ऊष्मा उपचार की विधियाँ (Methods Of Heat Treatment In Hindi)

इस पोस्ट में हम जानेंगे उसमें उपचार उपचार की विधियाँ Methods Of Heat Treatment जैसे Hardening, Tempering, Annealing, Normalising, Case Hardening आदि के बारे में |

Usma-Upchaar-Ki-Vidiya,



ऊष्मा उपचार की विधियाँ (Methods Of Heat Treatment)

धातु में वांछित गुणों को प्राप्त करने के लिए ऊष्मा उपचार की निम्नलिखित विधियाँ अपनाई जाती हैं |

  1. कठोरता (Hardening)
  2. टैंपरिंग (Tempering)
  3. अनिलन (Annealing)
  4. सामान्यकरण (Normalising
  5. सतह कठोरण (Case Hardening)

1.कठोरता (Hardening)

यह ऊष्मा उपचार की वह विधि होती है, जिससे किसी धातु  को कठोर (Hard) बनाया जाता है। जिससे वे कम घिसे और न धातुओं को काटने योग्य हो सके।
इस विधि में इस्पात को उसके कठोरीकरण परास (Hardening Range) के अन्दर निश्चित तापमान तक गर्म करके पर्याप्त तक इसी तापमान पर रखा जाता है। जिससे धातु के अन्दर तक तापमान पूरी तरह से प्रवेश हो सके और फिर इसके बाद इसे किसी उपयुक्त द्रव में डुबोकर शीघ्रता से ठण्डा किया जाता है।
कठोरीकरण परास (Hardening Range) 0.87% से कम कार्बन वाले इस्पातों के लिए उच्च क्रान्तिक बिन्दु से 30°C से 5000 अधिक तापमान और 0.87% से अधिक कार्बन वाले इस्पातों के लिए निम्न क्रान्तिक तापमान 30°C से 50°C से अधिक रखा जाता है|
इस्पात को तीव्र गति से ठण्डा करने के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम पानी होता है। ठण्डा करने की क्रिया को बुझाना (Quenching) कहते हैं। यह बुझाने का कार्य तेल तथा लवण पानी (Salt Water) के द्वारा भी किया जाता है। इस विधि से इस्पात जितनी अधिक शीघ्रता से ठण्डा किया या बुझाया जाता है, उतना ही अधिक कठोर होता है।
एलॉय इस्पात तथा उच्च चाल इस्पात को कठोरीकरण करने के लिए लगभग उसे 1100°C से 1300°C तक गर्म करके वायु के तेज झोंके के द्वारा ठण्डा किया जाता है। कठोरीकरण की मात्रा में कण (Grain) के साइज का भी प्रभाव पड़ता है। फाइन ग्रेन वाले इस्पात की तुलना में कोरस ग्रेन वाले इस्पात के पूरे द्रव्यमान में कठोरीकरण अधिक गहराई तक होती है।

जब इस्पात को सामान्य प्रकार से क्रान्तिक तापमान रेंज से ठण्डा हो तो यह ऑस्टेनाइट से पियरलाइट और एक स्वतन्त्र घटक के रूप में रूपांतरित होता है।
कठोरीकरण करने के लिए इस्पात को ठण्डा करने की दर प्रति सैकेण्ड 150°C से 200°C रखी जाती है। बुझाने के द्वारा मार्टेन्साइट तब तक नहीं बनता, जब तक कि इस्पात ऑस्टेनाइट के रूप में नहीं हो। तब कार्बन विलय के रूप में रहता है।
पुर्जों (Parts) को बुझाते समय काफी अधिक सावधानी रखनी चाहिए। गोल तथा लम्बे पुर्जों (Parts) जैसे  टेप, रीमर, ड्रिल आदि को सीधा लम्ब रूप में डुबोना चाहिए और चौरस (Flat) तथा पतले पुर्जी जैसे मिलिंग कटर, रिंग गेज, डिस्क आदि को किनारे की तरफ से डुबोना चाहिए तथा यह विशेष ध्यान रखना चाहिए की जॉब या कार्यखण्ड का मोटा भाग पहले डुबोया जाना चाहिए।

कठोरीकरण के उद्देश्य (Purpose of Hardening)

  • कठोरीकरण को निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया जाता है|
  • इस्पात से बने कर्तन औजार (Cutting Tools) को अन्य धातुआ को काटने योग्य बनाने के लिए।
  • इस्पात से बने पुर्जी (Parts) को घिसने से बचाने के
  • लिए।
  • इस्पात की सामर्थ्यता (Strength) बढ़ाने के लिए। 

2. टैम्परिंग (Tempering)

इस विधि के द्वारा कठोर किए हुए इस्पात को निम्न क्रान्तिक तापमान की रैंज से नीचे उपयुक्त तापमान तक गर्म करके निश्चित दर से ठण्डा किया जाता है। औसत टैम्परिंग तापमान कार्बन एवं औजार इस्पात के लिए 280°C तथा एलॉय उच्च इस्पात के लिए 560°C होता है। ठण्डा करने से पहले यही ताप 4 से 5 मिनट अनुच्छेद की प्रति मि.मी. मोटाई के लिए बनाए रखना आवश्यक होता है।
इस अवधि में ठण्डा करने के लिए पानी, तेल या वायु का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में भी जॉब या कार्यखण्ड को तेजी से ठण्डा किया जाता है।
तेल के माध्यम से पुर्जो (Parts) को ठण्डा करने से उनमें विकृति (Distort) होने की सम्भावना कम रहती है। इसमें तेल का तापमान 32°C से 42°C अच्छा रहता है। इस्पात की वस्तुओं को अधिकतर तेल में ही ठण्डा किया जाता है।
इस्पात के पुर्जी (Parts) की टैम्परिंग करने के लिए उन्हें विद्युत या गैस की भट्टी में गर्म किया जाता है। भट्टी में एक समान तापमान पैदा करने के लिए इसमें वायु भेजी जाती है।
टैम्परिंग के लिए कठोर किए गये इस्पात को फिर से गर्म करके उसके अन्दर मारटेन्साइट का कुछ भाग फिर से पर्लाइट में बदल लिया जाता है, जिसके कारण धातु की भंगुरता तथा कठोरता कम होकर चिमड़पन (Toughness) तथा तन्यता (Ductility) का गुण बढ़ जाता है|

टैम्परिंग के उद्देश्य (Purpose of Tempering)

टैम्परिंग के निम्नलिखित उद्देश्य निम्नलिखित हैं
  • इस्पात की तन्यता बढ़ाने के लिए।
  • इस्पात के आयतन में परिवर्तन करने के लिए।
  • कठोर किए हुए पुर्जो (Parts) की आवश्यकतानुसार कठोरता तथा भंगुरता कम करने के लिए।
  • इस्पात में सही आन्तरिक संरचना लाने के लिए, जिससे उसमें चीमड़पन और झटके सहन करने की सामर्थ्य बढ़ाने के लिए।
  • कार्य को बार-बार गर्म करने, उसमें उत्पन्न प्रतिबलों को दूर करने के लिए।

टैम्परिंग की एकल तापन विधि (Single Heating Method of Tempering)

इस विधि में कार्यखण्ड या जॉब को उच्च क्रान्तिक तापमान से लगभग 30°C से 50°C तक अधिक गर्म किया जाता है। गर्म करने के बाद कार्यखण्ड या जॉब को तरन्त पानी में निश्चित गहराई तक ठण्डा किया जाता है। छैनी आदि कर्तन औजार (Cutting Tools) को लगभग 12 मि.मी. से 13 मि.मी. लम्बाई तक ठण्डा किया जाता है। इसके बाद कार्यखण्ड या जॉब को बाहर निकाल लिया जाता है। इससे इसके पीछे की गर्मी कठोर किए हुए स्थान की तरफ बढ़ती है और इस पर कई रंग बदल जाते हैं।
जब कार्यखण्ड या जॉब पर निश्चित रंग आ जाये, तब उसे पुनः पानी में डुबोकर पूरी तरह से ठण्डा कर लिया जाता है।

टैम्परिंग रंग चार्ट (Tempering Colour Chart) 

तापमान रंग कार्य जिनके लिए उपयुक्त है

  • 220°C अधिक पीला पुआल सर्जिकल यंत्र, रेजर ब्लेड, हथौड़े के फलक
  • 230°C हल्का पुआल (Light Straw) लैथ औजार, पैने चाकू
  • 240°C मध्यम पुआल (Medium Straw) ठण्डी छैनी, कैंची, मिलिंग कटर
  • 250°C गहरा पुआल (Dark Straw) चेजर, टैप, डाई 270°C हल्का बैंगनी ट्विस्ट ड्रिल, टेबल, चाकू 285°C गहरा बैंगनी पेचकस, स्प्रिंग
  • 300°C हल्का नीला मुलायम धातु में काम आने वाले कर्तन औजारों के लिए।

3. अनिलन (Annealing)

अनिलन प्रक्रम को दो भागों में बाँटा गया है
  1.  प्रक्रम अनिलन (Process Annealing)
  2.  पूर्ण अनिलन (Full Annealing)

1.प्रक्रम अनिलन (Process Annealing)

इसे निम्न ताप अनिलन अथवा व्यवसाय अनिलन भी कहते हैं।
इस विधि में इस्पात को निम्न क्रान्तिक बिन्दु से नीचे एक निश्चित तापमान तक गर्म करके उसे धीमी गति से ठण्डा करते हैं।
इस प्रकार के अनिलन में इस्पात को लगभग 550°C से 650°C तक गर्म किया जाता है।
इस प्रक्रम में इस्पात संरचना का फिर से क्रिस्टलन होकर नई संरचना का निर्माण होता है।

2. पूर्ण अनिलन (Full Annealing)

इसे उच्च तापमान अनिलन भी कहते हैं।
इस प्रक्रम का उद्देश्य इस्पात को मुलायम बनाना अथवा कणों की संरचना को शुद्ध करना होता है।
इस विधि के अन्दर 0.87% से कम कार्बन वाले इस्पात को क्रान्तिक तापमान (बिन्दु) से लगभग 30°C से 50°C से अधिक तापमान तक गर्म करते हैं और 0.87% से अधिक कार्बन वाले इस्पात को निम्न क्रान्तिक ताप से लगभग उतने ही (30°C से 50°C) तक गर्म करते हैं इस निश्चित तापमान पर इस्पात को कुछ समय तक स्थिर रखते है जिसके कि उसकी संरचना में आवश्यक आन्तरिक परिवर्तन हो जाए।
किसी कार्य खंड्या या जॉब की अनिलन करने के लिए उसे
अनिलन तापमान पर 3 से 4 मिनट प्रति मिलीमीटर की दर से गर्म करना चाहिए, इसके पश्चात इसे धीमी गति से ठण्डा करना चाहिए । कार्यखण्ड या जॉब को ठण्डा करने के लिए भट्री में ही छोड दिया जाता है अथवा भट्टी से निकालकर किसी अचालक पदार्थ रेत, चना या राख में दबा देना चाहिए। इससे ठण्डा होने की दर कम हो जाती है।
इस विधि से जब इस्पात को अनिलन तापमान तक गर्म किया जाता है तो इसकी संरचना ऑस्टेनाइट में बदल जाती है फिर धीमी गति से ठण्डा करने पर अपने पूर्व मूलरूप पर्लाइट फेराइट या पलाइट सीमेंटाइट में कार्बन की मात्रा के अनुसार आ जाता है।
इस प्रकार की अनिलन क्रिया के बाद इस्पात अपनी कठोरता खो देता है। इस प्रक्रम से इस्पात मुलायम, तन्य तथा चीमड़ हो जाता है।
उच्च तापमान अनिलन के लिए उपयुक्त अनिलन तापमान 0.12% से कम कार्बन के लिए मृत मृदु इस्पात के लिए 875°C से 925°C तथा 0.12 से 0.45% के मृदु इस्पात के लिए 840°C से 870°C , मध्यम कार्बन इस्पात के लिए 780°C से 840°C तथा 0.80% से 1.5% के उच्च कार्बन इस्पात के लिए 760°C से 780°C होता है।

अनिलन के उद्देश्य (Purposes of Annealing) 

अनिलन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  • धातु को मुलायम बनाना, जिससे उस पर मशीनन (Ma chining) कार्य आसानी से किया जा सके।
  • धातु के ग्रेन साइज को शुद्ध करना।
  • धातु के विद्युत एवं चुम्बकीय गुणों में सुधार करना। 
  • धातु में तन्यता का गुण बढ़ाने के लिए।
  • मशीनन (Machining) तथा ढलाई (Casting) के समय .. विभिन्न हिस्सों के अलग-अलग दर से ठण्डा होने पर उसमें आयी सिकुड़न के कारण उत्पन्न हुए आन्तरिक प्रतिबलों को दूर करने के लिए।
  • धातु को उस स्थिति में लाने के लिए कि बाद में वह ऊष्मा उपचार के लिए उपयुक्त हो जाए। ...

(4) सामान्यकरण (Normalising)

इस प्रक्रम (Process) में इस्पात को सामान्यकरण रेंज में उचित तापमान तक गर्म किया जाता है। यह रेंज उच्च क्रान्तिक तापमान बिन्दु से लगभग 30°C से 50°C अधिक रहती है। सामान्यकरण के लिए यह तापमान लगभग 900°C रखा जाता है।
वांछित तापमान पर इस्पात को कम से कम 15 मिनट तक रखा जाता है, जिससे कि एक समान संरचना प्राप्त हो सके। इसके पश्चात इस्पात को वायु में ठण्डा होने के लिए छोड़ दिया जाता है।
इस विधि में इस्पात को उपयुक्त तापमान लगभग 900°C तक गर्म करने से इसकी संरचना पूरी तरह से ऑस्टेनाइट में बदल जाती है और वायु में ठण्डा होने के कारण फेराइट पर्लाइट से अलग हो जाता है। इस प्रकार इस्पात अपनी मूल संरचना को प्राप्त कर लेता है।
इस विधि के प्रयोग से इस्पात के शुद्ध होने चीमड़पन तथा
तन्यता के गुणों में वृद्धि होने के साथ-साथ मुलायमपन भी बढ़ जाता है।
इस प्रकार का ऊष्मा उपचार निम्न कार्बन इस्पात मध्यम कार्बन इस्पात के लिए ही उपयुक्त होता है।
एलॉय इस्पात का सामान्यकरण करने के लिए गर्म करने का समय लगभग दो घण्टे होता है और कार्यखण्ड या जॉब को ठण्डा करने की दर अधिक धीमी रखी जाती है। अर्थात जॉब को भट्टी के अन्दर ही ठण्डा किया जाता है।
इस विधि में मुलायमपन अनीलन (Annealing) की अपेक्षा कम प्राप्त होती है।
इस विधि से फोर्ज की गई छोटी वस्तुओं तथा पुर्जों(Parts) एवं ड्रोप हैमर से फोर्ज की वस्तुओं या पुर्जों (Parts) का सामान्यकरण किया जाता है।
इस विधि से रोलिंग तथा ढलाई (Casting) के पश्चात धातुओं का सामान्यकरण (Normalising) किया जाता है।

सामान्यकरण के उद्देश्य (Purpose of Normalising) 

सामान्यकरण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

  • इस्पात के कणों (Grains) के साइज को कम करने के लिए।
  • इस्पात के यांत्रिक गुणों में सुधार लाने के लिए।
  • विभिन्न संक्रियाओं (Operations) के द्वारा उत्पन्न प्रतिबलों को दूर करने के लिए।
  • चीमड़पन बढ़ाने के लिए।
  • इस्पात में चरम सामर्थ्य (Ultimate Strength), पराभव बिन्दु (Yield Point) तथा संघटन सामर्थ्य (Impact Strength) के उच्च मान प्राप्त करने के लिए।

(5) सतह कठोरण (Case Hardening)

इस विधि के द्वारा इस्पात की. बाह्य सतह को कठोर बनाय जाता है लेकिन इस्पात का आन्तरिक भाग मुलायम तथा चीमड़ रहता है।
इस विधि की सहायता से निम्न कार्बन इस्पात की बाहरी सतह को कठोर एवं घिसने के लिए प्रतिरोध योग्य बनाया जाता है|
इस विधि के अनुसार पहले इस्पात को रक्त तप्त गर्म किया जाता है फिर उसकी सतह पर अतिरिक्त कार्बन का समावेश कराया जाता है। जिससे एक निश्चित गहराई तक उसकी बाहरी सतह पर कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है। इसके पश्चात इसका कठोरण (Hardening) की जाती है।
इस विधि के अनुसार इस्पात में अतिरिक्त कार्बन समावेशन कराने के कारण इसको कार्बुराइजिंग प्रक्रम भी कहते हैं।
यह विधि पिटवां लोहा तथा मृदु इस्पात के लिए अधिकतर अपनाई जाती है क्योंकि इनमें कार्बन की मात्रा बहुत कम होती है।

सतह कठोरण प्रक्रम (Case Hardening Process) 

सतह कठोरण निम्नलिखित दो अवस्थाओं में किया जा सकता है

(i) कार्बुराइजिंग (Carburising) अर्थात बाहरी सतह में कार्बन की मात्रा बढ़ाना।
(ii) बाहरी सतह को कठोर बनाना (Hardening of Exter nal Surface)

(i) कार्बुराइजिंग (Carburising)

सतह कठोरण प्रक्रम द्वारा कठोर की जाने वाली वस्तुओं को ढलवां लोहा या इस्पात के वायु बन्द बक्से में इस प्रकार रखा जाता है कि इसके चारों तरफ एक ऐसा पदार्थ रहे, जिसमें कार्बन की मात्रा बहुत अधिक हो, जैसे - लकड़ी का कोयला (Charcoal) आदि।
इसके बाद इस्पात के बक्से उच्च क्रान्तिक तापमान से थोड़े से अधिक तापमान तक गर्म करते हैं । यह तापमान 900°C से 950°C तक रखा जाता है। फिर इस तापमान पर इस इस्पात को काफी समय तक रखते हैं ताकि इसके चारों ओर रखे पदार्थ से कार्बन इस्पात या धातु की सतह पर अच्छी तरह प्रवेश कर जाता है। इस प्रकार से धातु की बाहरी सतह उच्च कार्बन इस्पात (High Carbon Steel) में बदल जाती है, जिससे इसमें कार्बन की मात्रा 0.8 से 1.2% तक हो जाती है।
धातु या इस्पात में कार्बन के समावेश की गहराई इस बात पर निर्भर करती है कि उसे कितने समय तक गर्म किया गया है तथा अधिकतम तापमान पर इसे कितने समय तक रखा गया है।
इस विधि में लगभग 3 से 4 घण्टे के समय में 0.8 मि.मी. से 1.6 मि.मी. गहराई तक कार्बन का समावेश हो जाता है फिर बक्से के अन्दर ही धातु को ठण्डी होने देते हैं।
इस विधि से लगभग 5 घण्टे के समय में 925°C तापमान पर लगभग 1 मि.मी. गहराई तक सतह कठोर बनाई जा सकती है।
इस विधि में कार्यखण्ड या जॉब अथवा पुर्जी (Parts) को बक्से में बन्द करने से पहले उनकी सतहों से जंग आदि को अच्छी तरह से साफ कर देना चाहिए।
निम्न कार्बन इस्पात के पुर्जी (Parts) की बाहरी सतह को उच्च कार्बन इस्पात की बनाने वाली इस विधि को पैक कार्बुराइजिंग विधि भी कहते हैं।

(ii) बाहरी सतह को कठोर बनाना (Harder g of Ex ternal Surface)

इस विधि में इस्पात को पुनः लगभग 900°C तक गर्म करते हैं फिर तेल में डुबोया जाता है। इससे इसकी संरचना परिशुद्ध (Refine) हो जाती है इससे भंगुरता समाप्त हो जाती है और इसकी आन्तरिक कोर मुलायम तथा चिमड़ बन जाती है।
इस विधि में धातु को पुनः लगभग 700°C तक गर्म किया जाता है और पानी में डुबोकर बुझाया जाता है, जिससे उसकी बाहरी सतह से मुलायमपन समाप्त होकर उसमें पुनः कठोरता आ जाती है।

सतह कठोरण के लाभ (Advantage of Case Hard ening)

सतह कठोरण के निम्नलिखित लाभ मुख्य हैं |

  • इसमें कार्बन की मात्रा कम होने के कारण कठोरता बाहरी सतह के कुछ गहराई तक जाती है और मुलायम और चीमड़ कोर स्वय मिल जाती हैं।
  • ये धातुएँ उच्च कार्बन इस्पात की तुलना में अधिक सस्ती होती हैं।
  • इस विधि में संरचना में परिवर्तन से जहाँ एक तरफ से बाहरी सतह उच्च कार्बन इस्पात की बनकर पर्याप्त कठोर और घिसाव प्रतिरोधी हो जाती है, वही दूसरी तरफ अन्दर की कोर मुलायम और चीमड़ हो जाती है।
  • इस विधि से सम्पूर्ण तरह से उच्च कार्बन इस्पात का ही प्रयोग किया जाए तो सम्पूर्ण भाग ही कठोर हो जाएगा, जो काफी भंगुर होगा और उसमें चीमड़पन नहीं होगा।

द्रव कार्बुराइजिंग (Liquid Carburising)

द्रव कार्बुराइजिंग के लिए सोडियम साइनाइड तथा अन्य प्रकार के लवण बाथ (Salt Bath) प्रयोग में लाये जाते हैं।
इस विधि के अनुसार सोडियम साइनाइड या लवण बाथ (Salt Bath) को गर्म करके पिघला लिया जाता है और फिर निम्नलिखित कार्बन इस्पात को इसमें डालकर उसकी सतह पर 0.2 से 0.4 मि.मी. मोटी कठोर परत बना लेते हैं।
इस विधि से इस्पात की संरचना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, केवल उसकी सतह ही अत्यधिक दृढ़ और कठोर बनती है।
नाइट्राइडिंग प्रक्रम डीजल इंजन के भागों (Parts) तथा विमान आदि के लिए उपयोगी होता है। शैपिंग और ऊष्मा उपचार के बाद नाइट्राइडिंग अन्तिम प्रक्रम होता है।
यह विधि ऐल्यूमीनियम एलॉय तथा इस्पात की उन एलॉय के लिए अधिक उपयोगी होती है, जिनमें ऐल्यूमीनियम की मात्रा अधिक होती है। इस विधि के बाद धातु की टैम्परिंग सम्भव नहीं होती है।

गैस कार्बुराइजिंग (Gas Carburising)

इस विधि के द्वारा निम्नलिखित कार्बन इस्पात के जॉब या कार्यखण्ड की बाहरी सतह को कठोर तथा आन्तरिक कोर को मुलायम और चीमड़ बनाया जाता है।
इस विधि में धातु या इस्पात को ऐसी गर्म गैसों जिनमें हाइड्रोकार्बन की अधिकता होती है, जैसे -कोयला गैस (Coal Gas) से अधिक उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है।
इस विधि में निम्न कार्बन इस्पात की वस्तुओं को कार्बुराइजिंग भट्टियों में 870°C से 950°C तापमान तक गर्म किया जाता है और भट्टी में मीथेन सहित प्राकृतिक गैसें प्रवेश कराई जाती हैं। ऐसा करने से धातु या इस्पात की बाहरी सतह पर अतिरिक्त कार्बन का समावेश सतह कठोरण (Case Hardening) विधि की तरह हो जाता है।
इस प्रकार की कार्बुराइजिंग विधि के लिए अधिक भारी, हाइड्रोकार्बन गैसों और द्रवों का उपयोग किया जाता है।
इस विधि में उत्पन्न कार्बन को या तो इस्पात सोख लेता है या फिर वह कार्यखण्ड या जॉब की सतह पर कालिख के रूप में जम जाता है |
इस प्रकार की कार्बुराइजिंग विधि के लिए सामान्यतौर पर 900 से 950°C तापमान का प्रयोग किया जाता है।
गैस कार्बुराइजिंग के लिए परम्परागत विधियों में 8 घण्टे का समय लगता है। इस विधि से 1 मि.मी. सतह की गहराई के लिए लगभग 6 घण्टे का समय लगता है।
यह विधि आसान नहीं होती है इसमें केवल कुशल कारीगरों (Workers) द्वारा ही अच्छा परिणाम प्राप्त किया जा सकता है।

साइनाइडिंग (Cyaniding)

इस विधि में निम्न कार्बन इस्पात तथा मध्यम कार्बन इस्पात की बाहरी सतहों में नाइट्रोजन एवं बर्तन के समावेश से बाहरी सतह को कठोर किया जाता है और आन्तरिक सतह मुलायम, चीमड़ तथा तन्य बनी रहती है।
इस विधि के द्वारा इच्छानुसार जॉब या कार्यखण्ड की पूरी सतह या किसी भाग को कठोर बनाया जा सकता है।
इस विधि में कार्यखण्ड या जॉब को पिघले हुए लवण (Salt) बाथ में डुबोया जाता है फिर इसे निकालकर तेल अथवा पानी में डुबोकर ठण्डा कर लिया जाता है। बाथ के रूप में सोडियम साइनाइड या पोटेशियम साइनाइड का प्रयोग किया जाता है।
इस विधि में साइनाइड बाथ को 800°C से 900°C तापमान पर रखा जाता है।
इस विधि के द्वारा उत्पन्न हुई कठोर सतह के कारण बाहरी सतह पर कार्बन एवं नाइट्रोजन के कठोर साइनाइड कम्पाउन्ड का बनना होता है।
इस विधि में कठोर हुई सतह की मोटाई लगभग 0.13 मि.मी. से 0.5 मि.मी. तक होती है। विशेष लवण (Salt) के मिश्रण के प्रयोग से इस विधि के द्वारा 0.8 मि.मी. मोटी कठोर सतह बनाई जा सकती है। सामान्य परिस्थितियों में 800°C तापमान वाले साइनाइड लवण (Bath) में कार्यखण्ड या जॉब को 15 मिनट तक डुबोए रखने से लगभग 0.125 मि.मी. मोटाई की सतह प्राप्त की जा सकती है।

साइनाइडिंग के लाभ (Advantage of Cyaniding)

 निम्नलिखित लाभों के लिए साइनाइडिंग विधि अपनाई जाती है -
  • इस विधि में कार्यखण्ड या जॉब को विकृत (Distort) होने से बचाया जा सकता है।
  • इस विधि में कार्यखण्ड या जॉब की आन्तरिक सतह की तरफ कठोरता के धीरे-धीरे कम होने से सतह पर दरार पड़ने की सम्भावना कम रहती है।
  • इस विधि का उपयोग करने से कार्यखण्ड या जॉब पर उज्ज्वल तथा चमकदार फिनिश बनाई रखी जा सकती है।

लौ कठोरण (Flam Hardening)

इस विधि में धातु की सतह को ऑक्सी ऐसिटीलीन फ्लेम (लो) द्वारा उस समय तक गर्म किया जाता है, तब तक उसका ताप कठोरण परास (Hardening Range) में नहीं पहुँच पाता है। अब पर पानी की फुहार (Spray) छोड़कर तेजी से ठण्डा किया जाता इससे सतह पर काफी कठोरता आ जाती है।
इस विधि में कठोर की जाने वाली सतह की गहराई में फ्लेम के तापमान, गर्म करने के समय तथा पानी की फुहार (Spray) को नियन्त्रित करके कम या अधिक किया जा सकता है।
इस विधि में सामान्य कठोरण सम्भव होता है अर्थात जिस भाग को कठोर करना होता है, उसी भाग को फ्लेम द्वारा गर्म किया जाना है। जिससे कि कठोरण (Hardening) के लिए उपयुक्त तापमान उसी भाग (Parts) का हो।
गियरों के दाँतों को इसी विधि के द्वारा कठोर किया जाता है।

लौ कठोरण के लाभ (Advantage of Flame Hard. ening)

लौ कठोरण के लाभ निम्नलिखित हैं |
  • इस विधि के द्वारा ऐसे कार्यखण्ड या जॉब का कठोरण किया जाता है, जिनको भट्टी में आसानी से नहीं रखा जा सकता है।
  • इस विधि के द्वारा कम समय में ही सतह कठोरण (Case Hardening) की जा सकती है।
  • इस विधि में कार्यखण्ड या जॉब को गर्म करने के लिए भट्टी की तुलना में कम समय में गर्म किया जा सकता है।
  • इस विधि के द्वारा कम गहराई या सीमित गहराई तक कठोरण किया जा सकता है तथा शेष भाग प्रभावित नहीं होता है।
  • इस विधि में कार्यखण्ड या जॉब का लौ (Flame) बहुत जल्दी गर्म कर देती है, इससे शेष भाग की चीमड़ता तथा तन्यता पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।

इन्डक्शन कठोरण (Induction Hardening)

इस विधि में कार्यखण्ड या जॉब की सतह पर उच्च आवत्ति की विद्यत धारा प्रवाहित की जाती है, जिसके द्वारा सतह का तापमान तेज गति से कठोरण परास (Hardening Range) तक पहुँच जाता है।
इस तापमान के प्राप्त होते ही विद्युत धारा का प्रवाह बन्द कर दिया जाता है और इसके तुरन्त बाद ही सतह पर फुहार (Spray) के रूप में पानी छोड़कर कार्यखण्ड या जॉब को तेजी से ठण्डा कर लिया जाता है |
यह प्रक्रम (Process) इतनी गति से होता है कि 5 सैकेण्ड के अन्दर 3 मि.मी. मोटाई की कठोर सतह प्राप्त हो जाती है।
कार्यखण्ड या जॉब की बाहरी सतह को मजबूत और कठोर बनाने के साथ ही आन्तरिक सतह को मुलायम तथा चीमड़ रखने की बहुत ही दक्ष (Efficient) विधि होती है।
इस प्रकार इस विधि से कार्बन की अतिरिक्त मात्रा नहीं बढ़ाए जाने के कारण इसके द्वारा कठोरता का कम या अधिक प्राप्त होना स्वयं धातु के अन्दर उपस्थित कार्बन की मात्रा पर निर्भर करता है।
0.5% कार्बन इस्पात के लिए कठोरण तापमान लगभग
750°C से 760°C और एलॉय इस्पात के लिए तापमान 790°C से 800°C रहता है।
इस विधि की सहायता से फ्रैंक शाफ्ट, कैम शाफ्ट, फ्रैंक पिन, शायर.वाल्व, रौकर आर्म, ट्रेक रोलर, एक्सिल आदि का कठोरण (Hardening) किया जाता है।

इन्डक्शन कठोरण के लाभ (Advantage of Induction Hardening)

इन्डक्शन कठोरण के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं
  • बहु उत्पादन के लिए यह सबसे सस्ती विधि होती है।
  • दूसरी विधियों की अपेक्षा इसमें कम समय लगता है। 
  • इस विधि से पुर्जे (Parts) टेढ़े-मेढ़े नहीं होते हैं।
  • पुर्जी (Parts) या जॉब की बाहरी सतह को कठोर करते समय़ इसके आन्तरिक भाग पर कोई प्रभाव नहीं पडता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें