ऊष्मा उपचार क्या है? (Introduction of Heat Treatment in hindi)
किसी धातु या मिश्र धातु को निश्चित तापमान तक गरम करने के पश्चात किसी निश्चित दर से ठण्डा किया जाता है, जिससे धातु के आन्तरिक गुणों में परिवर्तन होता है। इस क्रिया को ही ऊष्मा उपचार कहते हैं।इस क्रिया से इस्पात के आन्तरिक संघटन पर प्रभाव पड़ता है।
इंजीनियरिंग कार्यों में इस्पात (Steel) का अनेक कार्यों में उपयोग होता है इसलिए इसमें कुछ विशेष गुणों का होना अति आवश्यक होता है क्योंकि इसे कई स्थानों पर मोड़ना या ऐंठना पड़ता है। बहुत-से स्थानो पर इसे कई प्रकार के प्रतिबल (Stresses) सहन करते पड़ते हैं।
विभिन्न प्रकार के कर्तन औजार जिनके लिए उपयुक्त पदार्थ जिसमें पर्याप्त कठोरता तथा चीमड़पन होना अति आवश्यक है। साथ ही कर्तन औजार (Cutting Tool) का मुलायम होना भी आवश्यक होता है।
विभिन्न आवश्यकता तथा उपयोगिताओं को देखते हुए इस्पात में वाछित गुणों के समावेश ही ऊष्मा उपचार (Heat Treatment) द्वारा किया जाता है।
इस्पात की संरचना (Structure of Steel)
शुद्ध लोहा पूर्णरूप से फेराइट का बना होता है, जो कि मुलायम तथा तन्य धातु होती है। इसकी आन्तरिक संरचना रवेदार (Crystalline) होती है।इस्पात (Steel) लोहा और कार्बन की मिश्र धातु (Allot होता है। कार्बन के मिलाने से इस्पात की संरचना पर काफी प्रभाव पडता है। यह कार्बन फेराइट के साथ मिलकर एक रासायनिक मिश्रण बनाता है, जिस सीमेंटाइट कहते हैं । सीमेंटाइट अत्यधिक कठोर तथा भंगुर एवं सफेद रंग का होता है। श्वेत ढलवां लोहे का आन्तरिक सफेद रंग सीमेंटाइट के कारण ही होता है।
धातु में सीमेंटाइट बनने की क्रिया आँख से नहीं दिखाई देती, इसको देखने के लिए माइक्रोस्कोप प्रयोग किया जाता है।
सीमेंटाइट लोहे में स्वतन्त्र रूप से विद्यमान नहीं रह कर पर्लाइट के रूप में मिलता है। पर्लाइट फेराइट और सीमेंटाइट से मिलकर बना होता है। इसमें फेराइट 87% और सीमेंटाइट 13% रहता है। सीमेंटाइट के भार के अनुसार 6.67% कार्बन और 93.33% लोहा रहता है। अत: कार्बन तथा लोहे का अनुपात 1:4 रहता है।
इस्पात में जितनी कार्बन की मात्रा बढ़ती है, उतनी ही पियर - लाइट की मात्रा भी बढ़ती है। साथ ही फेराइट की मात्रा उसी अनुपात में कम हो जाती है। इस संघटन के घटकों के अनुपात इस प्रकार का परिवर्तन उस समय तक होता रहता है, जब तक कार्बन की मात्रा बढ़कर 0.83% तक नहीं हो जाये। इस स्थिति में इस्पात पूर्णरूप से पियर लाइटयुक्त होता है। इसके बाद कार्बन की मात्रा जैसे-जैसे बढ़ाई जाती. है, वैसे-वैसे स्वतन्त्र सीमेंटाइट की मात्रा बढ़ने लगती है। पियरलाइट का अनुपात कम होने लगता है।
पियरलाइट बढ़ने से इस्पात की सामर्थ्यता बढ़ती है तथा इसके कम होने से सामर्थ्यता कम होने लगती है। इसमें 0.83% की सीमा तक कार्बन की मात्रा बढ़ने से इसकी सामर्थ्यता बढ़ती है। इस सीमा से अधिक कार्बन की मात्रा बढ़ाने से पियरलाइट की मात्रा कम हो जाती है। इसी प्रकार सीमेंटाइट के बढ़ने से कठोरता बढ़ती है।
स्वतन्त्र फेराइट काफी मुलायम तथा तन्य होता है, जैसे-जैसे कार्बन की मात्रा बढ़ती है, पियरलाइट बढ़ता है और स्वतन्त्र फेराइट कम होता है और इस्पात का मुलायमपन तथा तन्यता कम हो जायेगी।
इस्पात की संरचना में परिवर्तन (Changes of Steel Structure)
यदि 0.2% कार्बन वाले इस्पात के एक टुकड़े को धीरे-धीरे समान दर से गर्म किया जाये तो उसका तापमान 72307 तक समान रूप से बढता है फिर 723°C पर कुछ समय के लिए स्थिर हो जाता है। इस वधि में जो ऊष्मा धातु को दी जाती है, उसका कुछ भाग इस्पात की आन्तरिक संरचना में परिवर्तन में खर्च हो जाता है शेष भाग शेष तापमान बढ़ाने में इसी कारण तापमान बढ़ने की दर कम हो जाती है। इसके बाद कछ कम दर से तापमान 825°C तक बढ़ता है। यदि 825°C से आगे भी टुकड़े को गर्म किया जाये तो तापमान लगभग पुनः उसी पूर्व स्थिति के अनुसार बढ़ेगा।वह बिन्दु जिस पर तापमान पहली बार स्थिर होता है, उसे डिकलेसेंस बिन्दु (Decalescence Point) कहते हैं।
यदि इसी प्रकार इस्पात को उच्च तापमान पर वापिस ठण्डा किया जाता है तो विपरीत परिवर्तन होता है। ठण्डे होते समय उस बिन्दु के आस-पास तापमान में स्थिरता आती है। जिस समय गर्म करते समय पहली बार तापमान स्थिर हुआ था। ठण्डे करते समय इसके अलावा तेज रोशनी भी दिखाई देती है, इससे ऐसा लगता है कि ऊष्मा बाहर निकल रही है। इस बिन्दु को रिकलेसेंस बिन्दु (Recalescence Point) कहते हैं ।
इस बिन्दु के बाद ठण्डे होने की दर सामान्य रहती है जब तक कि सम्पूर्ण धातु या इस्पात पूरी तरह से ठण्डा नहीं हो जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि 0.2% कार्बन वाले इस्पात में 723°C से 825°C के मध्य संरचनात्मक परिवर्तन होता है।
क्रान्तिक तापमान (Critical Temperatures)
वह तापमान जिस पर धातु या इस्पात के आन्तरिक गुणों में परिवर्तन होना शुरू होता है और परिवर्तन होना समाप्त होता है। उसे क्रान्तिक ताप (Critical Temperatures) कहते हैं। यह तापमान 723°C से 825°C तक होता है।इसमें ठण्डा करते समय जो क्रान्तिक तापमान मिलते हैं, वे गर्म करते समय मिले क्रान्तिक तापमान से 20°C से 30°C तक कम होते हैं।
इन दोनों बिन्दुओं (निचले और ऊपरी क्रान्तिक बिन्दुओं) के बीच की तापमान रेंज को क्रान्तिक तापीय रेंज कहते हैं।
सभी प्रकार के इस्पातों के लिए वह तापमान जिस पर उसके आन्तरिक गुणों में परिवर्तन शुरू होता है, उसे निम्न क्रान्तिक बिन्दु (Lower Critical Point) कहते हैं।
वह तापमान जिस पर इस्पात या धातु के आन्तरिक गुणों में परिवर्तन होना समाप्त होता है, उसे उच्च क्रान्तिक बिन्दु (Upper Critical Point) कहते हैं।
यह इस्पात में कार्बन की मात्रा के अनुसार बदलता रहता है। 0.83% कार्बन वाले इस्पात में केवल एक ही क्रान्तिक बिन्दु होता है क्योंकि इसमें संरचनात्मक परिवर्तन इस एक ही तापमान पर होता है।ऊष्मा उपचार के समय इस्पात में कार्बन की मात्रा का प्रभाव (Carbon Effects in Steel of Heat Treatment Time)
अलग-अलग कार्बन की मात्राओं वाले इस्पातों को जब गर्म किया जाता है तो उनकी आन्तरिक संरचनाओं में परिवर्तन होते हैं।जब 0.83% तक कार्बन वाले इस्पातों को गर्म किया जाता है तो लगभग 723°C तापमान पर उसकी आन्तरिक संरचना पूरी तरह से फेराइट तथा पियरलाइट से युक्त हो जाती है।
इसी प्रकार जब 0.83% से अधिक कार्बन वाले इस्पातो को गर्म किया जाता है तो लगभग 723°C पर ही उनकी संरचना पूरी तरह से पर्लाइट तथा सीमेंटाइट युक्त हो जाती है।
यदि कार्बन की मात्रा 0.83%इस्पात में मिली हो तो लगभग 723°C पर इसकी संरचना केवल पर्लाइट होती है।
यदि जब 0.83% से कम कार्बन वाले इस्पात को गर्म किया जाता है। उसमें कार्बन की मात्रा बढ़ती है और फेराइट की मात्रा घटती है और पर्लाइट की मात्रा बढ़ती जाती है। ऐसा जब होता है तब कार्बन 0.83% न हो जाये। 0.83% कार्बन होने पर केवल पर्लाइट रह जाता है और फेराइट समाप्त हो जाता है।
कार्बन की मात्रा इस्पात में 0.83% से जैसे-जैसे बढती जाती है, वैसे-वैसे पियरलाइट घटता जायेगा और सीमेंटाइट बढ़ता जाता है।
निम्न क्रान्तिक तापमान (723°C ) सभी इस्पातों के लिए समान होता है अर्थात कार्बन की मात्रा का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके विपरीत उच्च क्रान्तिक तापमान सभी इस्पातों के लिए कार्बन की मात्रा अलग-अलग होती है।
0.83% कार्बन तक के इस्पातों में कार्बन की मात्रा जितनी कम होती है, उच्च क्रान्तिक ताप उतना ही अधिक होगा। इसी तरह 0.83% कार्बन होने पर दोनों तापमान समान होंगे।
ऊष्मा उपचार क्यो आवश्यक है (Necessity of Heat Treatment)
ऊष्मा उपचार के लिए निम्नलिखित आवश्यकताएँ होती हैं(1) यह धातु को मुलायम बनाता है, जिससे उस पर आसानी से मशीनन (Machining) की जा सके।
(2) कठोर की हुई वस्तुओं की भंगुरता कम करके चीमड़पन के गुण को बढ़ाता है।
(3) धातु के कणों को शुद्ध करता है। .
(4) कर्तन औजारों (Cutting Tools) में कठोरता का गुण लाने के लिए जिससे उससे दूसरी धातुओं को आसानी से काटा जा सकता है।
(5) विद्युत एवं यांत्रिक गुणों में सुधार करने के लिए।
(6) ऊष्मा तथा संक्षारण का प्रतिरोधी बनाने के लिए
(7) गर्म या ठण्डी अवस्था में धातु पर कार्य करते समय उसमें उत्पन्न प्रतिबलों (Stresses) को दूर करने के लिए।
(8) गैसों को निकालने के लिए।
(9) रासायनिक संघटन में परिवर्तन लाने के लिए।
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