गैस वैल्डिंग (Gas Welding) गैस वैल्डिंग के प्रकार (Types Of Gas Walding) तथा गैस वैल्डिंग में प्रयुक्त उपकरण

 इस पोस्ट में हम जानेंगे गैस वैल्डिंग (Gas Welding) गैस वैल्डिंग के प्रकार (Types Of Gas Walding) तथा गैस वैल्डिंग में प्रयुक्त उपकरण एवं गैस वेल्डिंग ज्वाला और दोष (Gas Welding Flame) आदि |

Gas-Walding-And-Types-Of-Gas-Walding


गैस वैल्डिंग (Gas Welding)

जिस वैल्डिंग में जोड़े जाने वाली धातु के किनारों को गैसों के द्वारा ताप देकर गलनांक तक पहुँचाया जाता है, उसे गैस वैल्डिंग कहते है |
गैस वैल्डिंग में ताप प्राप्त करने के लिए अधिकतर ऑक्सीजन तथा एसीटिलीन गैसें प्रयोग की जाती हैं।
इस गैसों में जलने का कार्य एसीटिलीन गैस करती है तथा जलाने का कार्य ऑक्सीजन गैस करती है।
ऑक्सी-एसीटिलीन गैसों के जलने से तीन प्रकार की ज्वालाएँ बनती हैं - उदासीन ज्वाला, कार्बुराइजिंग ज्वाला तथा ऑक्सीडाइजिंग ज्वाला
गैस वैल्डिंग में कुछ अन्य प्रकार की ज्वलनशील गैसें भी प्रयोग की जाती हैं। जैसे - प्रोपने (Propane), ब्यूटेन (Butane), हाइड्रोजन (Hydrogen), कोल गैस (Coal Gas), पैट्रोल गैस (Petrol Gas) तथा प्राकृतिक गैस (Natural Gas) इत्यादि।
गैस वैल्डिंग के द्वारा पतली चद्दरों को पिघलाकर खाली स्थान को उसी धातु की वैल्डिंग रॉड के द्वारा जोड़ा जाता है।

गैस वैल्डिंग के प्रकार (Types Of Gas Walding)

  1. लो प्रेशर गैस वैल्डिंग (Low Pressure Gas welding)
  2. हाई प्रैशर गैस वैल्डिंग ( High Pressure Gas Welding)

लो प्रैशर गैस वैल्डिंग (Low Pressure Gas welding)

इस वैल्डिंग विधि में एसीटिलीन गैस को लो प्रेशर एसीटिलीन जैनरेटर में तैयार करके प्रयोग की जाती है और ऑक्सीजन गैस को सिलैण्डर से प्राप्त करते हैं।

हाई प्रेशर गैस वैल्डिंग ( High Pressure Gas Welding)

इस प्रकार की वैल्डिंग विधि में एसीटिलीन गैस सिलैण्डर में भरी होती है, जिसका दबाव' 15.5 kgm/cm' होता है। इस विधि में भी ऑक्सीजन सिलैण्डर में भरी होती है। इस सिलैण्डर में गैस का दाब 12.5 kgm/em होता है।

गैस वैल्डिंग में प्रयुक्त उपकरण

ऑक्सीजन सिलैण्डर (Oxygen Cylinder)

  • ऑक्सीजन सिलैण्डर का रंग काला होता है।
  • यह सिलैण्डर एलॉय स्टील का बना होता है और इसके आउटलेट वाल्व में दायें हाथ की चूड़ियाँ (Right Hand Thread) कटी होती हैं। इसके ऊपर रैगुलेटर फिट किया जाता है।
  • यह सिलैण्डर एसीटिलीन सिलैण्डर की अपेक्षा लम्बा और पतला होता है।
  • ये सिलैण्डर 3400, 5200 तथा 6800 लीटर की क्षमता में मिलते हैं।
  • इस सिलैण्डर में दाब (Pressure) 120 kgm/cm2 से 150 kgm/cm') तक होता है।

एसीटिलीन सिलैण्डर (Acetylene Cylinder)

  • एसीटिलीन सिलैण्डर का रंग मैरून होता है। यह सिलैण्डर आक्साजन सिलैण्डर की अपेक्षा छोटा तथा मोटाई में ज्यादा होता है।
  • ये सिलैण्डर एलॉय मेरून स्टील के बनाए जाते हैं।
  • एसीटिलीन सिलैण्डर के वाल्व पर बायें हाथ (Left Hand Thread) की चूड़ियाँ कटी होती हैं।
  • यह सिलैण्डर 150 k.g/cm दाब पर भरे जाते हैं।
  • एसीटिलीन गैस सिलैण्डरों में उच्च दाब पर बनी नहीं रहती
  • इसलिए ये अलग-अलग क्षमता में उपलब्ध होते है।
  • ऑक्सीजन गैस रैगुलेटर (Oxygen Gas Regulator)
  • ऑक्सीजन गैस सिलैण्डरों में उच्च दाब (High Pressure) में भरी होती है। जब वैल्डिंग में गैस प्रयोग की जाती है तो यह प्रेशर कम होता जाता है। इसलिए कार्यखण्ड तक एक समान प्रेशर बनाए रखने के लिए प्रेशर रेगुलेटर का प्रयोग किया जाता है।
  • प्रेशर रेगुलेटर से निकलने वाली गैस का दाब एक समान ही रहता है।
  • सिलैण्डर का दाब (Pressure) तथा रेगुलेटर से निकलने वाली गैस का दाब (Pressure) जानने के लिए इस रेगुलेटर पर दो दाब गेज (Pressure Gauge) लगे होते हैं।
  • ऑक्सीजन रेगुलेटर का रंग काला होता है। ये रेगुलेटर बनावट के आधार पर दो प्रकार के होते हैं

(i) सिंगल-स्टेज रेगुलेटर (Single Stage Regulator)
(ii) टू-स्टेज रेगुलेटर (Two Stage Regulator)

एसीटिलीन गैस रैगुलेटर (Acetylene Gas Regulator)

Acetylene-Gas-Regulator-In-Hindi


  • यह रेगुलेटर, ऑक्सीजन गैस रेगुलेटर की तरह ही प्रयोग में लाया जाता है।
  • एसीटिलीन गैस रैगुलेटर बाएं हाथ की चूड़ियाँ (Left Hand Thread) कटी होती हैं। यह रैगुलेटर मैरून रंग का होता है।
  • एसिटिलीन गैस सिलैण्डर में गैस दाब (Pressure) और ब्लो पाईप से एसीटिलीन गैस को नियंत्रित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • यह रेगुलेटर ऑक्सीजन रेगुलेटर की अपेक्षा भार में हल्का होता है।

एसीटिलीन जनरेटर (Acetylene Generator)

  • कम दाब वैल्डिंग (Low Pressure Welding) में एसीटिलीन गैस तैयार करने के लिए एसीटिलीन जनरेटर की आवश्यकता होती है |
  • इसका प्रयोग वहाँ किया जाता है, जहाँ एसीटिलीन की खपत अधिक मात्रा में हो।
  • इस जेनरेटर में कैल्शियम कार्बाइड में पानी मिलाकर एसीटिलीन गैस उत्पन्न की जाती है। 
  • इसके लिए दो विधियाँ प्रयोग करते हैं

(i) वाटर-टू कार्बाइड टाइप (Water To Carbide Type)

Water-To-Carbide-Type-Acetylene-Generator


(ii) कार्बाइड-टू वाटर टाइप (Carbide to Water Type)

Carbide-To-Water-Type-Acetylene-Generator


होज पाईप (Hose Pipe)

  • होज पाईप के द्वारा गैस को ब्लो पाईप (Blow Pipe) तक
  • पहुंचाया जाता है।
  • यह पाईप रबड़ और कपडे से मजबूती से बनी होती है।
  • यह इतनी मजबूत होती है कि गैस के दाब (Pressure) को आसानी से सहन कर लेती है।
  • इसके अन्दरूनी व्यास से इसका साइज लिया जाता है, जो अलग-अलग होता है।
  • ऑक्सीजन गैस के लिए हौज पाईप का रंग काला तथा एसीटिलीन गैसे के हौज पाईप का रंग लाल होता है।
  • हौज पाईप की लम्बाई 5 मीटर से 20 मीटर तक होती है |

ब्लो पाईप (Blow Pipe) या गैस वैल्डिंग टॉर्च (Gasw
Torch)

  • ऑक्सीजन गैस तथा एसीटिलीन गैस को आवश्यक मात्रा में ज्वाला (Flame) उत्पन्न करने के लिए ब्लो पाईप का उपयोग किया जाता है।
  • इसके हैण्डल के पीछे ऑक्सीजन और एसीटिलीन गैस कनैक्शन बने होते हैं। इन कनैक्शन में होज पाईप फिट की
  • जाती है |
  • ऑक्सीजन कन्ट्रोल वाल्व से ऑक्सीजन नियंत्रित होती हुई मिक्सिंग चैम्बर के बीच में पहुंचती है।
  • यह मिली हुई गैस नौजल से बाहर निकलकर ज्वाला (Flame) उत्पन्न करती है।
  • ब्लो पाईप के प्रकार

  1. लो प्रेशर ब्लो पाइप (Low Pressure Blow Pipe) 
  2. हाई प्रेशर ब्लो पाइप (High Pressure Blow Pipe)
  3. ऑटोमेटिक या इक्विल प्रेशर ब्लो पाईप (Automatic or Equal Pressure Blow Pipe)

फिलर रॉड तथा फ्लक्स (Filler Rod and Flux)

  • गैस वैल्डिंग में वैल्डिंग की जाने वाली धातु के किनारों के जोड़ के बीच का खाली स्थान भरने के लिए फिलर रॉड (Filler Rod) का प्रयोग किया जाता है।
  • फिलर रॉड का चुनाव वैल्ड किए जाने वाली धातु के आधार पर किया जाता है।
  • ऑक्सीकरण (Oxydation) तथा अन्य रासायनिक क्रियाओं को रोकने के लिए फ्लक्स (Flux) का प्रयोग किया जाता है। अलग -अलग धातुओं के लिए भिन्न-भिन्न फ्लक्स प्रयोग किए जाते हैं।

वैल्डर ड्रेस (Welder Dress)

गैस वैल्डिंग करते समय वैल्डर द्वारा अपने शरीर की सुरक्षा के लिए जिन साधनों का प्रयोग किया जाता है, उसे वैल्डर ड्रेस कहते हैं।
इसमें मुख्य रूप से 4 वस्तुएँ प्रयोग की जाती हैं -
(i) एप्रन (Apron)
(ii) ऐनक (Goggles)
(iii) दस्तानें (Gloves)
(iv) जूते (Shoes)
  • एप्रन (Apron), दस्ताने (Gloves) तथा जूते (Shoes) चमड़े के बने होते हैं।
  • इनको गैस वैल्डिंग में होने वाले स्पार्क की चिंगारियों से सुरक्षा के लिए प्रयोग किया जाता है। जब फीडर रॉड छोटी रह जाती है तो हाथों के जलने का भय रहता है इसलिए हाथों की सुरक्षा के लिए दस्तानों (Gloves) का प्रयोग किया जाता है।
  • वैल्डिंग करते समय ज्वाला (Flame) की तेज रोशनी का आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है इसलिए आंखों की सुरक्षा के लिए ऐनक (Goggles) का प्रयोग किया जाता है।
  • एप्रन (Apron) का शरीर से आगे के भाग पर इस्तेमाल किया जाता है।

टॉर्च लाइटर (Torch Lighter)

यह एक चिमटे के आकार का यन्त्र है। इसमें एक पत्थर फिट होता है, जिसे घुमाने पर आग उत्पन्न होती है। जो टिप के साथ लगाकर गैसों को जलाती है, जिससे ज्वाला (Flame) बनती है। टॉर्च लाइटर के बिना यदि दियासिलाई से जलाया जाए तो हाथ के जलने का भय रहता है। यदि टॉर्च लाइटर न हो तो इसके लिए जलती हुई रस्सी प्रयोग की जा सकती है।

चाबी और स्पैनर (Key and Spanner)

गैस सिलैण्डरों के वाल्व को खोलने के लिए कभी भी संडासी (Tongs) या प्लास (Plier) का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
इनको खोलने के लिए विशेष प्रकार की चाबियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं।
वैल्डिंग टॉर्च की टिप बदलने के लिए स्पैनर का इस्तेमाल किया जाता है।
वैल्डिंग में प्रयुक्त अन्य उपकरण
(i) हथौड़ा (Hammer)
(ii) जॉब पकड़ने के लिए संडासियाँ (Tongs For Clamp-          Of Jobs)
(iii) छैनी (Chisel)
(iv) रेती (Files)
(v) वाइस (Vice)
(vi) ग्राईंडर (Grinder)

गैस वेल्डिंग ज्वाला (Gas Welding Flame)

  • गैस वैल्डिंग करते समय टिप पर जो दोनों गैसों के मिलने से एक लौ उत्पन्न होती है, उसे ज्वाला (Flame) कहते हैं। ज्वाला के जलने से जो ताप पैदा होता है, उससे ही धातु को पिघलाया जाता है।
  • ऑक्सी-एसीटिलीन गैस के जलने से तीन प्रकार की ज्वाला उत्पन्न होती है, जो निम्नलिखित हैं :

उदासीन ज्वाला(Neutral Flame)

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  • उदासीन ज्वाला का प्रयोग वैल्डिंग के कार्यों में सबसे अधिक होता है।
  • इस प्रकार की ज्वाला में ऑक्सीजन और एसीटिलीन गैस को ब्लो पाईप (Blow Pipe) में बराबर मात्रा में मिलाकर जलाया जाता है |
  • इस ज्वाला के भीतरी कोन (Inner Cone) की लम्बाई अधिक और आगे से गोलाकर होती है।
  • उदासीन ज्वाला का तापमान 3600°C के लगभग होता है। उदासीन ज्वाला का प्रयोग माइल्ड स्टील (Mild Steel), स्टैनलैस स्टील (Stainless Steel), तांबा (Copper), कास्ट आयरन (Cast Iron), तथा ऐल्यूमिनियम (Aluminium) की वैल्डिंग में किया जाता है।

कार्बुराइजिंग ज्वाला (Carburising Flame)

Gas-Walding-Carburising-Flame


  • इस ज्वाला में ऑक्सीजन गैस की तुलना में एसीटिलीन गैस की मात्रा अधिक होती है।
  • इस ज्वाला में बीच का भाग (Intermediate Zone) भी होता है। इस ज्वाला को रिड्यूसिंग ज्वाला (Reducing Flame) भी कहा जाता है।
  • यदि उदासीन ज्वाला (Neutral Flame) में दी जाने वाली ऑक्सीजन की मात्रा घटा दी जाए तो यह कार्बुराइजिंग ज्वाला बन जाती है।
  • कार्बुराइजिंग ज्वाला का तापक्रम 3038°C तक ही होता है। इस ज्वाला का प्रयोग हार्ड फेसिंग के लिए तथा फ्लेम क्लीनिंग के लिए किया जाता है।
  • कार्बुराइजिंग ज्वाला का प्रयोग - हाई कार्बन स्टील (High Carbon Steel), एलॉय स्टील (Aloy Steel) तथा ऐल्युमिनियम (Aluminium) की वैल्डिंग में भी किया जाता है।

ऑक्सीडाइजिंग ज्वाला (Oxydising Flame)

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  • इस ज्वाला में एसीटिलीन गैस की तुलना में ऑक्सीजन गैस की मात्रा अधिक होती है। उदासीन ज्वाला (Neutral Flame) बनाने के बाद यदि ऑक्सीजन गैस की मात्रा बढ़ा दी जाए तो यह बनने वाली ज्वाला ऑक्सीडाइजिंग ज्वाला बन जाती है। यह ज्वाला उदासीन ज्वाला की तरह ही होती है अन्तर केवल इतना होता है कि इसका अन्दरूनी कोन (Inner Cone) उदासीन ज्वाला की अपेक्षा छोटा और पतला होता है।
  • यह ज्वाला ऑक्सीकृत (Oxidise) करती है, जिससे यह ज्वाला वैल्डिंग करने में कमजोर होती है।
  • ऑक्सीडाइजिंग ज्वाला का प्रयोग - स्टील (Steel), पीतल (Brass), कास्ट आयरन (Cast Iron) तथा काँसे की वैल्डिंग में किया जाता है।

गैस वैल्डिंग में ज्वाला में उत्पन्न दोष

ज्वाला का कांपना (Flickering of Fire)

इस दोष में ज्वाला समान रूप से नहीं जलती अर्थात् ज्वाला कांपती हुई जलती है। यह दोष वाटर सील से होज पाईप में पानी आने से उत्पन्न होता है।
निवारण : वाटर सील में पानी का तल चैक कर लेना चाहिए। वैल्डिंग टॉर्च को होज पाईप से निकालकर गैस के वाल्व को खोलकर रुका हुआ पानी बाहर निकाल लेना चाहिए।

ज्वाला का टूटना (Breaking of Flame)

गैस का दाब अधिक होने के कारण ज्वाला वैल्डिंग टॉर्च की टिप से अधिक आगे जलती हुई दिखाई देती है और बार-बार टूटती हुई दिखाई देती है।
निवारण : सिलेण्डरों के रेगुलेटरों के द्वारा दाब (Pressure) कम करने से ज्वाला (Flame) का टूटना बन्द हो जाता है,

ज्वाला के साइज का छोटा-बड़ा होना (Changing,
of Flame)

सिलैण्डरों के दाब रेगुलेटरों (Pressure Regulators) के ठीक तरह से काम न करने के कारण गैसों का दाब कम-ज्यादा रहता है। यह दोष ज्यादातर सिंगल स्टेज रेगुलेटरों में होता है।
निवारण : इस दोष के निदान के लिए सिंगल स्टेज रेगलेटरों स्थान पर डबल-स्टेज रेगुलेटरों का इस्तेमाल करना चाहिए।

बैक फायर (Back Fire)

वैल्डिंग करते समय ज्वाला का अचानक पटाखा होने के बाद बन्द हो जाना, बैक फायर कहलाता है।
निवारण : वैल्डिंग टॉर्च को बन्द करके उसकी टिप को ठण्डा करने के बाद साफ करने के बाद वैल्डिंग प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।

फ्लैश बैक (Flash Back)

वैल्डिंग करते समय ज्वाला (Flame) वैल्डिंग टॉर्च के अन्दर चली जाती है तथा हैण्डल को गर्म कर देती है। इस दोष में सी - सी की आवाज भी आती है।
निवारण : इस दोष से बचने के लिए टॉर्च के दोनों नीडल वाल्व को बन्द कर देना चाहिए। वाटर सील का पानी चैक कर चाहिए। दोष को सही करके ही वैल्डिंग प्रक्रिया शुरू चाहिए।

पोपिंग (Popping)

इस दोष के कारण जलती हुई ज्वाला में पिट-पिट की
आती है। यह दोष गैस की सप्लाई कम होने के कारण पैदा है। टॉर्च को धातु पर एक जगह अधिक देर तक रखने से भी दोष उत्पन्न होता है।
निवारण : वैल्डिंग टॉर्च के नीडल वाल्व (Needle Valves) को खोलकर गैस की सप्लाई बढ़ा देनी चाहिए तथा वैल्डिंग टॉर्च को एक स्थान पर अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए।

टॉर्च टिप तथा हैड का अधिक गर्म हो जाना (Torch Tip and Head becomes too Hot)

ताप के रेडियेशन के कारण ज्वाला (Flame) का सही दिशा में प्रयोग न करने के कारण टिप (Tip) तथा हैड (Head) गर्म हो जाते हैं।
निवारण : वैल्डिंग टॉर्च का अधिक गर्म होने पर उसे पानी द्वारा ठण्डा कर लेना चाहिए। ऐसा करते समय टॉर्च का वाल्व खुला रखना चाहिए क्योंकि ऐसा करते समय कभी-कभी वाल्व में पानी भर जाता है।

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