सोल्डरिंग (Soldering) सोल्डरिंग के प्रकार Types Of Soldering और सोल्डरिंग फ्लक्स के प्रकार Types Of Soldering Flux

 इस पोस्ट में हम जानेंगे ITI Fitter Theory के अध्याय सोल्डरिंग (Soldering) सोल्डरिंग के प्रकार Types Of Soldering और सोल्डरिंग फ्लक्स के प्रकार Types Of Soldering Flux के बारे में

सोल्डरिंग (Soldering)

दो एक-सी धातुओं, खासतौर पर पतली चादरों (Sheets) को आपस में अर्द्ध-स्थायी रूप से जोड़ने की विधि को सोल्डरिंग कहते हैं। धातु के टुकड़ों को जोड़ने के लिए एक अन्य फिलर मैटल प्रयोग की जाती है और इस जोड़ने वाली धातु को ही सोल्डर (Solder) कहते हैं। सोल्डर को पिघली हुई अवस्था में प्रयोग किया जाता है। सोल्डर मुख्यतः लैड (Lead) और टिन (Tin) की ऐलॉय (Alloy) होती है। कभी-कभी इसका गलनांक (Melting Point) कम करने के लिए दूसरी धातुएं भी मिलाई जाती हैं।
साधारण सोल्डर का गलनांक 200°C होता है।
सोल्डरिंग के लिए उपयोगी फिलर मैटल अर्थात् सोल्डर का गलनांक 350°C से कम ही होना चाहिए।

सोल्डर के मिश्रण एवं उपयोग

Solder-Ke-Misran


सोल्डर के प्रकार Types Of Solder

सोल्डर को दो भागों में बांटा गया है जो निम्नलिखित है|

  1. नरम सोल्डर (Soft Solder)
  2. कठोर सोल्डर (Hard Solder)


नरम सोल्डर (Soft Solder)

इसका प्रयोग प्रायः उन पतली चादरों (Sheets) को जोड़ने के लिए किया जाता है, जिन्हें न तो ऊँचे तापमान का सामना करना पडे और न ही अधिक बल और भार सहना हो। इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे पार्ट्स तथा तारों को जोड़ने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। यह सोल्डर मुख्यतः सीसे (Lead) और टिन (Tin) को मिलाकर बनाया जाता है।
इसके पिघलने का तापमान 150-300°C तक होता है परंतु इसमें विस्मथ और एंटीमनी मिलाने से इसका गलनांक (Melting Point) बहुत कम अर्थात् 56°C तक गिर जाता है। नरम सोल्डर के विभिन्न मिश्रण एवं उपयोग उपरोक्त तालिका में दिखाए गए हैं, इसका इस्तेमाल अधिकतर स्टील, ताँबा, पीतल और टिन आदि की बनी हल्की वस्तुओं को जोड़ने के लिए किया जाता है। इसका सबसे अधिक इस्तेमाल बिजली और रेडियो के कामों में तांबे के तार का जोड़ या कनैक्शन बनाने के लिए किया जाता है।
नरम सोल्डर से बनाए गए जोड़ 300°C तापमान पर खुल जाते हैं, साथ ही यह अधिक मजबूत भी नहीं होता। अतः जहाँ अधिक मजबूती की आवश्यकता हो या जॉब कंपन्न और उच्च तापमान के अधीन हो, वहाँ नरम सोल्डर का प्रयोग न करके कठोर सोल्डर इस्तेमाल किया जाता है।

कठोर सोल्डर (Hard Solder)

यह ताँबे (Copper) और जस्ते (Zinc) की एलॉय है, जिसे सिल्वर सोल्डर बनाने के लिए कभी-कभी थोड़ी-सी चाँदी (Silver) भी मिला ली जाती है।
यह नरम सोल्डर की अपेक्षा अधिक कठोर होता है तथा Hard Solder का गलनांक 350-600°C तक होता है
इसका इस्तेमाल कठोर सोल्डरिंग (Hard Soldering) अर्थात् ब्रेजिंग (Brazing) में किया जाता है। कठोर सोल्डर में जस्ते (Zinc) की मात्रा बढ़ाने से गलनांक कम होता है, ताँबे की मात्रा बढ़ाने से गलनांक बढ़ता है। 700°C से कम तापमान पर पिघलने वाली धातुओं पर ब्रेजिंग नहीं की जा सकती। इसका जोड़ बहुत मजबूत होता है, अतः भारी भार एवं कंपन्न बर्दाश्त करने वाले और ऊँचे तापमान के अधीन रहने वाले जॉब (Jobs) को कठोर सोल्डरिंग अर्थात् ब्रेजिंग के द्वारा जोड़ा जाता है।

स्पैल्टर (Spelter)

यह ताँबा और जस्ता या ताँबा, जस्ता तथा टिन अथवा ताँबा, जस्ता और कैडमियम मिलाकर बनाया जाता है। अधिकतर ताँबा और जस्ता बराबर-बराबर मात्रा में मिलाए जाते हैं।
2/3 भांग तांबा और 1/3 भाग जस्ता मिलाकर तैयार किया गया स्पैल्टर बहुत मजबूत जोड़ तैयार करता है 1/2 भाग ताँबा, 3/8 भाग जस्ता और 1/8 भाग टिन मिलाने से बहुत अच्छा स्पैल्टर तैयार होता है।
यह दानेदार या तार की शक्ल में मिलता है।
इससे अधिकतर ताँबा और स्टील आदि के जोड़ तैयार किए जाते है|
इससे पीतल भी जोड़ा जा सकता है। परन्तु इसके लिए स्पैल्टर का गलनांक कम करना पड़ता है।

सिल्वर सोल्डर (Silcver Solder)

यह ताँबा और चाँदी या ताँबा, चाँदी और जस्ता मिलाकर बनाया जाता है। यह अधिकतर 5 भागं ताँबा, 3 भाग जस्ता और 2 भाग 'चाँदी मिलाकर बनाया जाता है।
Silcver Solder का गलनांक नरम सोल्डर से अधिक लेकिन स्पैल्टर से बहुत कम होता है।
यह पतली पत्ती की शक्ल में मिलता है, जिसे आवश्यकता के अनुसार छोटे-छोटे टुकड़ो में काटा जा सकता है। इससे स्टेनलेस स्टील और निकिल को बहुत सफाई के साथ जोड़ा जा सकता है। वास्तव में यह सुनारी सोल्डर है, जिसका इस्तेमाल सुनार चाँदी और सोने के गहने बनाने में करते हैं।
सिल्वर सोल्डरिंग में उष्मा (Heart) देने के लिए ब्लो-पाइप (Blow Pipe) की आवश्यकता होती है |

सोल्डर वायर तथा स्टिक (Solder Wire and Stick)

साधारण प्रयोग में लाए जाने वाले सोल्डर तार या छड़ों के रूप में मिलते हैं। आवश्यकता के अनुसार इनके अवयवों की मात्रा में भिन्नता होती है क्योंकि ये विभिन्न धातुओं की सोल्डरिंग करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं और इन रूपों में ये स्वचालित ( Automatic) सोल्डरिंग विधियों के लिए भी उपयोग में लाए जाते हैं|

रेजिन कोर्ड सोल्डर (Resin Cored Solder)

सोल्डरिंग करते समय साधारणतया तीन क्रियाओं को एक साथ किया जाता है,
  1. फलक्स (Flux) लगाना
  2. सोल्डरिंग आयरन को गरम करना तथा
  3. सोल्डरिंग करना।
ये तीनों ही कार्य अलग-अलग करने होते हैं। सोल्डरिंग करते समय सबसे पहले फ्लक्स लगाया जाता है और फिर शेष दोनों क्रियाएँ की जाती हैं। यदि तीनों क्रियाएँ एक साथ की जाएं तो समय भी कम लगेगा और जोड़ भी मजबूत बनेगा। इसके लिए एक विशेष प्रकार के सोल्डर वायर का उपयोग किया जाता है। जिसके बीच में फ्लक्स ठोस, पाउडर या गाढ़े पेस्ट के रूप में स्थित रहता है। इसे फ्लक्स कोर्ड वायर कहते हैं।
जब वायर का किनारा गरम सतह पर लगाया जाता है तो उपयुक्त तापमान होने पर पहले फ्लक्स पिघलकर सतह पर फैलता है और फिर सोल्डर पिघलकर फ्लक्स लगी सतह पर बहता है और ठंडा होकर जोड़ बना देता है। कोर्ड सोल्डर वायर के प्रयोग से फ्लक्स के कम या अधिक लगने का डर नहीं रहता क्योंकि इससे नियंत्रित मात्रा (वाछित मात्रा) में फ्लक्स निकलता है। यह लगभग स्वचालित (Automatic) के जैसा ही होता है तथा बिना क्रिया वाला फ्लक्स सतह पर नहीं बचता और साफ सुथरा जोड़ तैयार हो जाता है।

फ्लक्स (Flux)

इसका प्रयोग जोड़ी जाने वाली सतह को ऑक्सीडेशन से बचाने तथा सोल्डर को पिघलाने के लिए किया जाता है। यह सतह को साफ रखता है तथा सोल्डर को फैलाने में भी सहायता करता है अर्थात् इसके प्रयोग से जोड़ की सतह पर जमी कार्बन एवं अन्य अशुद्धियाँ साफ हो जाती हैं।
ये सोल्डर को शीघ्र पिघलाने में सहायक होते हैं,
ये सोल्डर को शीघ्र बहने में सहायता करते हैं ताकि सोल्डर
तंग जगह में भी आसानी से पहुंच जाए,
यह धात पर सोल्डर को पकड़ को मजबूत बनाने में सहायक होता है|
सामान्य रूप से प्रयोग किए जाने वाले फ्लक्स जिंक क्लोराइड या अमोनियम क्लोराइड अथवा दोनों पानी में घोलकर या पैट्रोल में मिलाकर बनाए जाते हैं।
Flux में प्रायः 71% जिंक क्लोराइड तथा 29% अमोनियम क्लोराइड मिलाया जाता है।

सोल्डरिंग फ्लक्स के प्रकार Types Of Soldering Flux

कोरोसिस एलवरा Corrusive Tax)

यह क्षार ( Alkali) तथा तेजाव (Acid) आदि के बनाये जाते हैं जैसे जिंक क्लोराइड सोल्युशन, नमक का तेजाब (Hydrochloric Acid) तथा नौसादर आदि। फ्लक्स अगर धातु पर लगे रहें तो धातु को क्षति पहुँचाते हैं और धातु पर जंग आदि लग जाता है। इसका प्रयोग कभी भी रेडियो, टेलीविजन तथा एयरक्राफ्ट के भागों में नहीं करना चाहिए। सामान्य रूप से प्रयोग किये जाने वाला सक्रिय फ्लक्स (Active Flux) हाइड्रोक्लोरिक एसिड में जिंक को घोलकर तैयार किया जाता है। इसकी संक्षारण क्रिया (Corrosive Action) में कमी लाने के लिए इसमें कुछ ग्लिसरीन भी मिला दी जाती है। यह जोड़े जाने वाले भागों के ऊपर से ग्रीस एवं तेल हटाने के लिए बहुत उपयुक्त होता है।

नॉन-कोरोसिव फ्लक्स (Non-Corrosive Flux)

ऐसे फ्लक्स जिनके धातु पर लगे रहने से धातु को कोई नुकसान न पहुँचे, उन्हें नॉन-कोरोसिब फ्लक्स कहते हैं, जैसे : बिरौजा, सुहागा, तारपीन का तेल आदि। निष्क्रिय (Passive) फ्लक्स कार्य पर गाढ़े पेस्ट के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। जोड़ की सफलता के लिए उसको साफ करना आवश्यक है क्योंकि ये फ्लक्स सफाई कार्य नहीं करते। इस फ्लस्क के इस्तेमाल से संक्षारण (Corrosion) की संभावना नहीं रहती है और इसी कारण से इसे बिजली के कार्यों, रेडियो, टेलीविजन तथा एयरक्रास्ट के भागों को जोड़ने के लिए वरीयता के साथ प्रयोग करते हैं।
जिस माध्यम से ज्वाइन्ट को साफ किया जाता है, उसे फ्लक्स कहते हैं। यह प्राय: तरल, पेस्ट या पाउडर के रूप में पाया जाता है। जब सोल्डरिंग या ब्रेजिंग की जाती है तो जोड़ के ऊपर फ्लक्स को लगाया जाता है।
फ्लक्स के निम्नलिखित मुख्य कार्य होते हैं
जोड़ को साफ करना।
जोड़ के ऊपर सोल्डर या स्पैल्टर की मजबूत पकड़ लाना।

धातु एवं फ्लक्स (Metal and Fluxes)

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मुख्य फ्लक्स (Main Flux)

हाइड्रोक्लोरिक एसिड (Hydrochloric Acid)

सोल्डरिंग के लिए इस अम्ल को पानी में डालकर हल्का कर लिया जाता है। यह नरम और कठोर दोनों प्रकार के सोल्डर के लिए उपयोगी है। इसमें जिंक के टुकड़े डालकर इसे साधारण कार्य के लिए उपयोगी बना लिया जाता है। यह एक जहरीला द्रव है और प्रयोग करते समय पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए। मुख्यतः जिंक चादर या जिंक लेपित चादरों (Galvanics Sheets) का सोल्डरिंग करते समय इसे प्रयोग किया जाता है।

जिंक क्लोराइड (Zime Chloride)

इस फ्लक्स को ताँबे, पीतल, इस्पात तथा लोहे आदि के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे चूर्ण के रूप से सतहों पर छिड़कते हैं या पानी में घोलकर प्रयोग करते हैं। इसके लिए तीन भाग पानी में एक भाग जिंक क्लोराइड मिलाते
हैं। जिंक क्लोराइड को शीशे के बर्तन में रखा जाता है |

सुहागा (Borax)

इसे चाँदी तथा ताँबे (Copper) के ब्रेजिंग में प्रयोग किया जाता है। इसको चूर्ण के रूप में सतहों पर छिड़कते है या पानी में घोलकर प्रयोग करते हैं।

रेजिन (Resin)

इसे चूर्ण, छड़ या तरल के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह तरल ऑक्साइडों को घोलता तो नहीं है परंतु धातु को ऑक्सीकरण से बचाता है। यह नॉन कोरोसिव फ्लक्स है तथा अधिकतर विद्युत जोड़ों के लिए प्रयोग किया जाता है।

सोल्डरिंग पेस्ट (Soldering Paste)

यह पेस्ट जिंक क्लोराइड को स्टार्च (Starch) में मिलाकर बनाया जाता है। कुछ सोल्डरिंग पेस्ट जिंक क्लोराइड, पैट्रोलियम जैली मिलाकर भी बनाए जाते हैं।

साल अमोनिक (Sal Ammoniac)

यह पाउडर या रवों के रूप में नरम सोल्डर के साथ प्रयोग किया जाता है। यह धातु सतहों पर से चिकने पदार्थों को घोल लेता है। इसकी 100 ग्राम मात्रा को आधा लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाया जाता है। यह घोल सोल्डरिंग आयरन की बिट को साफ करने के काम में आता है।

सोल्डरिंग आयरन् (Soldering Iron)

सोल्डरिंग करने के लिए जिस टूल का प्रयोग किया जाता है उसे सोल्डरिंग आयरन कहते हैं। इसके हैंडल, शैंक और टिप तीन मुख्य पार्ट होते हैं।

सोल्डरिंग आयरन के प्रकार Types Of Soldering Iron

प्लेन सोल्डरिंग आयरन (Plain Soldering Iron)

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इस प्रकार के सोल्डरिंग आयरन में गोल, षट्भुज या अष्टभुज तांबे की टिप लगी होती है, जिसका आगे का सिरा टेपर करके नुकीला बना दिया जाता है। इसका प्रयोग प्राय: हल्के कार्यों के लिए किया जाता है।

हैचेट सोल्डरिंग आयरन (Hatchet Soldering Iron) 

Hatchet-Soldering-Iron

इस प्रकार के सोल्डरिंग आयरन का टिप प्राय: तांबे का होता है जिसका आकार कुल्हाड़ी जैसा होता है।

यह प्लेन सोल्डरिंग आयरन की अपेक्षा कुछ बड़े साइज की होती है|
इसका प्रयोग प्रायः साधारण कार्यों के लिए किया जाता है।

गैस सोल्डरिंग आयरन (Gas Soldering Iron)

Gas-Soldering-Iron

इस प्रकार की सोल्डरिंग आयरन में एक हॉलो पाईप और एक डॉलो कॉपर टिप होती है। जिनको एक हॉलों हैंडल के साथ फिट कर दिया जाता है। हैंडल के सिरे पर गैस का एक फ्लैक्सीबल पाईप फिट कर दिया जाता है जिससे गैस प्रवाहित की जाती है

और टिप पर बने हुए हवा के सुराखों से गैस की ज्वाला उत्पन्न होती है। इस प्रकार की सोल्डरिंग आयरन प्राय: वहाँ पर प्रयोग में लायी जाती है, जहाँ पर सोल्डरिंग कार्य लगातार करना होता है।

कार्टिज सोल्डरिंग आयरन (Cartridge Solddering Iron)

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इस प्रकार के सोल्डरिंग हैंडल के साथ आयान में एक कार्टिज चैम्बर होता है, जिसके एक सिरे पर कॉपर टिप और दूसरे सिरे पर एक गोल रॉड फिट रहते हैं। चैम्बर के अन्छर एक कार्टिज रखी जाती है, जिसमें मैगनीशियम कम्पाउंड का मिक्स्चर भरा रहता है। हैंडल के साथ फिट की हुई रॉड से धक्का लगाकर इसमें ज्वाला उत्पन्न की जाती है, जिससे टिप गर्म हो जाती है। एक कार्टिज लगभग 7 मिनट तक सोल्डरिंग आयरन को गर्म रख पाती है, जिससे टिप गर्म हो जाती है। इस प्रकार की सोल्डरिंग आयरन प्राय: वहां पर प्रयोग की जाती है, जहाँ पर अधिक कठिन सोल्डरिंग करनी पड़ती है।

इलैक्ट्रिक सोल्डरिंग आयरन (Electric Soldering Iron)

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इस प्रकार के सोल्डरिंग आयरन को बिजली के द्वारा गर्म किया जाता है, जिसके सिरे पर ताँबे की एक प्लेन टिप लगायी जाती है। इस सोल्डरिंग आयरन का प्रयोग प्राय: हल्के कार्यो जैसे रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीविजन आदि में विद्युत के तारों को जोड़ने में किया जाता है। इसके अन्दर एक एलीमेंट होता है, जिसमें विद्युत धारा प्रवाहित करके इसे गर्म किया जाता है। इस एलीमेंट को माइका इन्सूलेटर के द्वारा बिट से अलग किया जाता है। ये 25 से150 वाट के हीटिंग एलीमेंट्स की रेन्ज में मिलती हैं
5/32" व्यास की बिट वाली 25 वाट की सोल्डरिंग आयरन
इलैक्ट्रॉनिक कार्य एवं छोटे धातु पात्रों के लिए संतोषजनक है। बड़े टर्मिनल्स (जैसे कुछ ट्रान्सफॉर्मस पर) और मध्यम साइज के धातु पात्रों के लिए 5.8" व्यास की बिट एवं 80 वाट की सोल्डरिंग आयरन को उपयोग में लाना चाहिए।

सोल्डरिंग का वर्गीकरण (Classification of Soldering)

नरम सोल्डरिंग (Soft Soldering)

नरम (Soft) सोल्डरिंग के लिए सोल्डरिंग आयरन एक मुख्य टूल है, जिसके द्वारा सोल्डर को पिघलाते हैं और जोड़ी जाने वाली सतह पर लगाकर पिघले हुए पदार्थ को पतली परत के रूप में फैलाते हुए चले जाते हैं। सोल्डरिंग का वर्गीकरण प्रयोग में लाई जाने वाली सोल्डरिंग आयरन को गरम करने के आधार पर किया जाता है और इस आधार पर इस प्रोसिस को निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जा सकता है
  1. फोर्ज सोल्डरिंग (Forge Soldering)
  2. विद्युत या गैस सोल्डरिंग (Electric or Gas Soldering)

फोर्ज सोल्डरिंग (Forge Soldering)

इसमें प्रयोग होने वाली सोल्डरिंग आयरन को लकड़ी, कोयले, गैस या स्टोव से गरम किया जाता है। गरम करने वाले माध्यम से हटाकर इसे उपयुक्त फ्लक्स में डुबोकर सोल्डर पर रगड़ते हैं, जिससे पिघलकर सोल्डर इस पर चिपक जाए। अब सोल्डर लगी हुई बिट को जोड़ पर रगड़ते हैं। काफी देर तक सोल्डरिंग करते समय सोल्डरिंग आयरन को थोड़ी-थोड़ी देर बाद गरम करना पड़ता है।

विद्युत या गैस सोल्डरिंग (Electric or Gas Soldering)


इसके अंतर्गत सोल्डरिंग आयरन को विद्युत, गैस या तेल के लगातार बहाव से स्वयं अंदर ही अंदर गरम होने देते हैं। यह प्रोसिस सामान्तया लम्बे समय तक सोल्डरिंग करने के लिए प्रयोग की जाती है। गरमी के स्त्रोत (Source) के आधार पर सोल्डरिंग आयरन कई प्रकार की होती हैं। जब सोल्डरिंग आयरन को विद्युत पावर से गरम किया जाता है, तब इसे विद्युत सोल्डरिंग कहते हैं।

लेखक की कलम से-
दोस्तों में हूं Sunil Kumar Yadav और इस पोस्ट में हमने जाना आईटीआई फिटर थ्योरी ITI Fitter theory के अध्याय सोल्डरिंग (Soldering) सोल्डरिंग के प्रकार Types Of Soldering और सोल्डरिंग फ्लक्स के प्रकार Types Of Soldering Flux के बारे में | जैसा कि मैं उम्मीद करता हूं इस पोस्ट में आपने सोल्डरिंग (Soldering) के बारे में उचित जानकारी प्राप्त की होगी | इसी प्रकार ITI Fitter Theory से संबंधित जानकारी  प्राप्त करने  और ITI Online Exam की प्रैक्टिस के लिए हमारे साथ बने रहे तथा अपने दोस्तों को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें | इस पोस्ट के बारे में अगर आपका कोई सुझाव या शिकायत है तो कृपया हमें टिप्पणी(comments) करें हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा धन्यवाद |

सरक्लिप (Circlip) | सरक्लिप का वर्गीकरण (Classification Of Circlip)

 दोस्तों इस पोस्ट में हम जानेंगे फिटर थ्योरी Fitter Theory के अध्याय सरक्लिप (Circlip)|सरक्लिप का वर्गीकरण (Classification Of Circlip) जैसे Axially Assemble Ring,Radially Assemble Ring और  Circlip के प्रकार के बारे में |

सरक्लिप (Circlip)

सरक्लिप (Circlip) ऐसी बन्धक युक्ति (Fastening Device) है, जिसका प्रयोग एसेम्बली में चलने वाले पार्ट्स को स्थिर (Fixed) करने के लिए किया जाता है। सरक्लिप को रीटेनिंग रिंग्स (Retaining Rings) भी कहते हैं।



Circlip

 सरक्लिप प्रायः स्प्रिंग के बने होते हैं, जिससे कि फास्टनर को उचित डिग्री पर प्रत्यास्थता से विकृत तथा मूल आकार में पुनः वापिस लाया जा सके। सरक्लिप का कार्य घूमने वाले पार्टो को पकड़ना होता है।

अन्दरूनी सरक्लिप (Internal Circlip)

Internal-Circlip

 
इंटर्नल सरक्लिप (Internal Circlip) हमेशा सुराख के अन्दर या बोर के अन्दर फिट किये जाते हैं। 

सरक्लिप का वर्गीकरण (Classification Of Circlip) 

सरक्लिप को कार्य के अनुसार दो भागों में वर्गीकृत (Classification) किया गया है। 

  1. एक्सीयल एसैम्बल रिंग (Axially Assemble Ring)
  2. रेडियली एसेम्बल रिंग (Radially Assemble Ring)

एक्सीयल एसैम्बल रिंग (Axially Assemble Ring)

सरक्लिप या रिंग प्रायः शाफ्ट या बोर के अक्ष के समान्तर लगाये जाते हैं, जिनमें रिंग उपयोग किये जाने हों अधिकांशत: एक्सीयली रिंग्स में कुछ गैप होता है। ये ग्रूव्स में सम्पर्क (Connect) बनाते हैं, जिनमें इन्हें सैट या फिट किया जाता है। इसके कारण अधिकांशतः एक्सीयली एसैम्बली (Axially Assembly) में उपेक्षित उच्च थ्रस्ट-लोड सहने की क्षमता होती है। 

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एक्सीयली एसैम्बल रिंग के प्रकार (Types Of Axially Assemble Ring)

  1. बेसिक इंटर्नल रिंग (Basic Internal Rings)
  2. मौलिक बाहरी रिंग (Basic External Ring)
  3. इनवर्टेड इंटर्नल रिंग (Inverted Internal Ring)
  4. हैवी ड्यूटी एक्सटनेल रिंग (Heavy Duty External Ring)
  5. परमानेंट शोल्डर रिंग (Permanent Solder Ring)

बेसिक इंटर्नल रिंग (Basic Internal Rings) 

इनमें आपसी खुलने का गैप कम होता है। ग्रूव को अधिकांश परिधि पर रिंग का अधिकतम संपर्क देने के लिए तथा एसैम्बली में उच्च थ्रस्ट की क्षमता की व्यवस्था करने के लिए रिंग का बाहरी व्यास नेबोर या ग्रूव के व्यास के संकेन्द्रिय (Concentric) होता है।

मौलिक बाहरी रिंग (Basic External Ring)

इस प्रकार के रिंग में बहुत कम गैप होता है। इसका टेपर सैक्शन (बाहरी) रिंग के लगभग चारों ओर होता है, तथा इंटर्नल टाईप, यह अधिक स्थायी सैट के बिना अधिकतम लचीलापन (Flexibility) देते हैं। इसका आन्तरिक व्यास, शाफ्ट तथा ग्रूव के व्यासके संकेन्द्रय होता है।

इनवर्टेड इंटर्नल रिंग (Inverted Internal Ring)

इनके बोर या हाऊसिंग में (सिकुड़ने) के लिए तुलानात्मक रूप से गैप कम होता है। इसका अतिरिक्त व्यास बोर या ग्रूव के व्यास के समकेन्द्रिय होता है। इसका टेपर सैक्शन ग्रूव की पर्याप्त गहराई में अधिकतम लचीलेपन तथा बैठने के लिए परिधि के अधिक भाग के चारों तरफ एक्सटेड (बढ़ता) होता है। ये रिंग रिटेन्ड पार्ट के सापेक्ष एक समान शोल्डर तथा अधिक एसैम्बली क्लियरेन्स की व्यवस्था करते हैं। 

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लग्स की आंतरिक परिधि में स्थित होने के अतिरिक्त इनकी डिजाइन इनवर्टेड इंटर्नल रिंग्स के समान ही होती है। जब इन्हें शाफ्ट या उसके समान पार्ट ग्रूव में लगाया जाता है तो ये पकड़े जाने वाले पार्ट के साथ समान शोल्डर की व्यवस्था करते हैं।

हैवी ड्यूटी एक्सटनेलरिंग (Heavy Duty External Ring)

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Heavy Duty External Ring कि औसत रेडियल सेक्शन की ऊंचाई और थिकनैस अधिक होती है । बार-बार दोहराने वाली लोडिंग और फटिग के कारण यह हैवी थ्रस्ट लोड के विरुद्ध अच्छी पकड़ कर करती है ।

परमानेंट शोल्डर रिंग (Permanent Solder Ring)

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Permanent Solder Ring सर्क्लिप को फैलाया या सिंकुड़ा नहीं जा सकता है क्योंकि, यह बिना गैप वाली Ring बनायी जाती है । इसकी परिधि पर चारों ओर नोचिस बने हुए होते हैं । यह बेहद साफ मेटीरियल्स से बनायी जाती है । इसे एक बार फिक्स करने के बाद यह शाफ्ट पर परमानेंट शोल्डर बना लेती है । यह वाटर प्रूफ बनावट के लिए उपयोगी होती है ।

रेडियली एसैम्बल्ड रिंग (Redialed Assembled Ring)

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यह अक्ष के रेडियल दिशा पर लगाये जाते हैं। रेडियल एसैम्बल्ड रिंग में इंस्टालेशन के लिए अधिक गैप होता है। रेडियल टाईप में एक्सियल रिंग की अपेक्षा सामान्य थ्रस्ट की क्षमता कम होती है। 

रेडियली एसैम्बल्ड रिंग के प्रकार (Types Of Radially Assemble Ring)

  1. क्रेसेन्ट रिंग (Kresent Ring)
  2. ई-रिंग(E-Ring)
  3. टू-पार्ट इंटरलॉकिंग रिंग (Two Part Interlocking Ring)
  4. हाई स्ट्रेंग्थ टाईप रिंग (High Strength Type Ring)

क्रेसेन्ट रिंग (Kresent Ring)

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इन रिंगस में शाफ्ट पर ग्रूव में रेडियल एसैम्बली के लिए अधिक गैप होता है तथा ये पकड़े जाने वाले पार्ट के साथ कम शोल्डर की व्यवस्था करते हैं। 

ई-रिंग(E-Ring)

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ई-रिंग(E-Ring) में अधिक गैप और अधिक बाहरी व्यास होता है इसकी अंदरूनी रिंग परिधि पर तीन परत होती हैं । यह छोटी शाफ्ट पर अपेक्षाकृत बड़े व्यास वाला शोल्डर प्रदान करने में सहायक होती है ।

टू-पार्ट इंटरलॉकिंग रिंग (Two Part Interlocking Ring)

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ये एक्सटर्नल रेडियली एसैम्बली रिंग होते हैं, जो उपयोग किये जाने वाले शाफ्ट पर चारों तरफ पूरी तरह से एक समान शोल्डर बनाते हैं। ये रिंग के आधे भाग प्रत्येक सिरे पर इंटरइंगेजिंग लग्स के द्वारा एक साथ लॉक हो जाते हैं । लगाते एवं निकालते समय बेण्डिग में आवश्यक लचीलेपन के लिए प्रत्येक आधे भाग का केन्द्र पर सैक्शन कम होता है। जब रिंग को ग्रुव में एसैम्बल किया जाता है तो ये उच्च रोटेशन स्पीड का प्रतिरोध करते हैं। 

हाई स्ट्रेंग्थ टाईप (High Strength Type Ring)

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ये रेडियली एसैम्बल्ड रिंग होते हैं तथा इनमे दो बड़े लग्स होते हैं, जोकी ग्रूव के बड़े भाग को परिमाप के चारों तरफ सम्पर्क बनाते हैं। ये थ्रस्ट लोड से अच्छे प्रतिरोध की व्यवस्था करते हैं। ये रिंग तुलनात्मक साइज 'ई' या क्रेसेन्ट प्रकार के रिंग की अपेक्षा मोटे होते हैं। ये रिंग गहरे ग्रूव में बैठते हैं तथा छोटे व्यास के शाफ्ट पर बड़े शोल्डर की व्यवस्था करते हैं। 

लेखक की कलम से-
दोस्तों में हूं Sunil Kumar Yadav और इस पोस्ट में हमने जाना आईटीआई फिटर थ्योरी ITI Fitter theory के अध्याय सरक्लिप (Circlip) | सरक्लिप का वर्गीकरण (Classification Of Circlip) जैसे Axially Assemble Ring,Radially Assemble Ring और  Circlip के प्रकार के बारे में | जैसा कि मैं उम्मीद करता हूं इस पोस्ट में आपने Circlip के बारे में उचित जानकारी प्राप्त की होगी | इसी प्रकार ITI Fitter Theory से संबंधित जानकारी  प्राप्त करने  और ITI Online Exam की प्रैक्टिस के लिए हमारे साथ बने रहे तथा अपने दोस्तों को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें | इस पोस्ट के बारे में अगर आपका कोई सुझाव या शिकायत है तो कृपया हमें टिप्पणी(comments) करें हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा धन्यवाद |

टेपर Taper क्या होता है | टेपर के प्रकार (Types of Taper) और टेपर के लाभ Advantage Of Taper

 दोस्तों इस पोस्ट में हम जानेंगे आईटीआई फिटर थ्योरी ITI Fitter Theory के अध्याय | टेपर Taper क्या होता है (Taper Kya Hota Hai) टेपर के प्रकार (Types of Taper) टेपर के लाभ Advantage Of Taper/Taper Ke Labh टेपर प्रकट करने की विधियाँ (Methods Of Indicating Taper) आदि के बारे में |

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टेपर Taper क्या होता है (Taper Kya Hota Hai)

किसी जॉब के दोनों सिरों के व्यासों या मोटाइयों की अक्ष रेखा से समान रूप से होने वाले घटाव या बढ़ाव को टेपर कहते हैं। अगर आसान शब्दों में कहें तो टेपर का अर्थ है किसी पर्जे का एक छोर की ओर छोटा या पतला एवं दूसरे छोर पर धीरे धीरे मोटा होते जाना। इसका अर्थ किसी लंबी वस्तु की चौड़ाई या मोटाई में धीरे-धीरे कमी या वृद्धि होना भी है। 
टेपर को उसकी धुरी पर वर्कपीस के व्यास के समान परिवर्तन होने के रूप में भी परिभाषित किया जाता है।
मैकेनिकल इंजीनियरिंग में टेंपर को उनके वर्ग, आकार और उपयोग के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है जिसके बारे में हम आगे विस्तार से जानेंगे।
टेंपर के द्वारा हम मशीन के पुर्जों को जल्दी और सटीक रूप से संरेखित कर सकते हैं |

टेपर के प्रकार (Types of Taper)

मुख्य रूप से टेपर Taper पांच प्रकार के होते है आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं-
  1. मोर्स टेपर (Morse Taper)
  2. जार्नो टेपर (Jarno Taper) 
  3. ब्राउन एंड शार्प टेपर (Brown and Sharpe Taper)
  4. पिन टेपर (Pin Taper) 
  5. आई.एस.आई. टेपर (I.S.I. Taper) 

मोर्स टेपर (Morse Taper) 

यह एक स्टैंडर्ड टेपर होता है, जिसका प्रयोग मुख्य रूप से कटिंग टूल्स की शैंक और मशीनों के स्पिंडल में किया जाता है।

मोर्स टेपर Morse Taper मैं कितने नंबर होते हैं

मोर्स टेपर (Morse Taper) मैं कुल 8 नंबर होते हैं
यह टेपर 0 से 7 नंबर तक विभिन्न साइजों में पाया जाता है। इसका टेपर 5/8' ' प्रति फुट और कोण लगभग 1-° होता है। 

जार्नो टेपर (Jarno Taper)

यह एक स्टैण्डर्ड टेपर है, जिसका अधिकतम प्रयोग मशीनों के पार्ट्स पर किया जाता है। यह टेपर 1 से 20 नंबर तक विभिन्न साइजों में पाया जाता है। इसके विभिन्न साइज में निम्नलिखित सूत्रों से निकाले जा सकते हैं -

जार्नो टेपर (Jarno Taper) निकालने का सूत्र=

बडा व्यास = टेपर का नम्बर 8
छोटा व्यास = टेपर का नम्बर 10 
टेपर की लम्बाई = टेपर का नम्बर 2

ब्राउन एंड शार्प टेपर (Brown And Sharp Taper)

यह एक स्टैण्डर्ड टेपर होता है, जिसका अधिकतर प्रयोग कटिंग टूल्स के शैंक और मशीनों के पार्टो पर किया जाता है।
Brown And Sharp Taper 1 से 18 नंबर तक विभिन्न साइजों में पाए जाते हैं। यह टेपर लगभग 0.500" प्रति फुट होता है।

पिन टेपर (Pin Taper)

यह एक स्टैंडर्ड टेपर है, जो कि पिनों पर दिया जाता है। यह टेपर 0.25" प्रति फुट होता है। इस प्रकार का टेपर पिन रीमर पर भी दिया जाता है। टेपर पिनें 0 से 13 नंबर तक 14 साइजों में पायी जाती हैं।

आई.एस.आई. टेपर (I.S.I Taper)

यह टेपर भारतीय स्टैंडर्ड के अनुसार बनाया गया है। IS : 3458 1966 के अनुसार यह टेपर 1 : 0.066 से 1. 100 तक 38 अलग-अलग में पाया जाता है। कार्य के अनुसार भारतीय स्टैंडर्ड टेपर साइज देकर जॉब को बनाकर प्रयोग में लाया जा सकता है। 

टेपर के लाभ Advantage Of Taper/Taper Ke Labh

  • मशीन के पार्टो की सैटिंग आसानी से की जा सकती है।
  • टेपर के उपयोग से पार्ट्स स्वयं ही लॉक हो जाते हैं। अतः अलग से लॉकिंग माध्यम की आवश्यकता नहीं होती।
  • पार्ट्स अपने आप सैंटर लाइन में फिट हो जाते हैं।
  • पार्टो को आसानी से अलग भी किया जा सकता है।

टेपर प्रकट करने की विधियाँ (Methods Of Indicating Taper)

  • टेपर को प्रति इंच में प्रकट कर सकते हैं।
  • टेपर को प्रति फुट में प्रकट कर सकते हैं। 
  • टेपर का अनुपात देकर प्रकट कर सकते हैं। जैसे- 1 : 50 । टेपर की डिग्री देकर प्रकट किया जा सकता है। 
  • टेपर का नं. देकर प्रकट किया जा सकता है।
  • भारतीय टेपर को अनुपात और मानक देकर प्रकट करते हैं, जैसे- 1 : 12, IS : 3458

लेखक की कलम से-
दोस्तों में हूं Sunil Kumar Yadav और इस पोस्ट में हमने जाना आईटीआई फिटर थ्योरी ITI Fitter theory के अध्याय  टेपर Taper क्या होता है (Taper Kya Hota Hai) टेपर के प्रकार (Types of Taper) टेपर के लाभ Advantage Of Taper/Taper Ke Labh टेपर प्रकट करने की विधियाँ (Methods Of Indicating Taper) आदि के बारे में | मुझे उम्मीद है इस पोस्ट में दी गई जानकारी से आप पेपर के बारे में भली-भांति जान गए होंगे इसी प्रकार ITI Fitter Theory से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे साथ बने रहे तथा अपने दोस्तों को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें इस पोस्ट के बारे में अगर आपका कोई सुझाव या शिकायत है तो कृपया हमें टिप्पणी(comments) करें हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा धन्यवाद |

पिन (Pin) क्या होती है | पिन के प्रकार Types Of Pin तथा पिन (Pin) के महत्व (Importance of Pin)

 दोस्तों इस पोस्ट में हम जानेंगे आईटीआई फिटर थ्योरी ITI Fitter theory के अध्याय | पिन (Pin) क्या होती है पिन के प्रकार Types Of Pin तथा पिन (Pin) के महत्व (Importance of Pin) के बारे में |

पिन (Pin) क्या होती है

पिन एक अस्थाई फास्टनर Temporary Fastener है|
इसका प्रयोग भी कॉटर की तरह होता है, जिसको शाफ्ट की अक्ष (Axial) के क्रॉस में छेद करके प्रयोग में लाया जाता है। कार्य के अनुसार ये कई प्रकार की पायी जाती हैं, जैसे-ठोस (Solid) पिन, स्प्लिट पिन तथा गजन पिन आदि। ये हल्के कार्यों के लिए उपयोगी हैं, यानी इनके द्वारा स्पिण्डल या छोटे शाफ्ट पर पहिए, गियर व लीवर आदि अस्थायी रूप से कसे जाते हैं। इन कार्यों के लिए टेपर पिन अधिक उपयोगी सिद्ध होती है। इसका स्टैंडर्ड, टेपर 50 से 1 होता है तथा नौमिनल साइज इसके बड़े सिर का व्यास होता है। यह कम्पोनेंट को एक साथ लोकेट करने तथा पकड़ने की एक विधि है |

पिन के प्रकार Types Of Pin

मुख्य रूप से 5 प्रकार की पिन प्रयोग में ली जाती है | जो निम्नलिखित हैं -


  1. पैरलल पिन्स (Parallel Pin)
  2. कॉटर पिन्स (Cotter Pin)
  3. टेपर पिन्स (Taper Pin)
  4. डावल पिन (Dowel pins)
  5. स्प्रिंग पिन (Spring Pin)


पैरलल पिन्स (Parallel Pin)



Parallel-Pin, Parallel-Pins,

ये रीमींग किये गये होल में डावल की तरह फिट की जाती है तथा रिटेनिंग रिंग से स्थिति में पकड़ी जाती है। 

कॉटर पिन्स (Cotter Pin)

Cotter-Pin, Cotter-Pins,

कॉटर पिन्स (Cotter Pin) ज्यादातर उपयोग कटिंग डाइयों में किया जात है। इसे गाइड पिन के नाम से भी जाना जाता है। इस पिन के द्वारा शीट को निर्धारित स्थान पर गाइड किया जाता है। इससे स्प्लिट डाई भी गाइड की जाती है।

टेपर पिन्स (Taper Pin)

Taper-Pin, Taper-Pins,


टेपर पिन पार्ट्स को शुद्धता से स्थिर करती है। कम्पोनेन्ट की स्थिति को बदले बिना सरलता से डिस्मेंटल तथा एसैम्बल किया जा सकता है। टेपर पिन को फिट करने वाले होल में टेपर पिन रीमर के उपयोग से फिनिश किया जाता है। 


डावल पिन (Dowel pins)

डावल पीन एक बेलनाकार आकार कि होती हैं | यह पिन आवश्यकता अनुसार अलग-अलग लंबाई की बनाई जा सकती हैं |

डावल पिन का उपयोग Use Of Dowel pins

डावल पिन Dowel pins  का उपयोग मुख्य रूप से दो वस्तुओं के बीच में सापेक्ष गति को रोकने के‌ लिये किया जाता है तथा इसके द्वारा किसी दूसरे Joint लगाने वाले Element को Support  भी प्रदान किया जाता है | डावल पिन Dowel pin प्रायः मृदु इस्पात Mild Steel की बनी होती है या फिर लगाए जाने वाले जॉइंट के हिसाब से हम Material को आवश्यकतानुसार Select कर सकते हैं |

स्प्रिंग पिन (Spring Pin) 

Spring-Pin, Spring-Pins,


ये एसैम्बली को एक साथ ड्रिलिंग तथा रीमिंग करने की आवश्यकता का विलोपन करती है। कुछ मिसएलाइनमेंट के केस में स्प्रिंग पिन स्वतः एडजस्ट हो जाती है। 

पीनिंग (Pinning)

Pinning


एक साथ जब दो पार्ट को एसैम्बली करने की यह एसैम्बली की एक विधि है। मूल रूप से यह रिवेटिंग के समान ही है। 

स्टेकिंग (Steking)

Steking,


यह एसैम्बली में पार्टो को रिटेन (प्रतिधारण) करने की विधि है जिसमें कुछ भाग को या पूरे कम्पोनेन्ट को अन्य कम्पोनेन्ट में बल द्वारा डाला जाता है। यह फिट की दक्षता को बढ़ाती है। 

पिन का महत्व (Importance of Pin)

यह दो या अधिक पार्ट्स को शुद्धता से स्थिर करने में प्रयोग होता है। इसके द्वारा पार्ट्स को अलग-अलग एवं अपनी स्थिति में पुनः स्थिर किया जा सकता है। एसैम्बली के प्रकार पर निर्भर करते हुए विभिन्न प्रकार के डावल्स Pin प्रयोग किये जाते हैं। एसेम्बली में डावेल किये गये कम्पोनेन्ट को सदैव रिटैनिंग स्क्रू के साथ फिक्स किया जा सकता है।

लेखक की कलम से-
दोस्तों में हूं Sunil Kumar और इस पोस्ट में हमने जाना आईटीआई फिटर थ्योरी ITI Fitter theory के अध्याय | पिन (Pin) क्या होती है | पिन के प्रकार Types Of Pin तथा पिन (Pin) के महत्व (Importance of Pin) के बारे में|इसी प्रकार ITI Fitter theory से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे साथ बने रहे तथा अपने दोस्तों को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें इस पोस्ट के बारे में अगर आपका कोई सुझाव या शिकायत है तो कृपया हमें टिप्पणी(comments) करें हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा धन्यवाद |