मुख्य फ्लक्स (Main Flux)

हाइड्रोक्लोरिक एसिड (Hydrochloric Acid)

सोल्डरिंग के लिए इस अम्ल को पानी में डालकर हल्का कर लिया जाता है। यह नरम और कठोर दोनों प्रकार के सोल्डर के लिए उपयोगी है। इसमें जिंक के टुकड़े डालकर इसे साधारण कार्य के लिए उपयोगी बना लिया जाता है। यह एक जहरीला द्रव है और प्रयोग करते समय पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए। मुख्यतः जिंक चादर या जिंक लेपित चादरों (Galvanics Sheets) का सोल्डरिंग करते समय इसे प्रयोग किया जाता है।

जिंक क्लोराइड (Zime Chloride)

इस फ्लक्स को ताँबे, पीतल, इस्पात तथा लोहे आदि के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे चूर्ण के रूप से सतहों पर छिड़कते हैं या पानी में घोलकर प्रयोग करते हैं। इसके लिए तीन भाग पानी में एक भाग जिंक क्लोराइड मिलाते
हैं। जिंक क्लोराइड को शीशे के बर्तन में रखा जाता है |

सुहागा (Borax)

इसे चाँदी तथा ताँबे (Copper) के ब्रेजिंग में प्रयोग किया जाता है। इसको चूर्ण के रूप में सतहों पर छिड़कते है या पानी में घोलकर प्रयोग करते हैं।

रेजिन (Resin)

इसे चूर्ण, छड़ या तरल के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह तरल ऑक्साइडों को घोलता तो नहीं है परंतु धातु को ऑक्सीकरण से बचाता है। यह नॉन कोरोसिव फ्लक्स है तथा अधिकतर विद्युत जोड़ों के लिए प्रयोग किया जाता है।

सोल्डरिंग पेस्ट (Soldering Paste)

यह पेस्ट जिंक क्लोराइड को स्टार्च (Starch) में मिलाकर बनाया जाता है। कुछ सोल्डरिंग पेस्ट जिंक क्लोराइड, पैट्रोलियम जैली मिलाकर भी बनाए जाते हैं।

साल अमोनिक (Sal Ammoniac)

यह पाउडर या रवों के रूप में नरम सोल्डर के साथ प्रयोग किया जाता है। यह धातु सतहों पर से चिकने पदार्थों को घोल लेता है। इसकी 100 ग्राम मात्रा को आधा लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाया जाता है। यह घोल सोल्डरिंग आयरन की बिट को साफ करने के काम में आता है।

सोल्डरिंग आयरन् (Soldering Iron)

सोल्डरिंग करने के लिए जिस टूल का प्रयोग किया जाता है उसे सोल्डरिंग आयरन कहते हैं। इसके हैंडल, शैंक और टिप तीन मुख्य पार्ट होते हैं।

सोल्डरिंग आयरन के प्रकार Types Of Soldering Iron

प्लेन सोल्डरिंग आयरन (Plain Soldering Iron)

Plain-Soldering-Iron


इस प्रकार के सोल्डरिंग आयरन में गोल, षट्भुज या अष्टभुज तांबे की टिप लगी होती है, जिसका आगे का सिरा टेपर करके नुकीला बना दिया जाता है। इसका प्रयोग प्राय: हल्के कार्यों के लिए किया जाता है।

हैचेट सोल्डरिंग आयरन (Hatchet Soldering Iron) 

Hatchet-Soldering-Iron

इस प्रकार के सोल्डरिंग आयरन का टिप प्राय: तांबे का होता है जिसका आकार कुल्हाड़ी जैसा होता है।

यह प्लेन सोल्डरिंग आयरन की अपेक्षा कुछ बड़े साइज की होती है|
इसका प्रयोग प्रायः साधारण कार्यों के लिए किया जाता है।

गैस सोल्डरिंग आयरन (Gas Soldering Iron)

Gas-Soldering-Iron

इस प्रकार की सोल्डरिंग आयरन में एक हॉलो पाईप और एक डॉलो कॉपर टिप होती है। जिनको एक हॉलों हैंडल के साथ फिट कर दिया जाता है। हैंडल के सिरे पर गैस का एक फ्लैक्सीबल पाईप फिट कर दिया जाता है जिससे गैस प्रवाहित की जाती है

और टिप पर बने हुए हवा के सुराखों से गैस की ज्वाला उत्पन्न होती है। इस प्रकार की सोल्डरिंग आयरन प्राय: वहाँ पर प्रयोग में लायी जाती है, जहाँ पर सोल्डरिंग कार्य लगातार करना होता है।

कार्टिज सोल्डरिंग आयरन (Cartridge Solddering Iron)

Cartridge-Soldering-Iron


इस प्रकार के सोल्डरिंग हैंडल के साथ आयान में एक कार्टिज चैम्बर होता है, जिसके एक सिरे पर कॉपर टिप और दूसरे सिरे पर एक गोल रॉड फिट रहते हैं। चैम्बर के अन्छर एक कार्टिज रखी जाती है, जिसमें मैगनीशियम कम्पाउंड का मिक्स्चर भरा रहता है। हैंडल के साथ फिट की हुई रॉड से धक्का लगाकर इसमें ज्वाला उत्पन्न की जाती है, जिससे टिप गर्म हो जाती है। एक कार्टिज लगभग 7 मिनट तक सोल्डरिंग आयरन को गर्म रख पाती है, जिससे टिप गर्म हो जाती है। इस प्रकार की सोल्डरिंग आयरन प्राय: वहां पर प्रयोग की जाती है, जहाँ पर अधिक कठिन सोल्डरिंग करनी पड़ती है।

इलैक्ट्रिक सोल्डरिंग आयरन (Electric Soldering Iron)

Electric-Soldering-Iron


इस प्रकार के सोल्डरिंग आयरन को बिजली के द्वारा गर्म किया जाता है, जिसके सिरे पर ताँबे की एक प्लेन टिप लगायी जाती है। इस सोल्डरिंग आयरन का प्रयोग प्राय: हल्के कार्यो जैसे रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीविजन आदि में विद्युत के तारों को जोड़ने में किया जाता है। इसके अन्दर एक एलीमेंट होता है, जिसमें विद्युत धारा प्रवाहित करके इसे गर्म किया जाता है। इस एलीमेंट को माइका इन्सूलेटर के द्वारा बिट से अलग किया जाता है। ये 25 से150 वाट के हीटिंग एलीमेंट्स की रेन्ज में मिलती हैं
5/32" व्यास की बिट वाली 25 वाट की सोल्डरिंग आयरन
इलैक्ट्रॉनिक कार्य एवं छोटे धातु पात्रों के लिए संतोषजनक है। बड़े टर्मिनल्स (जैसे कुछ ट्रान्सफॉर्मस पर) और मध्यम साइज के धातु पात्रों के लिए 5.8" व्यास की बिट एवं 80 वाट की सोल्डरिंग आयरन को उपयोग में लाना चाहिए।

सोल्डरिंग का वर्गीकरण (Classification of Soldering)

नरम सोल्डरिंग (Soft Soldering)

नरम (Soft) सोल्डरिंग के लिए सोल्डरिंग आयरन एक मुख्य टूल है, जिसके द्वारा सोल्डर को पिघलाते हैं और जोड़ी जाने वाली सतह पर लगाकर पिघले हुए पदार्थ को पतली परत के रूप में फैलाते हुए चले जाते हैं। सोल्डरिंग का वर्गीकरण प्रयोग में लाई जाने वाली सोल्डरिंग आयरन को गरम करने के आधार पर किया जाता है और इस आधार पर इस प्रोसिस को निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जा सकता है
  1. फोर्ज सोल्डरिंग (Forge Soldering)
  2. विद्युत या गैस सोल्डरिंग (Electric or Gas Soldering)

फोर्ज सोल्डरिंग (Forge Soldering)

इसमें प्रयोग होने वाली सोल्डरिंग आयरन को लकड़ी, कोयले, गैस या स्टोव से गरम किया जाता है। गरम करने वाले माध्यम से हटाकर इसे उपयुक्त फ्लक्स में डुबोकर सोल्डर पर रगड़ते हैं, जिससे पिघलकर सोल्डर इस पर चिपक जाए। अब सोल्डर लगी हुई बिट को जोड़ पर रगड़ते हैं। काफी देर तक सोल्डरिंग करते समय सोल्डरिंग आयरन को थोड़ी-थोड़ी देर बाद गरम करना पड़ता है।

विद्युत या गैस सोल्डरिंग (Electric or Gas Soldering)


इसके अंतर्गत सोल्डरिंग आयरन को विद्युत, गैस या तेल के लगातार बहाव से स्वयं अंदर ही अंदर गरम होने देते हैं। यह प्रोसिस सामान्तया लम्बे समय तक सोल्डरिंग करने के लिए प्रयोग की जाती है। गरमी के स्त्रोत (Source) के आधार पर सोल्डरिंग आयरन कई प्रकार की होती हैं। जब सोल्डरिंग आयरन को विद्युत पावर से गरम किया जाता है, तब इसे विद्युत सोल्डरिंग कहते हैं।

लेखक की कलम से-
दोस्तों में हूं Sunil Kumar Yadav और इस पोस्ट में हमने जाना आईटीआई फिटर थ्योरी ITI Fitter theory के अध्याय सोल्डरिंग (Soldering) सोल्डरिंग के प्रकार Types Of Soldering और सोल्डरिंग फ्लक्स के प्रकार Types Of Soldering Flux के बारे में | जैसा कि मैं उम्मीद करता हूं इस पोस्ट में आपने सोल्डरिंग (Soldering) के बारे में उचित जानकारी प्राप्त की होगी | इसी प्रकार ITI Fitter Theory से संबंधित जानकारी  प्राप्त करने  और ITI Online Exam की प्रैक्टिस के लिए हमारे साथ बने रहे तथा अपने दोस्तों को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें | इस पोस्ट के बारे में अगर आपका कोई सुझाव या शिकायत है तो कृपया हमें टिप्पणी(comments) करें हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा धन्यवाद |

सरक्लिप (Circlip) | सरक्लिप का वर्गीकरण (Classification Of Circlip)

 दोस्तों इस पोस्ट में हम जानेंगे फिटर थ्योरी Fitter Theory के अध्याय सरक्लिप (Circlip)|सरक्लिप का वर्गीकरण (Classification Of Circlip) जैसे Axially Assemble Ring,Radially Assemble Ring और  Circlip के प्रकार के बारे में |

सरक्लिप (Circlip)

सरक्लिप (Circlip) ऐसी बन्धक युक्ति (Fastening Device) है, जिसका प्रयोग एसेम्बली में चलने वाले पार्ट्स को स्थिर (Fixed) करने के लिए किया जाता है। सरक्लिप को रीटेनिंग रिंग्स (Retaining Rings) भी कहते हैं।



Circlip

 सरक्लिप प्रायः स्प्रिंग के बने होते हैं, जिससे कि फास्टनर को उचित डिग्री पर प्रत्यास्थता से विकृत तथा मूल आकार में पुनः वापिस लाया जा सके। सरक्लिप का कार्य घूमने वाले पार्टो को पकड़ना होता है।

अन्दरूनी सरक्लिप (Internal Circlip)

Internal-Circlip

 
इंटर्नल सरक्लिप (Internal Circlip) हमेशा सुराख के अन्दर या बोर के अन्दर फिट किये जाते हैं। 

सरक्लिप का वर्गीकरण (Classification Of Circlip) 

सरक्लिप को कार्य के अनुसार दो भागों में वर्गीकृत (Classification) किया गया है। 

  1. एक्सीयल एसैम्बल रिंग (Axially Assemble Ring)
  2. रेडियली एसेम्बल रिंग (Radially Assemble Ring)

एक्सीयल एसैम्बल रिंग (Axially Assemble Ring)

सरक्लिप या रिंग प्रायः शाफ्ट या बोर के अक्ष के समान्तर लगाये जाते हैं, जिनमें रिंग उपयोग किये जाने हों अधिकांशत: एक्सीयली रिंग्स में कुछ गैप होता है। ये ग्रूव्स में सम्पर्क (Connect) बनाते हैं, जिनमें इन्हें सैट या फिट किया जाता है। इसके कारण अधिकांशतः एक्सीयली एसैम्बली (Axially Assembly) में उपेक्षित उच्च थ्रस्ट-लोड सहने की क्षमता होती है। 

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एक्सीयली एसैम्बल रिंग के प्रकार (Types Of Axially Assemble Ring)

  1. बेसिक इंटर्नल रिंग (Basic Internal Rings)
  2. मौलिक बाहरी रिंग (Basic External Ring)
  3. इनवर्टेड इंटर्नल रिंग (Inverted Internal Ring)
  4. हैवी ड्यूटी एक्सटनेल रिंग (Heavy Duty External Ring)
  5. परमानेंट शोल्डर रिंग (Permanent Solder Ring)

बेसिक इंटर्नल रिंग (Basic Internal Rings) 

इनमें आपसी खुलने का गैप कम होता है। ग्रूव को अधिकांश परिधि पर रिंग का अधिकतम संपर्क देने के लिए तथा एसैम्बली में उच्च थ्रस्ट की क्षमता की व्यवस्था करने के लिए रिंग का बाहरी व्यास नेबोर या ग्रूव के व्यास के संकेन्द्रिय (Concentric) होता है।

मौलिक बाहरी रिंग (Basic External Ring)

इस प्रकार के रिंग में बहुत कम गैप होता है। इसका टेपर सैक्शन (बाहरी) रिंग के लगभग चारों ओर होता है, तथा इंटर्नल टाईप, यह अधिक स्थायी सैट के बिना अधिकतम लचीलापन (Flexibility) देते हैं। इसका आन्तरिक व्यास, शाफ्ट तथा ग्रूव के व्यासके संकेन्द्रय होता है।

इनवर्टेड इंटर्नल रिंग (Inverted Internal Ring)

इनके बोर या हाऊसिंग में (सिकुड़ने) के लिए तुलानात्मक रूप से गैप कम होता है। इसका अतिरिक्त व्यास बोर या ग्रूव के व्यास के समकेन्द्रिय होता है। इसका टेपर सैक्शन ग्रूव की पर्याप्त गहराई में अधिकतम लचीलेपन तथा बैठने के लिए परिधि के अधिक भाग के चारों तरफ एक्सटेड (बढ़ता) होता है। ये रिंग रिटेन्ड पार्ट के सापेक्ष एक समान शोल्डर तथा अधिक एसैम्बली क्लियरेन्स की व्यवस्था करते हैं। 

Inverted-Internal-Ring,Inverted-Internal-Circlip,


लग्स की आंतरिक परिधि में स्थित होने के अतिरिक्त इनकी डिजाइन इनवर्टेड इंटर्नल रिंग्स के समान ही होती है। जब इन्हें शाफ्ट या उसके समान पार्ट ग्रूव में लगाया जाता है तो ये पकड़े जाने वाले पार्ट के साथ समान शोल्डर की व्यवस्था करते हैं।

हैवी ड्यूटी एक्सटनेलरिंग (Heavy Duty External Ring)

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Heavy Duty External Ring कि औसत रेडियल सेक्शन की ऊंचाई और थिकनैस अधिक होती है । बार-बार दोहराने वाली लोडिंग और फटिग के कारण यह हैवी थ्रस्ट लोड के विरुद्ध अच्छी पकड़ कर करती है ।

परमानेंट शोल्डर रिंग (Permanent Solder Ring)

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Permanent Solder Ring सर्क्लिप को फैलाया या सिंकुड़ा नहीं जा सकता है क्योंकि, यह बिना गैप वाली Ring बनायी जाती है । इसकी परिधि पर चारों ओर नोचिस बने हुए होते हैं । यह बेहद साफ मेटीरियल्स से बनायी जाती है । इसे एक बार फिक्स करने के बाद यह शाफ्ट पर परमानेंट शोल्डर बना लेती है । यह वाटर प्रूफ बनावट के लिए उपयोगी होती है ।

रेडियली एसैम्बल्ड रिंग (Redialed Assembled Ring)

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यह अक्ष के रेडियल दिशा पर लगाये जाते हैं। रेडियल एसैम्बल्ड रिंग में इंस्टालेशन के लिए अधिक गैप होता है। रेडियल टाईप में एक्सियल रिंग की अपेक्षा सामान्य थ्रस्ट की क्षमता कम होती है। 

रेडियली एसैम्बल्ड रिंग के प्रकार (Types Of Radially Assemble Ring)

  1. क्रेसेन्ट रिंग (Kresent Ring)
  2. ई-रिंग(E-Ring)
  3. टू-पार्ट इंटरलॉकिंग रिंग (Two Part Interlocking Ring)
  4. हाई स्ट्रेंग्थ टाईप रिंग (High Strength Type Ring)

क्रेसेन्ट रिंग (Kresent Ring)

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इन रिंगस में शाफ्ट पर ग्रूव में रेडियल एसैम्बली के लिए अधिक गैप होता है तथा ये पकड़े जाने वाले पार्ट के साथ कम शोल्डर की व्यवस्था करते हैं। 

ई-रिंग(E-Ring)

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ई-रिंग(E-Ring) में अधिक गैप और अधिक बाहरी व्यास होता है इसकी अंदरूनी रिंग परिधि पर तीन परत होती हैं । यह छोटी शाफ्ट पर अपेक्षाकृत बड़े व्यास वाला शोल्डर प्रदान करने में सहायक होती है ।

टू-पार्ट इंटरलॉकिंग रिंग (Two Part Interlocking Ring)

Two-Part-Interlocking-Ring,Two-Part-Interlocking-Circlip,

ये एक्सटर्नल रेडियली एसैम्बली रिंग होते हैं, जो उपयोग किये जाने वाले शाफ्ट पर चारों तरफ पूरी तरह से एक समान शोल्डर बनाते हैं। ये रिंग के आधे भाग प्रत्येक सिरे पर इंटरइंगेजिंग लग्स के द्वारा एक साथ लॉक हो जाते हैं । लगाते एवं निकालते समय बेण्डिग में आवश्यक लचीलेपन के लिए प्रत्येक आधे भाग का केन्द्र पर सैक्शन कम होता है। जब रिंग को ग्रुव में एसैम्बल किया जाता है तो ये उच्च रोटेशन स्पीड का प्रतिरोध करते हैं। 

हाई स्ट्रेंग्थ टाईप (High Strength Type Ring)

High-Strength-Type-Ring,High-Strength-Type-Circlip,

ये रेडियली एसैम्बल्ड रिंग होते हैं तथा इनमे दो बड़े लग्स होते हैं, जोकी ग्रूव के बड़े भाग को परिमाप के चारों तरफ सम्पर्क बनाते हैं। ये थ्रस्ट लोड से अच्छे प्रतिरोध की व्यवस्था करते हैं। ये रिंग तुलनात्मक साइज 'ई' या क्रेसेन्ट प्रकार के रिंग की अपेक्षा मोटे होते हैं। ये रिंग गहरे ग्रूव में बैठते हैं तथा छोटे व्यास के शाफ्ट पर बड़े शोल्डर की व्यवस्था करते हैं। 

लेखक की कलम से-
दोस्तों में हूं Sunil Kumar Yadav और इस पोस्ट में हमने जाना आईटीआई फिटर थ्योरी ITI Fitter theory के अध्याय सरक्लिप (Circlip) | सरक्लिप का वर्गीकरण (Classification Of Circlip) जैसे Axially Assemble Ring,Radially Assemble Ring और  Circlip के प्रकार के बारे में | जैसा कि मैं उम्मीद करता हूं इस पोस्ट में आपने Circlip के बारे में उचित जानकारी प्राप्त की होगी | इसी प्रकार ITI Fitter Theory से संबंधित जानकारी  प्राप्त करने  और ITI Online Exam की प्रैक्टिस के लिए हमारे साथ बने रहे तथा अपने दोस्तों को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें | इस पोस्ट के बारे में अगर आपका कोई सुझाव या शिकायत है तो कृपया हमें टिप्पणी(comments) करें हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा धन्यवाद |

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