स्नेहक (lubrication) किन किन विधियों से किया जा सकता है (method of lubrication)

 

इस पोस्ट में हम जानेंगे स्नेहक(lubrication) की विधि के बारे में जैसे गुरुत्वीय भरण विधि, बल भरण विधि, स्प्लैश भरण विधि आदि

स्नेहक की विधि (method of lubrication)

दोस्तों स्नेहक की मुख्य रूप से तीन विधियां होती है जो निम्नलिखित हैं |
1. गुरुत्वीय भरण विधि (gravity feed method)
2. बल भरण विधि (force feed method)
3. स्प्लैश भरण विधि (splash feed method)

गुरुत्वीय भरण विधि (gravity feed method)

स्नेहको को मशीन पार्ट तक पहुंचाने हेतु इस विधि का उपयोग किया जाता है | इस विधि में एक तेल के टैंक को सीधे बियरिंग के ऊपर रखा जाता है, जहां से तेल आपस में स्पर्श करने वाली सतहों के बीच या बियरिंग के अंदर गुरुत्वाकर्षण (gravity) के द्वारा प्रवेश करता है |
इस सिद्धांत का उपयोग अनेक प्रकार के स्नेहन (lubrication) करने वाले साधनों द्वारा किया जाता है |
इस विधि में साधारण तेल छिद्र (oil hole) से लेकर बड़े तक तैयार की हुई बत्ती जिसमें तेल के बहाव को नियंत्रित किया जाता है इसी सिद्धांत पर आधारित होता है |
सभी तैल छिद्र पर किसी न किसी प्रकार कि युक्ति का प्रबंध होना आवश्यक है अन्यथा धूल मिट्टी से छिद्र भर जाएगा, इस कारण बियरिंग या सतहों का स्नेहन नहीं किया जा सकेगा |
इस विधि के अंतर्गत निम्नलिखित साधनों (युक्तियों) का प्रयोग किया जाता है
A. तेल कप (oil cap)
B. विक भरण लुब्रिकेटर (Wick feed lubricator)
C. ग्लास साइडेड ड्रिप भरण लुब्रिकेटर (glass sided drip feed lubricator)
D. ल्यूवेन्स ग्लास बोतल लुब्रिकेटर (lieuvain's glass bottle lubricator)

A. तेल कप (oil cap)

यह स्नेहन(लुब्रिकेशन) करने का एक प्रकार का साधारण साधन होता है | इसे चूड़ियों(threads) की सहायता से तेल छिद्र (oil hole) में फिट किया जाता है |
यह तेल छिद्र (oil hole) और तेल को धूल और मिट्टी के कणों से बचाता है |


इसमें एक दूसरा सिलेंडर तेल कप (cylinder oil cap) होता है जो कि गन मेटल का बना होता है, इसका मुख्य रूप से उपयोग ऊर्ध्वाधर भाप इंजन सिलेंडर के लिए किया जाता है |
इसमें तो कॉक भी होते हैं, जिनमें ऊपरी कॉक केवल तेल भरने के लिए तथा निचली कॉक से तेल सिलेंडर में जाता है|
इनमें हम जब भी कोई एक कॉक को खोलते हैं, तो दूसरे को हमेशा बंद रखते हैं |

B. विक भरण लुब्रिकेटर (Wick feed lubricator)

इसकी बनावट साइफन सिद्धांत पर आधारित होती है |
उदाहरण के लिए यदि दो बर्तनों को लेकर एक में द्रव भर कर किसी ऊंचे स्थान पर रख दिया जाए और एक नली में द्रव भरकर उसके एक सिरे को ऊपर रखे बर्तन में डुबो दिया जाए तथा दूसरे सिरे को नीचे वाले खाली बर्तन में डाल दिया जाए तो जब तक की नली का सिरा ऊपरी बर्तन में रखें द्रव में डूबा रहता है, तब तक लगातार नली के द्वारा नीचे रखे बर्तन में द्रव्य गिरता रहेगा |

C. ग्लास साइडेड ड्रिप भरण लुब्रिकेटर (glass sided drip feed lubricator)

इससे स्नेहन विधि को साइट भरण लुब्रिकेटर (sight feed lubricator) भी कहा जाता है |
इसके तेल का बर्तन या कुम्पी हमेशा कांच की बनी होती है |
कुम्पी के ऊपर एक छेद बना होता है, जिसको फिलिंग छेद कहा जाता है | इस छेद से तेल को कुम्पी में डाला जाता है |
यह तेल फिल्टर से छन कर एक छेद के द्वारा भीतरी चेंबर में प्रवेश करता है और गुरुत्वाकर्षण के कारण एक नोजल से होकर बूंद बूंद गिरता रहता है |
इस विधि में तेल के बहाव को नीडल वाल्व द्वारा नियंत्रित(control) किया जाता है |
साइड ग्लास से यह देखा जाता है की तेल कितनी मात्रा में नीचे गिर रहा है |

D. ल्यूवेन्स ग्लास बोतल लुब्रिकेटर (lieuvain's glass bottle lubricator)

ल्यूवेन्स ग्लास बोतल लुब्रिकेटर को नीडिल लुब्रिकेटर भी कहा जाता है |
यह एक कांच की बनी हुई बोतल होती है, जिसको तेल से भरा जाता है
इस बोतल के मुंह पर एक दोहरे टेपर (double taper) का डॉट फिट रहता है |


यह डॉट एक लकड़ी का बना हुआ स्टोपर होता है | इस डॉट के बीच में एक सूई (needle) ढीली की हुई होती है |
बोतल को उलट कर इसके डॉट का निचला सिरा बियरिंग की ऊपरी भाग पर बनी टोपी (cap) मैं बनी तेल छिद्र में फिट कर दिया जाता है |
और जब साफ्ट के घुमाव से सुई हिलती है तो इसमें हवा के बुलबुले तेल चेंबर में प्रवेश करते हैं और इन बुलबुलों के द्वारा तेल अलग-अलग होकर बूंद बूंद करके सॉफ्ट पर गिरता रहता है |
इसमें आवश्यकता अनुसार सुई लगाकर तेल के बहाव को नियंत्रित किया जा सकता है |
इस विधि में जब सॉफ्ट गति करती है केवल उसी वक्त तेल गिरता है | सॉफ्ट के स्थिर होने पर तेल नहीं गिरता है |

2. बल भरण विधि (force feed method)

बल भरण विधि को दाब भरण (pressure feed) विधि भी कहा जाता है |
इस विधि में लुब्रिकेटर के द्वारा स्नेहक (lubricant) पर दबाव देखकर स्नेहक को स्पर्श करने वाली दोनों सतहों के बीच या बेयरिंग के अंदर प्रवेश कराया जाता है |
बल या दाब देकर स्नेहन करने के लिए निम्नलिखित प्रणालियां प्रयोग में लाई जाती हैं |
A. लगातार भरण (continuous field)
B. हाथ पंप द्वारा दाब भरण (pressure feed by head pump)
C. ग्रीस गन द्वारा (by Grease gun)
D. स्क्रू डाउन ग्रीसर (screw down greaser)
E. टेल टेल ग्रीस लुब्रिकेटर (tale tale Grease lubricator)

A. लगातार भरण (continuous field)

इस प्रणाली में एक ऑयल पंप को एक मशीन के द्वारा चलाया जाता है, जो कि लगातार प्रत्येक संबंधित बियरिंग को स्नेहक(lubricant) पहुंचाता रहता है |
इस विधि में तेल बहकर एक सम्प (sump) में जमा हो जाता है और यहीं से पंप द्वारा इसी खींचा जाता है |

B. हाथ पंप द्वारा दाब भरण (pressure feed by head pump)

इस प्रणाली में मशीन ऑपरेटर को मशीन पर कार्य करते समय अपने हाथ से एक या दो बार हस्त पंप को चलाना पड़ता है |


इस प्रणाली के द्वारा प्रत्येक संबंधित सतह  या बियरिंग का स्नेहन होता है |

C. ग्रीस गन द्वारा (by Grease gun)

इस विधि में बियरिंग के ऑयल हॉल पर एक निप्पल लगा हुआ होता है |
इस निप्पल पर ग्रीस गन की नाक (nose) को फिट करके दबाया जाता है | जिसके कारण ग्रीस बियरिंग के अंदर प्रवेश करती है |
मुख्य रूप से 4 प्रकार की ग्रीस गन प्रयोग में ली जाती हैं जो निम्नलिखित  है |

1. टी हैंडल प्रेशर गन (t handle pressure gun)



2. स्वचालित तथा हाइड्रोलिक टाइप प्रेशर गन (automatic aur hydrolic type pressure gun)



3. लीवर टाइप प्रेशर गन (lever type pressure gun)



4. साधारण ग्रीस गन (simple pressure gun)



D. स्क्रू डाउन ग्रीसर (screw down greaser)

स्क्रू डाउन ग्रीसर को हस्त दाब स्टैफर भी कहा जाता है |
यह पीतल या ढलने लोहे का बना होता है |  अच्छी पकड़ के लिए इसके ऊपर की टोपी (कैप) को नर्ल किया जाता है|
और इस टोपी में आंतरिक चूड़ियां कटी होती है|
इस नर्ल की हुई टोपी को हाथ से घुमाकर सॉफ्ट के ऊपर ग्रीस को निचोडा जाता है |
इसका उपयोग धीमी गति से चलने वाले तथा भारी भार को सहन करने वाली बियरिंग मे किया जाता है |

E. टेल टेल ग्रीस लुब्रिकेटर (tale tale Grease lubricator)

इस प्रणाली में नालीदार एक टोपी या कैप होती है, जिसके साथ एक स्प्रिंग लगा हुआ पिस्टन होता है | जिसका साइज टोपी की छोटी साइज से मिलाया हुआ होता है |
इस पिस्टन को स्प्रिंग ही बलपूर्वक रोके रखती है |
इसमें टोपी को थोड़ा सा घुमाने के बाद ही स्वचालित (automatic) क्रिया चालू हो जाती है |
ग्रीस के बहाव को नियंत्रण में रखने के लिए ग्रीस चेंबर में लगे ग्रब इस स्क्रु को समायोजित (adjust) किया जा सकता है |

3. स्प्लैश भरण विधि (splash feed method)

इस विधि में साफ्ट उससे जुड़ा कोई एक भाग तेल में डूबा रहता है, जिस की गति के साथ स्नेहक(lubricant) की धारा उस भाग के चारों ओर लगातार उछलती रहती है |
यह विधि ऑल गियर ड्राइव के अंदर गीयर और बियरिंगो का स्नेहन करने के लिए अपनाई जाती है |



इसमें गियर का निचला सिरा यदि तेल में डूबा हो फिर भी तेल का उचित तल अवश्य होना चाहिए | इसकी व्यवस्था एक अलग फीलिंग स्पाऊंट के द्वारा की जाती है, जिसे तेल से भर कर रखा जाता है |
इस प्रणाली में बियरिंग बीच में से कटी होती है और सॉफ्ट पर एक रिंग गुजरती है | रिंग का निचला सिरा तेल टैक में डूबा रहता है | जब सॉफ्ट घूमती है, तब उसके साथ-साथ तेल चिपक कर शाफ्ट अथवा बियरिंग में पहुंचता है |


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